रायगढ़:जिले के बरमकेला ब्लॉक के भीकमपुरा गांव में रहने वाले विस्थापित सपेरों की स्थिति काफी दयनीय है. विस्थापित इसलिए क्योंकि ये मुख्यत: कोरबा के रहने वाले थे. 40 साल पहले इन्हें सिर्फ 600 से 700 रुपए थमा कर कोरबा के कोल माइंस वाले क्षेत्र से विस्थापित कर दिया गया. जिसके बाद ये रायगढ़ पहुंच गए और तब से यहीं के होकर रह गए.
सावन में ही होती है सपेरों की कमाई
सावन में सांप और सपेरा का विशेष महत्व है. सावन को भगवान शिव का महीना कहा गया है. इस वजह से शिव का आभूषण होने के कारण सावन में सांप को देखना शुभ माना जाता है. शहरों में रहने वाले अधिकांश लोगों ने अपनी कॉलोनी में सावन में सपेरों को घूमते देखा होगा. सावन में ही ये सपेरे लोगों को तरह-तरह के सांप दिखाकर और उनसे मिलने वाले कुछ पैसों और अनाज से अपना घर चलाते हैं. या यूं कहें तो सावन में ही इन सपेरों की कमाई हो पाती है. लेकिन अब इनके सामने जिंदगी चलाने और अपने बच्चों का पालन-पोषण करने की समस्या खड़ी हो गई है.
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विस्थापित हैं 60 सपेरे परिवार
रायगढ़ जिले के भीकमपुरा गांव की इस बस्ती में करीब 60 सपेरों के परिवार रहते हैं. इनका मुख्य काम सांप पकड़ना और सांपों की प्रदर्शनी करके जीवन यापन के लिए पैसा कमाना होता है. या यूं कहें तो यहीं उनका पुश्तैनी काम है. लेकिन अब वन्यजीव संरक्षण के नाम पर इन लोगों से सांपों के साथ सख्ती और उनको पकड़ने की मनाही की जा रही है. इससे इन लोगों का रोजगार छिन रहा है. सपेरों का कहना है कि न इन्हें अपना पुश्तैनी काम करने दिया जा रहा है और न ही शासन की तरफ से इन्हें कोई रोजगार दिया जा रहा है. कभी कोरबा के कोयला खदान वाले क्षेत्रों में यह आदिवासी सपेरे निवास करते थे लेकिन कोयला उत्खनन के लिए भू अधिग्रहण किया गया और इन लोगों को वहां से पलायन करके रायगढ़ में रहना पड़ रहा है. पलायन के लिए मजबूर हुए तो भू-मुआवजा के रूप में 600 रुपए से 700 रुपए प्रति किसान को उनके जमीन के आधार पर दिया गया.