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तिलक के गणेशोत्सव ने ऐसी मचाई धूम, कांप गए थे अंग्रेज

पूरा देश इस समय गणेश उत्सव की तैयारियों में लीन है. गणेश चतुर्थी से लेकर चतुर्दशी तक 10 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव की मूल शुरुआत महाराष्ट्र से हुई है. गणेश चतुर्थी की शुरुआत में एक तरफ स्वतंत्रता के आंदोलन को धार देने की कोशिश की गई तो दूसरी ओर सामाजिक कुरीतियों पर सीधा वार भी किया गया.

तिलक के गणेशोत्सव

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Published : Sep 1, 2019, 7:36 AM IST

वाराणसी:दो सितंबर से गणेश उत्सव की शुरुआत हो रही है. गणेश चतुर्थी से लेकर चतुर्दशी तक 10 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव की मूल शुरुआत महाराष्ट्र से हुई है, लेकिन अब यह धीरे-धीरे पूरे देश के अलग-अलग हिस्सों में मनाया जाने लगा है. शायद बहुत कम लोग जानते हैं कि गणेश चतुर्थी को शुरू करने के पीछे की क्या मंशा थी. गणेश चतुर्थी की शुरुआत में एक तरफ स्वतंत्रता के आंदोलन को धार देने की कोशिश की गई तो दूसरी ओर सामाजिक कुरीतियों पर सीधा वार भी किया गया. कुल मिलाकर गणेश चतुर्थी का यह पर्व देश प्रेम के साथ सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने में महत्वपूर्ण योगदान निभाता आ रहा है.

तिलक के गणेशोत्सव

स्वतंत्रता आंदोलन को दी धार-

इस बारे में इतिहासकार प्रोफेसर सतीश कुमार राय ने बताया कि किस तरह से गणेश चतुर्थी की शुरुआत देश के स्वतंत्रता आंदोलन से लोगों को जोड़ने के उद्देश्य से की गई. प्रोफेसर राय के मुताबिक सन 1894 में जब अंग्रेजों ने राजनीतिक समागम रैलियों पर रोक लगा दी. उस वक्त लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने पेशवाओं की तरफ से गणेश जी की प्रतिमा बाहर निकालकर शहर में घुमाये जाने को लेकर एक नया प्लान तैयार किया.

मुख्य बिंदु-

  • गणेश चतुर्थी की शुरुआत देश के स्वतंत्रता आंदोलन से लोगों को जोड़ने के उद्देश्य से की गई.
  • 1894 में अंग्रेजों ने राजनीतिक समागम रैलियों पर रोक लगा दी.
  • नेता और क्रांतिकारियों के बीच आंदोलन को लेकर कोई चर्चा ही नहीं हो पा रही थी.
  • लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने पेशवाओं की तरफ से गणेश चतुर्थी के मौके पर प्लान तैयार किया.
  • गणेश जी की प्रतिमा शहर में घुमाये जाने और 10 दिन के उत्सव का रूप देने की बात कही.

विरोध का करना पड़ा था सामना-

पुणे से सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुआत की. इस प्लान के बाद जब मूर्ति को वापस ले जाकर मंदिर में रखा जाने लगा तो उस वक्त के ब्राह्मणवादी सोच के लोगों ने विरोध किया, क्योंकि मूर्ति को हर समुदाय हर जाति के लोग ने छुआ था. इस विरोध की वजह से बाल गंगाधर तिलक को काफी परेशानी उठानी पड़ी, जिसके बाद उन्होंने इसका यह निष्कर्ष निकाला कि भाद्रपद कृष्णपक्ष की चतुर्थी से चतुर्दशी तक 10 दिवसीय गणेश उत्सव की शुरुआत होगी. इन 10 दिनों तक गणेश जी की प्रतिमा लाई जाएगी.

मुख्य बिंदु-

  • पुणे से सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुआत हुई.
  • इस प्लान के बाद मूर्ति को वापस ले जाकर मंदिर में रखा जाने लगा.
  • उस वक्त के ब्राह्मणवादी सोच के लोगों ने मूर्ति रखने का विरोध किया
  • मूर्ति को हर समुदाय और हर जाति के लोगों ने स्पर्श किया था.
  • विरोध की वजह से बाल गंगाधर तिलक को काफी परेशानी उठानी पड़ी.

गणेश उत्सव का योगदान-

इसी प्लानिंग के तहत बाल गंगाधर तिलक ने इसकी बृहद शुरुआत की, जिसका नतीजा यह हुआ की जाती-पाती की बंधनों को तोड़ते हुए हर कोई इस सार्वजनिक गणेश उत्सव से जुड़ सका. राजनेता और क्रांतिकारी भी स्वतंत्रता आंदोलन के अपने सपने को पूरा करने के लिए गणेश उत्सव समितियों में 10 दिनों तक लगातार प्लानिंग करते रहते थे.

मुख्य बिंदु-

  • 1894 में बाल गंगाधर तिलक की तरफ से शुरू हुए गणेश उत्सव का महत्व बढ़ गया.
  • धीरे-धीरे कई समितियों का गठन हुआ.
  • इन समितियों के गठन में कई क्रांतिकारियों ने भी पूजा समितियों की शुरुआत की.
  • अंग्रेजों के खिलाफ देशभक्ति गीतों के जरिए लोगों को जागरूक भी किया गया.
  • गणेश उत्सव का धार्मिक और देशभक्ति दोनों में बड़ा योगदान रहा.

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