रायगढ़:जिले का ऐतिहासिक बाघ तालाब भी जलीय खरपतवार और अतिक्रमण की मार झेल रहा है. कभी राजपरिवार की शान रहा बाघ तालाब आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है.
रायगढ़ के बाघ तालाब की दुर्दशा अव्यवस्थाओं से दम तोड़ता बाघ तालाब
बाघ तालाब में अव्यवस्थाओं की भरमार है. साफ-सफाई नहीं होने और जलीय खरपतवार से तालाब पूरी तरह पट चुका है. तालाब का हाल ये है कि अब लोग निस्तारी के लिए भी इसका उपयोग नहीं करते हैं. लगभग 22 एकड़ में फैला ये तालाब सिमटकर कुछ ही एकड़ में बचा है, जिससे ये तालाब कम मैदान ज्यादा नजर आ रहा है. तालाब के ज्यादातर हिस्से में अवैध कॉलोनियां हैं. लोगों ने इस पर कब्जा कर रखा है, जिससे तालाब का क्षेत्रफल कम होता जा रहा है.
रियासतकालीन बाघ तालाब
रायगढ़ राजपरिवार के राजाओं के शेरों को पालने और उनके लिए विशेष तालाब बनवाने के सबूत आज भी जिंदा है. राजपरिवार से जुड़े लोग बताते हैं कि रायगढ़ रियासत के राजा प्रकृति प्रेमी रहे हैं, इसी वजह से वे वन्यजीवों को नुकसान नहीं पहुंचाते थे. यहीं वजह है कि तालाब के मुख्य द्वार पर ही बाघ के लिए अलग से बाड़ा बनाया गया था. जहां तीन बाघों को रखा जाता था. यहां इन बाघों की देखभाल की जाती थी, इसी वजह से इस तालाब का नाम बाघ तालाब पड़ा. बाघों के लिए बनाए गए कमरे अब टूट-फूटकर खंडहर बन चुके हैं. ये बाघ तालाब मोती महल से महज चंद कदमों की दूरी पर स्थित है.
शहरी दबाव से बन गया डंपिंग यार्ड
शहर में कॉलोनियां बसने से अब लोग भी बढ़ने लगे हैं. जिससे कचरा भी बढ़ने लगा है. इस कचरे को तालाब के किनारे ही फेंक दिया जाता है. इससे ऐतिहासिक बाघ तालाब डंपिंग यार्ड बन गया है. बाघ तालाब के किनारे देखें तो चारों तरफ कचरे का अंबार लगा हुआ है.
कानूनी दांव-पेंच में उलझा ऐतिहासिक धरोहर
स्वतंत्रता के बाद राजा-रजवाड़ों की रियासतों का विलय किया गया. इस विलय के लिए सबसे पहले रायगढ़ रियासत ने सहमति जताई. उस दौरान रायगढ़ राजपरिवार को श्वेत पत्र में समस्त दस्तावेज के साथ ये आदेशित किया गया था कि जितनी भी संपत्तियां है, उसका अधिकार राजपरिवार के पास ही रहेगा, लेकिन उनके बेचने या उनके स्वरूप परिवर्तन के लिए राज्य शासन से अनुमति लेनी पड़ेगी. यहीं वजह है कि तालाब राजपरिवार और शासन-प्रशासन के बीच के पेंच में फंस गया है. कोई भी इस तालाब की सुध नहीं ले रहा है.
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ऐतिहासिक तालाब पर भूमाफियाओं की नजर
भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद पर्यावरण के पूर्व वैज्ञानिक दिनेश षडंगी ने ETV भारत से चर्चा में बताया कि तालाबों पर भूमाफियाओं की नजर है. यहीं वजह है कि जल स्रोतों को नष्ट कर उनकी जगह कॉलोनियां बसाई जा रही है. जिले में भी कई सालों से यही काम हो रहा है. जिसकी वजह से बाघ तालाब का अस्तित्व संकट में आ गया है. उन्होंने कहा कि बाघ तालाब ऐतिहासिक धरोहर है. ये जल संरक्षण के साथ ही भूजल संवर्धन के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. इसका संरक्षण जरूरी है, तभी रायगढ़ को भविष्य में पानी मिल सकेगा.
बाघ तालाब पर राजघराने का अधिकार
राजपरिवार के कुमार देवेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि राजपरिवार की समस्त संपत्तियों में शामिल बाघ तालाब पर भी राजघराने का अधिकार है. स्थानीय कलेक्टर या शीर्ष अधिकारी इसके संरक्षक होंगे और किसी भी तरह के स्वरूप परिवर्तन या क्रय-विक्रय के संबंध में राज्य शासन से अनुमति लेनी पड़ेगी. बाघ तालाब के बेचने और खरीदने के संबंध में भी राज्य शासन से कोई अनुमति नहीं ली गई थी, इसके संबंध में कोई भी दस्तावेज नहीं है. इस आधार पर यह अब भी रायगढ़ राजघराने का ही है.
'निजी उद्योग संवारेंगे तालाब'
रायगढ़ नगर निगम कमिश्नर का कहना है कि रायगढ़ के बाघ तालाब के साथ ही अन्य तालाबों का संरक्षण भी किया जाएगा. त्योहारी सीजन के खत्म होने के बाद ड्रेनेज सिस्टम, तालाबों की स्थिति को सुधारा जाएगा. तालाबों के जीर्णोद्धार और कायाकल्प के लिए निजी उद्योगों को तालाब दिए गए हैं, जिनका सौंदर्यीकरण और रखरखाव उनकी जिम्मेदारी होगी. ऐसे ही बाघ तालाब का भी सौंदर्यीकरण किया जाएगा और उसके उत्थान के लिए प्रयास किए जाएंगे.
किसी समय में चांदमारी के पहाड़ से पानी नदी में न जाकर सीधे बाघ तालाब में जाता था और इसी बाघ तालाब के पानी का उपयोग राजपरिवार और रायगढ़ शहरवासी किया करते थे, लेकिन आज औद्योगिकीकरण के कारण शहर में जगह की कमी और उस पर बढ़ता बोझ तालाबों का गला घोंट रहा है.