रायपुर: प्रदेश के विधायकों को हर महीने 5 हजार रुपए टेलीफोन भत्ता दिए जाने पर कर्मचारी संगठन लामबंद हो गए है.कर्मचारी संगठनों ने इस मुश्किल समय में विधायकों के टेलीफोन भत्ते पर रोक लगाने की मांग की है.
विधायकों को 5 हजार रुपए टेलीफोन भत्ता देने पर कर्मचारी संगठन नाराज विधायकों को 5 हजार रुपए टेलीफोन भत्ता
छत्तीसगढ़ में विधायकों को टेलीफोन भत्ता के रूप में 5 हजार रुपए दिया जाता है, ये भत्ता उस समय से दिया जा रहा है जब टेलीफोन की दरें काफी ज्यादा थी, उस दौरान STD की दरें अलग से लगती थी, लेकिन समय के साथ-साथ अब कॉल की दरें काफी कम हो गई है और टेलीफोन की जगह मोबाइल ने ले ली है, इसमें खर्चा भी कम आ रहा है. अब सिर्फ 500 रुपए के रिचार्ज पर 2 से 3 महीने का काम चल जाता है. प्रदेश में अब मुख्यमंत्री, मंत्री और विधायक भी टेलीफोन की जगह मोबाइल का ही इस्तेमाल कर रहे हैं, इसमें कॉलिंग के साथ ही वीडियो कॉलिंग के माध्यम से भी अधिकारी-कर्मचारी रूबरू हो रहे है जिसका खर्चा काफी कम आ रहा है बावजूद इसके जनप्रतिनिधियों को टेलीफोन भत्ता पहले ही की तरह दिया जा रहा है, जिससे कर्मचारी संगठनों में नाराजगी है.
'प्रदेश सरकार का दोहरा रवैया'
तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष विजय झा का कहना है कि कोरोना संक्रमण के दौरान आर्थिक तंगी की बात करते हुए सरकार ने अधिकारी, कर्मचारियों के इंक्रीमेंट पर रोक लगा दी है, साथ ही आगामी महीनों में लगभग 30% वेतन कटौती की भी आशंका जताई जा रही है लेकिन दूसरी ओर जनप्रतिनिधि, नेता, मंत्री, विधायकों के खर्चों में किसी भी तरह की कटौती नहीं की गई है. कर्मचारी संगठनों ने प्रदेश सरकार पर दोगला व्यवहार करने का आरोप लगाया है.
टेलीफोन भत्ते में कटौती की मांग
विजय झा का कहना है कि सरकार विधायकों को हर महीने 5 हजार रुपए टेलीफोन भत्ता देती है जबकि मौजूदा दौर में 500 रुपए में मोबाइल 3 महीने के लिए रिचार्ज हो जाता है, ऐसे में इस भत्ते की कटौती किया जाना चाहिए, विजय झा ने बताया कि प्रदेश में 90 विधायक हैं और 5 हजार रुपए प्रतिमाह के हिसाब से सरकार के खजाने पर एक महीने में 4 लाख 50 हजार रुपए का खर्च आ रहा है. झा ने आरोप लगाया कि
प्रदेश के संविदा कर्मचारी, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सहित कई कर्मचारी 5 हजार रुपए से भी कम वेतन में काम कर रहे है, उसमें भी उनकी नौकरी का खतरा बना हुआ है, क्योंकि सरकार ने उनकी नियुक्ति पर रोक लगा दी है, जिससे लगभग 2 लाख कर्मचारी प्रभावित हुए है.
'जनप्रतिनिधियों की सुविधाओं पर विचार करें सरकार'
वहीं भाजपा का भी मानना है कि सरकार को जनप्रतिनिधियों को दिए जाने वाली सुविधाओं पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए. भाजपा प्रदेश प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव ने कहा कि समय और परिस्थितियों के अनुसार इस पर विचार किया जाना चाहिए.
'GST पर फंसा पेंच'
इधर इस मामले में जब ईटीवी भारत ने संसदीय कार्यमंत्री रविंद्र चौबे से सवाल किया तो उन्होंने गोलमोल जवाब देते हुए कहा कि अभी कर्मचारियों के वेतन में किसी प्रकार की कटौती नहीं की जाएगी, लेकिन केंद्र सरकार की ओर से जीएसटी की राशि उपलब्ध नहीं कराई गई तो आने वाले समय में इस पर भी राज्य सरकार विचार कर सकती है, साथ ही टेलीफोन खर्च पर रोक लगाए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि सभी को सहयोग करना होगा.
बता दें कि सरकार मितव्यता के नाम पर लगातार अधिकारियों-कर्मचारियों के इंक्रीमेंट रोके जाने सहित विभिन्न सुविधाओं में कटौती करने के निर्देश जारी कर रही है, जिसे लेकर कर्मचारियों में काफी आक्रोश है, यही वजह है कि उन्होंने अब जनप्रतिनिधियों को दी जाने वाली सुविधाओं में कटौती किए जाने की मांग की है.