रायपुर : छत्तीसगढ़ में आने वाले कुछ महीनों में चुनाव है. ऐसा माना जाता है कि चुनाव में सत्ता की चाबी बस्तर के रास्ते होकर आती है. बस्तर के किले पर जिस भी दल का दबदबा रहा सरकार उसी की ही बनी. इसलिए चुनाव में बस्तर की बिसात को जीतना हर दल के लिए ना सिर्फ जरुरी है बल्कि सत्ता के करीब जाने का रास्ता भी है. बस्तर की अहमियत छत्तीसगढ़ में क्या है, इसका एक छोटा सा उदाहरण ये है कि दिग्गज नेताओं की रैलियां बस्तर की जमीन से ही शुरु होती हैं. बड़ी घोषणाएं बस्तर के मंच से ही की जाती हैं. इस बार भी ऐसा ही कुछ हो रहा है.
बस्तर में अब प्रियंका गांधी का दौरा : बस्तर में कुछ समय पहले ही सीआरपीएफ के फाउंडेशन डे पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने दौरा किया. इस दौरान उन्होंने बस्तर को नक्सल दंश से मुक्त कराने का वादा किया.वहीं अब कांग्रेस की ओर से राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी बस्तर आ रही है. 13 अप्रैल को प्रियंका का दौरा प्रस्तावित है. प्रियंका का बस्तर में आना कहीं ना कहीं कांग्रेस के लिए चुनावी शंखनाद होगा. क्योंकि रायपुर में ही फरवरी के आखिरी हफ्ते में कांग्रेस का बड़ा अधिवेशन संपन्न हुआ. ऐसे में बस्तर में प्रियंका का दौरा कांग्रेस की मौजूदा स्थिति को नापने जैसा है. ईटीवी भारत ने बस्तर के चुनावी मुद्दों को लेकर बस्तर के राजनीति के जानकार मनीष गुप्ता से मौजूदा समय की स्थिति के बारे में जाना.
नक्सल समस्या फिर होगा चुनावी मुद्दा :मनीष गुप्ता ने बताया कि '' बस्तर में मुद्दों की कमी नहीं है. ऐसे बहुत सारे मुद्दे हैं, जिसका असर चुनाव में देखने को मिल सकता है. सबसे बड़ा मुद्दा राज्य बनने के 23 साल बाद भी बस्तर नक्सल मुक्त नहीं हो सका है. नक्सल समस्या आज भी बरकरार है. यह आगामी विधानसभा चुनाव में एक मुद्दा बन सकता है. पेसा कानून भी बस्तर में एक मुद्दा है. आदिवासी आरक्षण का मुद्दा भी बस्तर चुनाव के दौरान गरमा सकता है, क्योंकि अब तक छत्तीसगढ़ में आरक्षण को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं हुई है. विधानसभा में आरक्षण विधेयक को पास कर दिया गया है. लेकिन विधेयक अभी तक राज्यपाल के पास हस्ताक्षर के लिए अटका हुआ है. यह मुद्दा भी विधानसभा चुनाव में गरमा सकता है, क्योंकि बस्तर आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है. आरक्षण से उसी वर्ग को सबसे ज्यादा लाभ मिलना है.''