रायपुर: छत्तीसगढ़ पर जितनी प्रकृति मेहरबान है, उतनी है खूबसूरत है यहां की संस्कृति. आदिवासी बहुल इस प्रदेश में कई जनजातियां निवास करती हैं. यहां की कला और संस्कृति राज्य की अलग पहचान बना रही है और इसका नजारा आपको इस बार राजपथ पर देखने को मिलेगा. गणतंत्र दिवस के दिन राजपथ पर जब छत्तीसगढ़ की झांकी निकलेगी तो सब देखेंगे कि मध्य भारत का ये राज्य कितनी मासूमियत और सुंदरता में पिरोया हुआ है.
राजपथ पर बिखरेगी छत्तीसगढ़ की चमक छत्तीसगढ़ की झांकी में प्रदेश की कला और आभूषण का प्रदर्शन किया जाएगा. इस बार झांकी पारंपरिक शिल्प और आभूषणों पर आधारित करके तैयार की गई है. इस झांकी को पांच राउंड की कठिन चयन प्रक्रिया के बाद अंतिम स्वीकृति मिली है. छत्तीसगढ़ की संस्कृति को देश-विदेश से आए दर्शकों के सामने अपनी पहचान बनाने का अवसर मिलेगा. झांकी के साथ बस्तर के 25 आदिवासी नर्तकों का दल भी चलेगा.
इन आभूषणों के जरिए दर्शायी जाएगी छत्तीसगढ़ की संस्कृति
पैर: बिच्छवा, पेंरी / पाइल / साटी, लच्छा, तोड़ा
कमर : करधन (चांदी)
अंगुली : मुंदरी
कलाई : ऐठी, चुरी, कंकनी, पटा,
बांह : बाजूबंद, बहूटा, पहुंची, नागमोरी, बनुरिया, हरईंया
गला : सुतिया / सुता / सुर्रा , दुलरी, तिलरी, हंसती, पुतरी, ढोलकी, ताबीज
कान : खिनवा, तरकी, लरकी, तितरी, खूंटी, लवांगफुल
नाक : बुलाक, बेसर, लवंग, नथ, नथनी, फुल्ली
माथा : टिकली, विदित
सिर : मांग मोती, पटिया, बेनी, ककई, कंघी
छत्तीसगढ़ के जनजातियों के प्रमुख आभूषण
- लुरकी: इस आभूषण को कानों में पहना जाता है. ये पीतल, चांदी, तांबे आदि धातुओं का बना होता है. इसे कर्ण फूल, खिनवा आदि भी कहा जाता है.
- करधन: यह आभूषण चांदी, गिलट या नकली चांदी से बना होता है. यह बहुत वजनदार होता है. छत्तीसगढ़ में सभी जनजाति की महिलाएं कमर में इस आभूषण को पहनती हैं. इसे करधनी भी कहते हैं.
- सूतिया: यह आभूषण गले में पहना जाने वाला आभूषण है. यह ठोस गोलाई में एल्यूमिनियम, गिलट, चांदी, पीतल आदि का होता है.
- पैरी: यह आभूषण पैर में पहना जाता है. यह गिलट या चांदी का होता है. इसे पैरपट्टी, तोड़ा या सांटी भी कहा जाता है. कहीं-कहीं इसका नाम लच्छा भी है.
- बांहूटा: यह आभूषण बांह में स्त्री और पुरूष दोनों पहनते हैं. यह आभूषण अक्सर चांदी या गिलट का होता है. इसे मैना जनजाति में पहुंची भी कहा जाता है. भुंजिया इसे बनौरिया कहते हैं.
- बिछिया: इस आभूषण को पैर की उंगलियों में पहना जाता है. यह चांदी का होता है. इसका अन्य नाम चुटकी है इसे बैगा जनजाति के लोग पहनते हैं.
- ऐंठी: इस आभूषण को कलाई में पहना जाता है, जो कि चांदी, गिलट आदि से बनाया जाता है. इसे ककना और गुलेठा भी कहा जाता है.
- बन्धा: इस आभूषण को गले में पहना जाता है. यह सिक्कों की माला होती है. पुराने चांदी के सिक्कों की माला आज भी आदिवासी स्त्रियों की गले की शोभा है.
- फुली: इस आभूषण को नाक में पहना जाता है. यह चांदी, पीतल या सोने का होता है, इसे लौंग भी कहा जाता है.
- धमेल: गले में पहना जानेवाला यह आभूषण चांदी या पीतल अथवा गिलट का होता है. इसे सरिया और हंसली भी कहा जाता है.
- नागकोरी: इस आभूषण को कलाई में पहना जाता है.
- खोंचनी: इस आभूषण को सिर के बालों में लगाया जाता है. बस्तर में मुरिया, माड़िया आदिवासी इसे लकड़ी से तैयार करते हैं. अनेक स्थानों पर इसे चांदी या गिलट से तैयार किया जाता है और कहीं- कहीं पत्थर का भी प्रयोग किया जाता है. बस्तर में प्लास्टिक कंघी का भी इस्तेमाल इस आभूषण के रूप में होता है. इसे ककवा कहा जाता है.
- मुंदरी: इस आभूषण को हाथ की उंगलियों में पहना जाता है. यह धातु निर्मित आभूषण है, बैगा जनजाति की युवतियां इसे चुटकी भी कहती है.
- सुर्डा/सुर्रा: इस आभूषण को गले में पहना जाता है. गिलट या चांदी से निर्मित यह आभूषण छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की एक पहचान है.