रायपुर: छत्तीसगढ़ की लोककलाओं और संस्कृति को सहेजने, संवारने और उसे आगे बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मंशा के अनुरूप छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद के गठन की प्रक्रिया शुरू हो गई है. राज्य निर्माण के 20 साल बाद छत्तीसगढ़ की कला, संगीत, भाषा के विकास के लिए एक ही छत के नीचे अब एकीकृत प्रयास हो पाएगा.
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में मंगलवार को आयोजित कैबिनेट की बैठक में छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद के गठन को मंजूरी दे दी गई है. इस परिषद के अंतर्गत संस्कृति विभाग की समस्त इकाइयों को एकरूप किया जाएगा. मुख्यमंत्री बघेल ने कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य गठन होने के पहले छत्तीसगढ़ में सभी सांस्कृतिक गतिविधियां मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से संचालित होती थीं.
आपसी तालमेल का अभाव रहा
राज्य गठन के बाद छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा मिला. अनेक संस्थाएं भी स्थापित की गईं, लेकिन उनमें आपसी तालमेल का अभाव रहा. इन सब का परिणाम यह रहा कि सांस्कृतिक विकास की दिशा में जितनी ताकत के साथ प्रयास होने चाहिए थे, वे अब तक हो नहीं पाए हैं. उन्होंने आगे कहा कि उनकी सरकार ने छत्तीसगढ़ की संस्कृति पर गर्व की अनुभूति जगाने की दिशा में शुरू से ही काम किया.
मुख्यमंत्री निवास में मनाया गया पारंपरिक त्योहार
छत्तीसगढ़ की महिलाओं के पर्व तीजा, किसानों के पर्व हरेली और गोवर्धन पूजा जैसे त्योहारों पर अवकाश की न सिर्फ घोषणा की, बल्कि इन त्योहारों को अपने मुख्यमंत्री निवास कार्यालय से मनाने की परंपरा की शुरुआत की. गोंड़ी, हल्बी भाषा में पाठ्य पुस्तकें तैयार कर स्कूलों में पढ़ाई शुरू करने का निर्णय लिया. खान-पान की संस्कृति को संरक्षित करने के लिए सभी जिलों में गढ़कलेवा की स्थापना का निर्णय लिया गया. लेकिन इन सबके बावजूद इन तमाम गतिविधियों को संगठित रूप में संचालित करने की आवश्यकता है, ताकि एक ही दिशा में संगठित रूप से काम हो सके, इसलिए एक समग्र मंच के रूप में छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद के गठन का निर्णय लिया गया है.