रायपुर: स्वतंत्रता दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के अनुसूचित जाति को 13, अनुसूचित जनजाति को 32 और अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के एलान के साथ ही प्रदेश में रिजवर्शेन बढ़कर 72 फीसदी हो गया है. सीएम की इस घोषणा पर न सिर्फ विपक्षी पार्टी ने सवाल खड़े किए हैं बल्कि वरिष्ठ अफसरों ने भी नाराजगी जताई है.
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग को 72 फीसदी आरक्षण दिए जाने की घोषणा कर बड़ा दांव खेल दिया. राज्य में अभी तक इन तीनों को मिलाकर कुल 58 फीसदी ही आरक्षण दिया जा रहा था. इस तरह से आरक्षण बढ़ने में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का भी उल्लंघन हो रहा है. इसे लेकर तमाम राजनीतिक दलों ने तो आपत्ति जताई ही है, लेकिन प्रशासनिक विशेषज्ञों ने भी सवाल उठाते हुए कहा है कि आरक्षण केवल श्रेय और सस्ती लोकप्रियता लेने का एक जरिया बन गया है.
- छत्तीसगढ़ की बघेल सरकार के इस फ़ैसले के बाद पहले जहां राज्य में ओबीसी आरक्षण 14 प्रतिशत था अब यह बढ़कर 27 फीसदी हो जाएगा.
- एससी यानी अनुसूचित जाति के लिए भी एक प्रतिशत आरक्षण बढ़ाया गया है. अब एससी के लिए 13 प्रतिशत आरक्षण होगा. एसटी यानी अनुसूचित जनजाति के लिए राज्य में पहले से ही 32 फीसदी आरक्षण है. अब इन तीनों वर्गों को जोड़ लें तो सरकारी नौकरियों और शिक्षा में कुल 72 प्रतिशत आरक्षण हो जाएगा. यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय 50% की सीमा से 50% ज्यादा है.
- अगर सामान्य वर्ग के लिए 10 प्रतिशत केंद्र के अनिवार्य ईडब्ल्यूएस कोटे को लागू कर दिया जाए तो आरक्षण 82 फीसदी पहुंच जाएगा। हालांकि मुख्यमंत्री ने इस 10 फ़ीसदी आरक्षण पर कोई फैसला नहीं लिया है.
अधिकारियों ने जताई नाराजगी
छत्तीसगढ़ में 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण को लेकर वरिष्ठ अधिकारयों ने भी चिंता जताई है. पूर्व एडिशनल चीफ सेक्रेटरी और वरिष्ठ आईएएस बीकेएस रे ने कहा कि आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन का उल्लंघन न हो. राजनीतिक पार्टियों ने श्रेय लेने की राजनीति के लिए ही लगातार आरक्षण का उपयोग कर रही है.
उन्होंने कहा कि मैं आरक्षण का विरोध नहीं करता लेकिन इसे भी नियमों के तहत करना चाहिए. सस्ती लोकप्रियता के लिए केवल आरक्षण बढ़ाते रहेंगे तो इसके दूरगामी परिणाम ठीक नहीं होंगे. अधिकारी ने कहा कि कोई इस निर्णय को न्यायालय में चुनौती दे तो इस निर्णय को रद्द करना पड़ सकता है.