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डॉ. नरेंद्र देव वर्मा का बड़ा सम्मान, उनकी रचना अरपा पैरी को मिला राजकीय गीत का दर्जा

आइए जानते हैं कौन हैं ''अरपा पैरी के धार'' के रचयिता. अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार ,इंदिरावती ह पखारे तोरे पईयां... छत्तीसगढ़ में रह रहे लोगों के मुंह में यह गाना मानो रच-बस गया हो. चाहे वो बच्चा हो या बूढ़ा. छत्तीसगढ़ी साहित्यकार डॉ.नरेन्द्र देव वर्मा ने इस गीत को रचा था और छत्तीसगढ़ी लोक कलाकार ममता चंद्राकर ने अपनी सुरीली आवाज में इसे गाया था.

'राजकीय गीत'

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Published : Nov 4, 2019, 5:21 PM IST

Updated : Nov 4, 2019, 7:54 PM IST

रायपुर :अरपा पैरी के धार महानदी हे अपार. यह गीत बहुमुखी प्रतिभा के धनी, साहित्यकार और भाषाविद् डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा ने लिखी थी. 4 नवम्बर को डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा की जन्मजयंती है. उनका जन्म सेवाग्राम वर्धा में 4 नवंबर 1939 को हुआ और 8 सितंबर 1979 को उनका रायपुर में निधन हुआ.

छत्तीसगढ़ का राजकीय गीत

डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा वैसे तो छत्तीसगढ़ी भाषा के जाने-माने कवि थे. वे हिन्दी साहित्य के गहन अध्येता होने के साथ ही, कुशल वक्ता, गंभीर प्राध्यापक, भाषाविद् और संगीत मर्मज्ञ गायक भी थे. उनके बड़े भाई ब्रम्हलीन स्वामी आत्मानंद का प्रभाव उनके जीवन पर बहुत अधिक पड़ा था.

कई स्वछंदवाद ग्रंथ भी लिखे
उन्होंने छत्तीसगढ़ी भाषा और साहित्य में कार्य किया. वे कवि, नाटककार, उपन्यासकार, कथाकार, समीक्षक और भाषाविद भी थे. उन्होंने छत्तीसगढ़ी गीत संग्रह ''अपूर्वा'' की रचना भी की. इसके अलावा ''सुबह की तलाश (हिन्दी उपन्यास)'' छत्तीसगढ़ी भाषा का उद्विकास, हिन्दी स्वछंदवाद प्रयोगवादी, नयी कविता सिद्धांत और सृजन हिन्दी नव स्वछंदवाद जैसे ग्रंथ भी लिखे.

दोनों भाषा को दिलाया सम्मान
उनके द्वारा लिखे गए ''मोला गुरू बनई लेते'' छत्तीसगढ़ी प्रहसन काफी लोकप्रिय है. डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा छत्तीसगढ़ के पहले बड़े लेखक है जो हिंदी और छत्तीसगढ़ी में समान रूप से लिखकर मूल्यवान विरासत सौंप गए. वे चाहते तो केवल हिन्दी में लिखकर यश प्राप्त कर सकते थे. लेकिन उन्होंने छत्तीसगढ़ी की समृद्धि के लिए खुद को खपा दिया.

साहित्य चिंतन शोध पर उपाधि भी मिली
डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा ने सागर विश्वविद्यालय से एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की और 1966 में उन्हें प्रयोगवादी काव्य और साहित्य चिंतन शोध प्रबंध के लिए पी.एच.डी. की उपाधि मिली.

छत्तीसगढ़ी भाषा का उद्भव विकास पर उपाधि भी मिली
उन्होंने 1973 में पंडित रविशंकर विश्वविद्यालय से भाषा विज्ञान में एम.ए. की दूसरी परीक्षा उत्तीर्ण की और इसी साल ''छत्तीसगढ़ी भाषा का उद्भव विकास'' विषय पर शोध प्रबंध के आधार पर उन्हें भाषा विज्ञान में भी पी.एच.डी. की उपाधि दी गई.

Last Updated : Nov 4, 2019, 7:54 PM IST

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