रायगढ़: छत्तीसगढ़ के ढोकरा आर्ट की चमक पूरी दुनिया में फैल चुकी है. इस आर्ट से तैयार मूर्तियां देखने में जितनी खूबसूरत लगती है. उतनी ही मेहनत इसे तैयार करने में लगती है. हम आपको उस गांव के बारे में बताते हैं. जहां इस आर्ट से खूबसूरत मूर्तियां तैयार की जाती है. रायगढ़ जिला मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद है गांव एकताल. इसे झारा शिल्पकारों का गांव कहा जाता है. ये आर्ट देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी खासा लोकप्रिय है.
⦁ झारा कलाकार बड़ी बारीकी से पीतल को मूर्तरूप देते हैं. पीतल को पिघलाने से लेकर एक मूर्ति बनाने तक का पूरा काम अपने हाथों से ही करते हैं. बनने के बाद मूर्ति मशीन से साफ किया जाता है और इसके बाद ये कलाकार उसे बाजारों में बेचते हैं. पीतल को पिघलाना और मूर्ति बनाकर बेचना ही झारा कलाकारों की पारंपरिक जीविका के साधन हैं. एकताल गांव में झारा शिल्पकार के करीब 200 परिवार रहते हैं.
⦁ शिल्पकारों ने बताया कि कैसे पीतल को एक सजीव रूप दिया जाता है. सबसे पहले मिट्टी का ढांचा तैयार किया जाता है. ढांचे पर मोम से कलाकारी की जाती है और फिर उसे सूखने के लिए रख दिया जाता है.
⦁ मोम के सूखने के बाद उसपर नदी की चिकनी मिट्टी का लेप चढ़ाने के बाद उसे दोबारा सुखाया जाता है.
⦁ जब मोम के उपर लगी मिट्टी पूरी तरह से सूख जाती है, तो उसे आग में तपाया जाता है. आग में तपने की वजह से मोम पूरी तरह पिघल जाता है और जगह खाली हो जाती है, जिसके बाद खाली जगह पर पीतल को पिघलाकर भरा जाता है. इसके बाद मिट्टी को निकाल लिया जाता है जिससे जो आकृति मिट्टी में बनी रहती है.
⦁ जो आकृति मोम के पिघलने से तैयार होती है, वही पीतल का मूर्त रूप ले लेती है.
⦁ मूर्ति के तैयार होने के बाद उसे साफ किया जाता है. मूर्ति की ज्यादातर सफाई हाथ या फिर छोटी-छोटी छैनी, हथौड़े से की जाती है.