रायपुर :बिरसा मुंडा ने दमनकारी ब्रिटिश शासन और स्थानीय जमींदारों की शोषणकारी प्रथाओं के खिलाफ आदिवासी समुदायों को लामबंद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.स्वदेशी लोगों के अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए जनजातीय विद्रोहों और आंदोलनों का नेतृत्व किया. बिरसा मुंडा के नेतृत्व में सबसे उल्लेखनीय आंदोलनों में से एक 1899-1900 में "उलगुलान" आंदोलन था. जिसे हम आदिवासी विद्रोह के नाम से भी जानते हैं. विद्रोह का उद्देश्य ब्रिटिश प्रशासन की अन्यायपूर्ण प्रथाओं को समाप्त करना और आदिवासी समुदायों के भूमि अधिकारों को बहाल करना था.
आदिवासियों के उत्थान के लिए काम : बिरसा मुंडा ने आदिवासी समुदायों के बीच धार्मिक और सांस्कृतिक पुनरुत्थान की दिशा में भी काम किया.उन्होंने अपने विचारों का प्रचार करने और आदिवासियों के बीच एकता को बढ़ावा देने के लिए "बिरसा मंडल" नामक संगठन का गठन किया. आंदोलनों को कारण 1900 में ब्रिटिश अधिकारियों ने बिरसा को गिरफ्तार किया़ था. 9 जून, 1900 को 25 वर्ष की आयु में जेल में उनकी मृत्यु हो गई थी.
स्वतंत्रता सेनानी के रूप में बनाई पहचान : अपने छोटे जीवन के बावजूद, एक आदिवासी नेता और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में बिरसा मुंडा ने आने वाली पीढ़ियों को स्वतंत्रता के लिए प्रेरित किया.उनकी विरासत पीढ़ियों को विशेष रूप से आदिवासियों को प्रेरणा देने वाली है.आदिवासियों के बीच बिरसा को एक नायक और आदिवासी सशक्तिकरण का प्रतीक माना जाता है.15 नवंबर को झारखंड में राजकीय अवकाश के रूप में बिरसा मुंडा की जयंती और 9 जून को पुण्यतिथि मनाई जाती है.