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EXCLUSIVE: लॉकडाउन में नहीं मिले खरीदार, किसान ने दिल पर रखा पत्थर और फसल पर चला दिया ट्रैक्टर

लॉकडाउन में फल और सब्जियों के दाम आसमान पर पहुंचे लेकिन उन्हें उगाने वालों के अरमान धरती पर बिखर गए. राजधानी से लगे चक्रवाय गांव के रहने वाले किसान अनुज अग्रवाल ने हर साल की तरह इस बार भी बड़े पैमाने पर पपीता और केले की खेती की थी. लेकिन जब फसल तैयार हुई, उसी दौरान कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन कर दिया गया. फसल बिकी नहीं लिहाजा अनुज ने खड़े खेत को ट्रैक्टर से रौंद दिया और अपने खेत में फूट-फूटकर रोया.

Lockdown ruined farmers
खून के आंसू रो रहा किसान

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Published : Jun 13, 2020, 6:25 PM IST

Updated : Jun 13, 2020, 7:34 PM IST

रायपुर: अदम गोंडवी कह गए हैं...तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है. हमारे देश में किसानों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं उस पर कोरोना वायरस के संक्रमण और लॉकडाउन ने उन्हें खून के आंसू रोने के लिए मजबूर कर दिया. राजधानी के एक फल किसान ने अपने सैकड़ों टन पपीतों और केलों को अपने हाथों से रौंद दिया और ETV भारत से बस इतना कहा कि जिसे बच्चे की तरह पाला, उसे खत्म करना मजबूरी है. सरकार के लिए तो बस फाइल मेंटेन करना जरूरी है.

दिल पर रखा पत्थर रखकर फसल पर चलाया ट्रैक्टर

लॉकडाउन में फल और सब्जियों के दाम आसमान पर पहुंचे लेकिन उन्हें उगाने वालों के अरमान धरती पर बिखर गए. राजधानी से लगे चक्रवाय गांव के रहने वाले किसान अनुज अग्रवाल ने हर साल की तरह इस बार भी बड़े पैमाने पर पपीता और केले की खेती की थी. लेकिन जब फसल तैयार हुई, उसी दौरान कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन कर दिया गया. फसल बिकी नहीं लिहाजा अनुज ने खड़े खेत को ट्रैक्टर से रौंद दिया.

नहीं मिले खरीदार

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दूसरे राज्यों में नहीं हो पाई सप्लाई

किसान ने बताया कि लॉकडाउन के चलते दूसरे राज्यों को होने वाली सप्लाई नहीं हो पाई, दूसरे राज्यों से व्यापारी इन्हें खरीदने नहीं आ पाए. स्थानीय बाजार में जो कीमत मिल रही है, उससे तो इसे तोड़ने में जो खर्च आना है वो ही नहीं निकल रहा है. ऐसे में बेबस किसान खरीफ सीजन के लिए अपने खेतों को खाली करने के लिए पपीता और केलों को रौंद देना ही बेहतर समझ रहे हैं.

फसल पर चला दिया ट्रैक्टर

खेतों तक पहुंचा ETV भारत

ETV भारत को जब किसानों की इस बेबसी के बारे में जानकारी मिली तो हमारी टीम 50 किलोमीटर दूर चक्रवाय गांव पहुंची, जहां किसान अपने खेत को ट्रैक्टर से रौंद रहा था. किसान ने लगभग 25 एकड़ में पपीता की खेती और लगभग इतने ही रकबे पर केले की खेती की थी. उनकी कड़ी मेहनत की बदौलत फसल भी अच्छी हुई. इसे देखकर उन्हें इस बार अच्छे मुनाफे की उम्मीद थी लेकिन इस बीच कोरोना ने भारत में भी दस्तक दे दी और इसके बाद पूरे देश में लॉकडाउन करना पड़ गया. इसकी मार इन किसानों पर बुरी तरह पड़ी है.

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पहले ही फेंक चुके हैं 150 टन पपीता

किसान बताते हैं कि बाहरी व्यापारी इस बार सौदे के लिए नहीं पहुंच पाए. इसके चलते स्थानीय व्यापारियों और बिचौलियों पर उन्हें निर्भर होना पड़ गया. उन्होंने ये भी बताया कि करीब 150 टन पपीता वे पहले ही फेंक चुके हैं. अभी लगभग 100 टन की करीब पपीता खेत में लगा है, जिसे वो ट्रैक्टर चला कर खत्म कर रहे हैं. यही हाल केले के साथ फसल के साथ भी है.

आखिर क्या है मुनाफा और लागत का गणित

पपीता और केले जैसी नकदी फसलों की खेती के लिए अच्छी खासी लागत किसानों को लगानी पड़ती है. शिवनाथ नदी के तटवर्ती इलाके में खासतौर पर दुर्ग,रायपुर,बेमेतरा जिलों में उधर महानदी के तट पर महासमुंद और अरपा की गोद में बसे बिलासपुर जिले में बड़े पैमाने पर उद्यानिकी खेती किसान करते हैं. इस तरह उच्च तकनीकी की खेती में प्रति एकड़ 1 से 1.25 लाख रुपए की लागत लगती है.

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श्रमिकों को नहीं दे सकते मजदूरी

प्रदेश भर में करीब 14 हजार हेक्टेयर में पपीते की खेती की जाती है. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितने बड़े पैमाने पर किसानों को नुकसान झेलना पड़ा है. इस किसान के मुताबिक स्थानीय व्यापारी उनसे 2 रुपए से 2.5 रुपए किलो पपीता खरीद रहे हैं जबकि एक किलो के पीछे उन्हें 5 से 6 रुपए तक की लागत आ रही है. अगर वे अपने खेतों में लगे इन पपीतों को तुड़ाई कराते हैं तो इसकी मजदूरी निकालना भी कठिन है, ऐसे में किसान खेत में ही पपीता को नष्ट कर रहे हैं.

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नहीं मिलती वाजिब कीमत

आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जो पपीता व्यापारी इनसे 2 से 3 रुपए में खरीदते हैं वो मंडी तक पहुंचते पहुंचते 50 रुपए का हो जाता है. ये सवाल बहुत बड़ा है कि आखिर किसान को उसकी मेहनत की वाजिब कीमत क्यों नहीं मिल रही है.

किसानों को नहीं मिल रही लागत

अगर यही हाल रहा तो प्रदेश में जिस तेजी से किसान उद्यानिकी कृषि की ओर रुख कर रहे हैं, उसी तेजी से हतोउत्साहित हो सकते हैं. ऐसे में सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि किसानों को इस तरह की उच्च लागत वाली कृषि के लिए अगर प्रोत्साहन मिल रहा है तो उन्हें इनकी फसलों के विक्रय के लिए बाजार भी उपलब्ध कराए. ऐसा नहीं हुआ तो किसानों का पसीना कर्ज तले दबता चला जाएगा.

Last Updated : Jun 13, 2020, 7:34 PM IST

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