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स्वतंत्रता संग्राम का गवाह है रायपुर में बरगद का यह पेड़, जानिए इससे जुड़ी कहानियां

रायपुर के पुरानी बस्ती में आज भी वह बरगद का पेड़ मौजूद है. जिसकी छांव में महात्मा गांधी से लेकर नेहरू और राजेंद्र प्रसाद ने देश को आजाद कराने की रणनीति बनाई थी. इस पेड़ के बारे में इतिहासकार क्या कहते हैं. पढ़िए इस रिपोर्ट में.

Banyan tree
बरगद का पेड़

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Published : Aug 14, 2022, 10:31 PM IST

रायपुर:राजधानी रायपुर का पुरानी बस्ती इलाका स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े कई कहानियों को संजो कर रखा है. रायपुर के पुरानी बस्ती क्षेत्र में स्थित है जैतूसाव मठ जो महात्मा गांधी से लेकर जवाहरलाल नेहरू, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, महंत लक्ष्मीनारायण दास, पंडित सुंदरलाल शर्मा, खूबचंद बघेल, ठाकुर प्यारेलाल जैसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का गढ़ रहा है. पुरानी बस्ती जैतूसाव मठ के नजदीक आज भी वह बरगद का पेड़ मौजूद है. जिसकी छांव के नीचे बैठकर सभी स्वतंत्रता सेनानी देश को आजाद करने की रणनीति बनाते थे.

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बरगद के पेड़ के नीचे होती थी बैठक: पुरानी बस्ती जैतूसाव मठ के नजदीक बरगद के पेड़ के नीचे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी देश को आजाद कराने की रणनीति बनाते थे. इतिहासकार डॉक्टर रमेंद्रनाथ मिश्र ने बताया " रायपुर के पुरानी बस्ती स्थित बरगद का जो पेड़ है. वहां स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बैठकर देश को आजाद कराने की रणनीति बनाते थे. बरगद के पेड़ के समीप जैतूसाव मठ है, जो स्वतंत्रता संग्राम के दौरान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का गढ़ माना जाता था. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, महंत लक्ष्मीनारायण दास जितने भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. वह सभी यहां आया करते थे. हलदर शास्त्री जो बहुत बड़े विद्वान माने जाते थे. उन्होंने इसी बरगद के पेड़ के नीचे महंत लक्ष्मीनारायण दास को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए शपथ दिलाई थी. स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ-साथ जैतूसाव मठ बुद्धिजीवियों का केंद्र भी रहा है.

आजादी की जंग का गवाह है यह पेड़

पंडित हलदर शास्त्री माने जाते थे बड़े विचारक: इतिहासकार रमेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि " पंडित हलधर शास्त्री बहुत बड़े विद्वान थे. यहां तक की अंग्रेजी अधिकारी भी उनसे संस्कृत का ज्ञान लेने आया करते थे. जब अंग्रेज अधिकारी पंडित हलदर शास्त्री के यहां संस्कृत पढ़ने आते थे तो उनके घर के सामने वह तांगे में बैठे रहते थे. शास्त्री जी उसको घर के छज्जे से लेक्चर देते थे.


महंत लक्ष्मीनारायण दास ने असहयोग आंदोलन में निभाई की महत्वपूर्ण भूमिका:इतिहासकार डॉक्टर रमेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि " महंत लक्ष्मीनारायण दास को मठ का महंत बनाने के बाद वो धार्मिक कार्यों के साथ-साथ सामाजिक गतिविधियों में भी शामिल होते गए. 1920 में जब महात्मा गांधी पहली बार छत्तीसगढ़ आए और संबोधित किया तो उनके विचारों ने महंत लक्ष्मीनारायण दास को प्रभावित किया. इसके बाद महंत लक्ष्मीनारायण दास अंग्रेजों के खिलाफ हर आंदोलन में अपनी भूमिका निभाते चले गए.

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