रायपुर:भारत में और खासकर छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में विकास और आधुनिकता की कहानी इंसानों और जंगली जानवरों की लड़ाई से शुरू होती है. छत्तीसगढ़ में हाथी और इंसान के बीच संघर्ष दशकों से जारी है. इस संघर्ष के लिए इंसान हाथियों को दोषी बताता है, जबकि कहा जाए तो हाथियों से संघर्ष के लिए सिर्फ और सिर्फ इंसान जिम्मेदार हैं.
हाथियों की मौत को लिए इंसान तो जिम्मेदार हैं ही, मानव मौत के लिए भी इंसान ही जिम्मेदार हैं. छत्तीसगढ़ में 4 साल में करीब 46 हाथियों की मौत करंट की चपेट में आने से हुई है. इसमें 24 हाथियों की मौत अकेले रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ में हुई है. हाथी-मानव द्वन्द्व में इंसानों की मौत का आंकड़ा थोड़ा ज्यादा है. हाथी-मानव द्वन्द्व के पीछे लगातार घटते जंगल को बताया जा रहा है. छत्तीसगढ़ के सरगुजा, बलरामपुर, कोरिया, जशपुर, कोरबा, रायगढ़ महासमुंद जिले में हाथी विचरण करते हैं. जहां के लोग जंगली हाथियों के उत्पात से परेशान हैं. छत्तीसगढ़ के अलावा ओडिश, झारखंड और असम जैसे राज्यों में हाथी-मानव द्वन्द्व जारी है. बीते दो दशकों में हाथी के हमले से सैकड़ों लोगों ने अपनी जान गंवाई है. इंसानों को जान के साथ माल यानी घर और फसल के साथ जमापूंजी की गंवानी पड़ती है. दशकों पहले शुरू हुए हाथी-मानव द्वन्द्व आज बी बदस्तूर जारी है और दोनों ही अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे हैं.
1987 में पहली बार छत्तीसगढ़ आये हाथी
छत्तीसगढ़ के पशु प्रेमी और जानवरों के जानकार नितिन सिंघवी का बताते हैं, पहली बार हाथी 1987 में अविभाजित छत्तीसगढ़ में पहुचा था. यह हाथी झारखंड और ओडिशा में हो रही माइनिंग के कारण छत्तीसगढ़ की जंगलों को ओर आये थे. इसके बाद से इन राज्यों से हाथियों का छत्तीसगढ़ आने का क्रम लगातार जारी रहा. छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद से अबतक बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों से हाथी छत्तीसगढ़ पहुंचे हैं.
मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ की ओर रूख कर रहे हाथी
नितिन सिंघवी बताते हैं, हाथी एक जगह नहीं रुकते हैं. वह लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान आते-जाते रहते हैं. झारखंड और ओडिशा से छत्तीसगढ़ पहुंचे हाथियों में से कुछ हाथी मध्यप्रदेश की ओर भी चले गए हैं. नितिन सिंघवी के मुताबिक वर्तमान में लगभग 40 से 46 हाथियों ने मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ की ओर रुख किया है, जहां वे शांतिपूर्ण ढंग से रह रहे हैं. नितिन सिंघवी बताते हैं, बांधवगढ़ में इंसानों और हाथियों के बीच संघर्ष जैसी स्थिति नहीं है.
मानव-हाथी संघर्ष के पीछे का कारण
हाथियों की संख्या बढ़ती गई और हाथी और इंसान के बीच संघर्ष की स्थिति निर्मित हो गई. दोनों ही अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ने में लगे हुए हैं. इसमें कभी हाथी मारे जा रहे हैं, तो कभी इंसान. नितिन सिंघवी कहते हैं, जिस तरह से तेजी से जंगल को काटा जा रहा है, उससे इन हाथियों के सामने रहने-खाने की समस्या पैदा हो गई. जिसके कारण ये हाथी जंगल से निकलकर गांव और शहरों की ओर रुख कर रहे हैं. यहीं वजह है आए दिन इंसान और हाथी के बीच लड़ाई देखने को मिल रही है.
लोकसभा में अगस्त 2019 में दिए गए आंकड़ों के मुताबिक
हाथी के हमले में इंसानों की मौत
- 2016-17 में 74 लोगों की मौत
- 2017-18 में 74 लोगों की मौत
- 31 मार्च 2019 तक 56 लोगों की मौत
- 2016 से अबतक 200 से ज्यादा लोगों की मौत
- छत्तीसगढ़ में 3 साल में 204 लोगों की मौत
- देश में 3 साल में 1,474 लोगों की मौत
छत्तीसगढ़ चौथे नंबर पर
- 3 साल में असम 274 लोगों की मौत
- ओडिशा में 243 लोगों की मौत
- झारखंड में 230 लोगों की मौत
- छत्तीसगढ़ में 204 लोगों की मौत
- पश्चिम बंगाल में 202 लोगों की मौत
समस्या का समाधान
नितिन सिंघवी कहते हैं, हाथी की समस्या के समाधान के लिए सिर्फ इंसानों के बारे में न सोचते हुए हाथियों के बारे में भी सोचना होगा. लोगों को ध्यान देना होगा कि हाथी को किन-किन चीजों की जरूरत है. हाथी को दिनभर में डेढ़ सौ किलो खाना और 200 से 300 लीटर पानी की जरूरत होती है. इसके अलावा सुरक्षा और भ्रमण के लिए पर्याप्त जगह दे दी जाए तो शायद हाथी और इंसानों के बीच की लड़ाई में तोड़ी कमी आएगी.
इंसानों को हाथियों के साथ सीखना होगा रहना
सिंघवी ने बताया कि इंसानों को भी यह सीखना होगा कि वे हाथी के साथ कैसे रहे. जब हाथी गांव में प्रवेश करता है और वन विभाग लोगों से हाथी के नजदीक न जाने की अपील करते हैं तो उस दौरान लोगों को वहां भीड़ नहीं लगाना चाहिए. शांति रखते हुए वहां से दूर चले जाना चाहिए इससे हाथी आक्रामक भी नहीं होते हैं.