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इलेक्शन स्पेशल: इस कांग्रेसी सीट पर बीजेपी ने मारी थी सेंध, इस बार कौन जीतेगा बाजी

कभी कांग्रेस का अभेद्य गढ़ मानी जाने वाली महासमुंद सीट पर 2009 के चुनाव में भाजपा सेंध मारने में सफल हुई. तब से यहां भाजपा का कब्जा है. इस सीट पर विद्याचरण शुक्ल, श्यामाचरण शुक्ल, पवन दीवान और अजीत जोगी जैसे बड़े नाम चुनाव जीतते रहे हैं.

महासमुंद

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Published : Mar 26, 2019, 11:20 PM IST

Updated : Mar 27, 2019, 12:33 AM IST

महासमुंद: कभी कांग्रेस का अभेद्य गढ़ मानी जाने वाली महासमुंद सीट पर 2009 के चुनाव में भाजपा सेंध मारने में सफल हुई. तब से यहां भाजपा का कब्जा है. इस सीट पर विद्याचरण शुक्ल, श्यामाचरण शुक्ल, पवन दीवान और अजीत जोगी जैसे बड़े नाम चुनाव जीतते रहे हैं.

इस बार यहां मुकाबला साहू वर्सेज साहू का देखने को मिल रहा है, क्योंकि दोनों प्रमुख पार्टियों ने साहू समाज के बड़े नेताओं के मैदान में उतारा है. वैसे तीन जिलों में फैली इस लोकसभा सीट पर साहू मतदाताओं की बहुलता है. लगभग 20 फीसदी साहू वोटर्स यहां हैं फिर कुर्मी और अन्य जाति भी बड़ी तादाद में यहां मौजूद है.

जनता ने जाति के आधार पर नहीं की वोटिंग

यहां की जनता ने कभी भी जाति को आधार बनाकर वोटिंग नहीं की है, तभी तो शुक्ल बंधु यहां से परचम लहराते रहे हैं. इस बार ये देखना दिलचस्प होगा कि साहू नेताओं के बीच मुकाबले में जनता किसका साथ देगी.

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भाजपा से चुन्नीलाल साहू मैदान में
भाजपा ने इस बार अपने सांसद का टिकट काटते हुए पूर्व विधायक चुन्नीलाल साहू को उम्मीदवार बनाया है. चुन्नी खल्लारी से विधायक रहे हैं लेकिन इस बार उन्हें विधानसभा चुनाव के मैदान में नहीं उतारा गया था. अब उन्हें लोकसभा चुनाव में उतारा गया है.

कांग्रेस से धनेंद्र साहू मैदान में
वहीं कांग्रेस अपने वरिष्ठ नेता धनेंद्र साहू को चुनावी मैदान में उतारा है. धनेन्द्र रायपुर जिले के अभनपुर से कई बार विधायक रहे हैं. पीसीसी के अध्यक्ष और राज्य सरकार में मंत्री रह चुके हैं. इसलिए सियासी कद के हिसाब से अपने प्रतिद्वंदी चुन्नी साहू पर भारी नजर आते हैं.

चुन्नीलाल साहू जहां संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं संघ प्रचारक के तौर पर उन्होंने क्षेत्र में काफी सक्रियता रखी है. इस चुनाव में भी उन्हें संघ कार्यकर्ताओं का साथ मिलने की उम्मीद है. राजनीतिक एक्सपर्ट भी मानते हैं कि अगर आरएसएस का बूथ मैनेजमैंट काम कर गया और मोदी की लहर चलती है तो चुन्नीलाल की नैय्या पार लग सकती है.

धनेंद्र साहू क्यों पड़ सकते हैं भारी
धनेन्द्र साहू काफी तजुर्बेकार नेता हैं साथ ही उनकी पकड़ गरियाबंद और धमतरी जिले में अपने विरोधी के मुकाबले ज्यादा अच्छी है. उनकी सियासत की शुरुआत शुक्ल परिवार के करीबी के तौर पर हुई है और इसका लाभ उन्हें महासमुंद जिले में मिल सकता है. क्योंकि इस इलाके में आज भी शुक्ल परिवार की पैठ है. अगर उनके समर्थकों का साथ धनेंद्र साहू को मिलता है तो वे चुन्नी पर भारी पड़ सकते हैं.

धनेंद्र को मिल सकता है किसानों का साथ
धमतरी, गरियाबंद और महासमुंद प्रमुख तौर पर कृषि बाहुल्य इलाका है और धनेन्द्र साहू की पहचान भी एक किसान नेता के तौर पर है. साथ ही हाल ही में भूपेश सरकार द्वारा लिए गए ऋण माफी और धान का समर्थन मूल्य बढ़ाने के फैसले का लाभ धनेन्द्र उठा सकते हैं. जोगी जैसे दिग्गज नेता को मात देने वाले चंदूलाल साहू का टिकट काटकर भाजपा ने बड़ा कड़ा रुख अपनाया है लेकिन इससे चुन्नीलाल साहू को भितरघात का सामना करना भी पड़ सकता है.

साहू बनाम साहू का मुकाबला धनेन्द्र अपनी विधानसभा सीट अभनपुर में हर बार झेलते आए हैं. ऐसे में कह सकते हैं उन्हें इस तरह की स्थिति से कैसे उबरना है बेहतर मालूम है. हालांकि ये तो सिर्फ सियासी आंकड़े और समीकरणों के आधार पर उभरी तस्वीर है. वास्तविक में किसका पलड़ा भारी है और कौन देश की सबसे बड़ी पंचायत में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करेगा ये तो यहां की जनता ही तय करेगी.

Last Updated : Mar 27, 2019, 12:33 AM IST

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