रायपुर: छत्तीसगढ़ में जल्द ही धान से एथेनॉल बनाने का काम शुरू हो जाएगा. केंद्र सरकार ने धान से एथेनॉल बनाने की अनुमति दे दी है. जिसके बाद राज्य सरकार चार कंपनियों के साथ प्लांट लगाने का समझौता कर रही है. ये कंपनियां जल्द ही अपना काम शुरू करेंगी. एथेनॉल प्लांट लगाने से जहां बचे धान का सही उपयोग हो सकेगा, वहीं सरकार को भी करोड़ों की आमदनी होगी. इसके अलावा किसानों से खरीदे गए धान को खपाने का भी सिरदर्द अब सरकार को झेलना नहीं पड़ेगा.
छत्तीसगढ़ को देशभर में धान और चावल की खेती किसानी के लिए जाना जाता है. यहां भरपूर पैमाने पर धान की खेती के बाद धान के सही मूल्य मिलने को लेकर लगातार बात उठती रही है. अब एथेनॉल प्लांट लगने से किसानों को उनके धान का सही दाम मिल सकेगा. जिससे प्रदेश में धान खरीदी का रकबा भी बढ़ेगा.
सरकार कमाएगी 750 रुपये करोड़
8 लाख मीट्रिक टन चावल या करीब 11 लाख मीट्रिक टन अनुपयोगी धान से सरकार को जहां 1500 करोड़ का घाटा हो रहा था, वहीं सरकार अब धान से एथेनॉल बनाकर हर साल करीब 750 करोड़ रुपये की कमाई कर सकती है. छत्तीसगढ़ में संभावित 4 प्लांटों से सालाना 1 लाख 17 किलो लीटर से अधिक एथेनॉल का उत्पादन होगा. इससे राज्य सरकार को करीब 750 करोड़ रुपये का फायदा मिलेगा.
ETV भारत की पड़ताल
ETV भारत ने कृषि विशेषज्ञों से एथेनॉल की उपयोगिता को लेकर चर्चा की और जानने की कोशिश की कि एथेनॉल के क्या फायदे हैं. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में बॉयोटेक्नोलॉजी विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर शुभा बेनर्जी ने बताया कि एथेनाल एक तरह का अल्कोहल है जिसे पेट्रोल में मिलाकर गाड़ियों में फ्यूल की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है. एथेनॉल से खेती और पर्यावरण दोनों को फायदा हो सकता है. किसी भी बॉयोलॉजिकल मटेरियल से अगर एथेनॉल यूज करते हैं तो उसे बायोएथेनॉल कहते हैं. बायो एथेनॉल ज्वलनशील होता है. उसको फ्यूल की तरह उपयोग कर सकते हैं. छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर धान का प्रोडक्शन होता है. ऐसे में राइस से ही एथेनाल बनाया जाना बेहतर है. राइस से एथेनॉल बनाना काफी सरल होता है. एथेनॉल के इस्तेमाल से 35 फीसदी कम कार्बन मोनो ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है. इतना ही नहीं यह कार्बन मोनोऑक्साइड उत्सर्जन और सल्फर डाइऑक्साइड को भी कम करता है. इसके अलावा एथेनॉल हाइड्रोकार्बन के उत्सर्जन को भी कम करता है.
'एथेनॉल बेस्ट ऑप्शन लेकिन हाई टेक्नोलॉजी जरूरी'
ETV भारत से चर्चा में कृषि विशेषज्ञ रजनीश अवस्थी ने बताया कि एथेनॉल इको फ्रेंडली फ्यूल है और पर्यावरण को जीवाश्म ईंधन से होने वाले खतरों से सुरक्षित रखता है. इस फ्यूल को बायोवेस्ट से तैयार किया जाता है. कम लागत पर अधिक ऑक्टेन नंबर देता है, और MBE जैसे खतरनाक फ्यूल के ऑप्शन के रूप में काम करता है. यह इंजन की गर्मी को बाहर निकालता है. उन्होंने कहा कि एथेनॉल को लेकर जिस तरह से तैयारी की जा रही है इसे और भी दूरगामी तरीके से सोचने की ओर काम करने की जरूरत है. अवस्थी ने बताया कि केवल राइस से ही नहीं बल्कि अन्य दूसरे बायोवेस्ट जैसे पैरा, मक्का और गन्ने के वेस्ट से भी एथेनॉल बनाया जा रहे हैं. ऐसे में यहां प्लांट लगाने के समय हाई से हाईटेक टेक्नोलॉजी का यूज होने पर ये प्लांट लंबे समय तक उपयोगी साबित होंगे.