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नक्सलगढ़ में 15 साल से बंद स्कूलों में अब बच्चों की होगी शानदार एंट्री!

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में 15 सालों से बंद पड़े स्कूलों में अब बच्चों की शानदार एंट्री होने वाली (Schools in Naxal affected areas of Chhattisgarh) है. सीएम बघेल इन बंद पड़े स्कूलों के फिर से खुलने की औपचारिक घोषणा कर सकते हैं.

Politics on opening of schools in Naxal affected areas
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के स्कूल खुलने पर सियासत

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Published : Jun 14, 2022, 10:36 PM IST

रायपुर:छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित और दुर्गम इलाकों के स्कूलों में फिर से घंटियों की आवाज सुनाई (Schools in Naxal affected areas of Chhattisgarh) देगी. छत्तीसगढ़ सरकार ने बस्तर क्षेत्र के करीब ढाई सौ से ज्यादा सरकारी स्कूलों को फिर से खोलने का फैसला लिया है. 15 साल से बंद इन स्कूलों को फिर से शुरू करने की औपचारिक घोषणा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल 16 जून को कर सकते हैं.

नक्सलियों ने कर दिया था तबाह: बस्तर के चार जिलों के 250 से ज्यादा स्कूलों में बच्चों की किलकारियां फिर से गूंजेंगी. जिला प्रशासन करीब 15 साल बाद बंद पड़े इन स्कूलों को फिर से खुलवाने में सफल हुई है. इन सभी स्कूलों को सलवा जुड़ूम आंदोलन के वक्त नक्सलियों ने बम से तबाह कर दिया था. कुछ स्कूलों को खौफ की वजह से भी बंद किया गया था. तब से आज तक इस इलाके के बच्चे शिक्षा से दूर थे. अब नए शिक्षा सत्र से हजारों छात्र फिर से स्कूल से जुड़ पाएंगे.

नक्सलगढ़ में फिर खुलेंगे स्कूल

स्थानीय भाषा में भी दी जाएगी शिक्षा:बस्तर के सुदूर अंचलों के स्कूलों को फिर से शुरू करवाने का काम प्रशासन के लिए भी आसान नहीं था. जगदलपुर के वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र वाजपेयी के मुताबिक प्रशासन ने लोगों का भरोसा जीतकर इसे संभव कर दिखाया. आदिवासी बहुल अधिकांश गांवों के बच्चे हिंदी नहीं बोल पाते हैं, इसलिए इन्हें प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय बोली में दी जाएगी. स्थानीय युवाओं को शिक्षा दूत बनाया गया है. सुदूर इलाकों के स्कूलों में ये शिक्षा देने का काम करेंगे. सरकार की इस पहल से स्थानीय युवाओं को रोजगार भी मिल रहा है.

400 से अधिक स्कूल थे बंद: बस्तर में करीब 15 साल पहले नक्सलवाद के खिलाफ चलाये गए अभियान.. सलवा जुड़ूम के दौरान हुई हिंसा में इन इलाके के स्कूलों की बलि चढ़ गई. जगदलपुर के वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र बाजपेयी के मुताबिक तब नक्सलियों ने स्कूलों की इमारतों को बम से उड़ा दिया था. नक्सली मानते थे कि सलवा जुड़ूम के कार्यकर्ता और सुरक्षा बल के जवान स्कूल भवनों का उपयोग छिपकर हमला करने के लिए करते हैं. दो पक्षों के बीच छिड़ी जंग का खामियाजा बच्चों को भुगतना पड़ा. 15 साल के लंबे इंतजार के बाद भी इस इलाके में शिक्षा की ज्योत नहीं जली. बस्तर क्षेत्र के नक्सल प्रभावित इलाकों में लगभग 15 वर्षों से करीब 400 सरकारी स्कूल बंद हैं. राज्य सरकार ने सुकमा, नारायणपुर, दंतेवाड़ा और बीजापुर जिलों के इन 400 में से 250 से अधिक स्कूलों को फिर से खोलने का फैसला लिया है.

विश्वास, विकास और सुरक्षा के साथ बनाई गई योजना: प्रदेश कांग्रेस कमेटी के संचार विभाग के प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि ''राज्य की पूर्ववर्ती बीजेपी की सरकार के समय बस्तर क्षेत्र के स्कूलों को बंद किया गया. कभी सलवा जुड़ूम तो कभी नक्सली आतंक के नाम पर स्कूलों को बंद किया गया. बीजेपी शासनकाल में बस्तर क्षेत्र के 400 से अधिक स्कूल बंद किए गए. राज्य में कांग्रेस की सरकार आने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इसे प्राथमिकता पर रखा कि बस्तर क्षेत्र के बंद पड़े स्कूलों को फिर से शुरू किया जाए ताकि बच्चों को बेहतर शिक्षा मिल सके.''

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बस्तर के लोगों में जगा विश्वास: सुशील आनंद शुक्ला के मुताबिक इस काम के लिए सरकार ने विश्वास, विकास और सुरक्षा के साथ कार्ययोजना बनाई. इसका परिणाम यह हुआ कि बस्तर क्षेत्र में शांति की बहाली हुई. लोगों में विश्वास की बहाली हुई और बस्तर के बंद स्कूलों में से ज्यादातर स्कूलों को खोलने में सरकार ने सफलता प्राप्त की. शुक्ला ने कहा कि ''इन स्कूलों में पढ़ाई फिर से शुरू हो रही है, यह संतोष की बात है. सरकार ने एक लक्ष्य हासिल किया है लेकिन आगे शत-प्रतिशत स्कूलों को न सिर्फ खोला जाएगा बल्कि आवश्यकता के अनुरूप वहां नए स्कूल भी खोले जाएंगे.'' शुक्ला ने यह भी बताया कि इन इलाकों में स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूल भी खोले जाएंगे.

पढ़ाई होगी तब दावों पर होगा भरोसा: भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव कहते हैं कि ''यह महज सरकार के आंकड़ों की जादूगरी है. जब इन सभी स्कूलों में बच्चे जाएंगे, वहां पढ़ाई होगी... तभी दावों पर भरोसा किया जाएगा. राज्य सरकार झूठे आंकड़े दिखाकर जनता को भ्रमित करती है.'' श्रीवास्तव ने यह भी कहा कि बस्तर में भी जिन 460 स्कूलों को खोलने की बात की जा रही है, वह भी महज आंकड़ों का जाल है. धरातल में तस्वीर कुछ अलग ही है.

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