रायगढ़ : गर्मी अपनी चरम सीमा पर है. ऐसे में नदी, नाले सूखने के कगार पर पहुंच गए हैं. रायगढ़ की जीवनदायनी नदी केलो का अस्तित्व भी इन दिनो खतरे में है. एक ओर जहां बस्तरवासी इंद्रावती के अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे है. वहीं दूसरी ओर महानदी से जु़ड़ी केलो नदी को भी बचाने के लिए रायगढ़वासी सड़कों पर उतर आए हैं. साथ ही शहरीकरण उद्योगों की मार झेल रही केलो को बचाने के लिए एकजुट हो कर आंदोलन कर रहे हैं.
रायगढ़ जिले से उद्गम हुई केलो नदी राज्य के महानदी की सहायक नदी के रूप में जाना जाता है. इसका उद्गम जिले के लुडेंग गांव की पहाड़ियों से हुआ है. शहर से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर ही लाखा नामक गांव है जहां पर केलो डैम का निर्माण किया गया है. इसका पानी रोककर कंपनी को पहुंचाया जाता है. साथ ही इसके पानी से इंसान के साथ- साथ जानवर, खेत, खलिहान व्यवसाय सभी फल फूल रहे हैं लेकिन नदी खुद विलुप्त होने की कगार पर है. वो दिन दूर नहीं जब केलो नदी सिर्फ इतिहास के पन्नो में सिमट कर रह जाएगी.
'केलो नदी प्रदूषित होकर सिमट ने लगी है'
केलो डैम का नाम बदलकर दिलीप सिंह जुदेव परियोजना कर दिया गया है. समाज सेवी राजेश त्रिपाठी ने कहा कि लगातार आंदोलन होने के बाद भी प्रशासन की तरफ से कोई पहल नहीं की गई है. केलो नदी आज प्रदूषित होकर सिमटने लगी है. वहीं कांग्रेस पार्षद साखा यादव का कहना है कि मेयर मधुबाई किन्नर पूरी तरह से निष्क्रिय साबित हो रही हैं. कंपनियों के द्वारा भी लगातार केलो नदी में प्रदूषित पानी छोड़ा जा रहा है इससे पानी पूरी तरह दूषित हो चुका है. वहीं डैम बनाकर पानी को भी रोक दिया गया है जिससे पानी खुद से साफ नहीं हो पा रहा है.