महासमुंद :जिले में एक स्वयंप्रकट शिवलिंग लोगों के बीच आस्था का केंद्र बना हुआ है. ऐसी मान्यता है कि शिवलिंग की जिसने भी मन से पूजा की उसकी मुराद जरुर पूरी हुई है. ये शिवलिंग है महासमुंद जिले के किशनपुर गांव में. इस शिवलिंग की खासियत ये है कि ये एक पेड़ की जड़ से निकला है. जिसे एक शख्स ने पेड़ की सफाई के दौरान देखा था.तब से इसकी स्थापना के बाद पूजा अर्चना शुरु की (glory of self manifested Lingeshwar Mahadev )गई.
महासमुंद के स्वप्रकट लिंगेश्वर महादेव की महिमा
महासमुंद जिले में स्वप्रकट शिवलिंग आस्था का केंद्र बना हुआ है. लोग इस शिवलिंग को लिंगेश्वर महादेव के नाम से पुकारने लगे है. छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिला के पिथौरा विकास खण्ड अंतर्गत ग्राम किशनपुर में स्थित स्वप्रकट शिवलिंग लिंगेश्वर महादेव भी लोगों का आस्था का केंद्र बना हुआ है.
कैसे प्रकट हुआ शिवलिंग :ग्राम किशनपुर के लोगों का कहना है कि '' लिंगराज बारीक के खेत में एक पेड़ के नीचे शिवलिंग प्रकट हुआ. ये बात गांव के ही शौकीलाल सेठ को सपने में पता चली. तभी शौकीलाल सेठ ने दिनांक 28 जुलाई 2022 को हरियाली अमावस्या के दिन उस खेत में जाकर पेड़ के नीचे पूजा पाठ करने के लिए साफ सफाई की. तभी वहां शिवलिंग आकार का एक काला पत्थर दिखाई दिया. शौकीलाल सेठ ने उस पत्थर का पूजा-अर्चना कर अपने घर वापस आकर ग्रामीणों को इस घटना की जानकारी दी. इसके बाद धीरे -धीरे ग्रामीण वहां पहुचने लगे . भीड़ बढ़ते गया और लोग स्वप्रकट शिवलिंग का पूजा आरती, जलाभिषेक करने लगे. शिव भक्तों का मानना है कि स्वप्रकट शिवलिंग लिंगेश्वर महादेव का पूजा करने से मांगी मुराद पूरी होने लगी है. तब से यहां प्रत्येक दिन हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ लगती है.
कैसे पड़ा लिंगेश्वर महादेव नाम : लिंगराज बारीक के खेत में महादेव प्रकट हुए (Lingeshwar Mahadev of Mahasamund ) हैं. इसलिए उक्त स्वप्रकट शिवलिंग का नाम यहां के ग्रामीणों ने एकराय हो कर लिंगेश्वर महादेव रखा. छत्तीसगढ़ के लगभग सभी जिलों के साथ-साथ अन्य राज्य ओडिसा, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तरप्रदेश से भी लोग दर्शन करने पहुच रहे हैं. भक्तों की भारी भीड़ तो सभी दिन रहती ही है. लेकिन सोमवार को भीड़ कई गुना बढ़ जाती है. लगभग दो किलोमीटर लंबी लाइन के कतार में लोग कई घंटे खड़े होकर अपनी अपनी बारी का इंतजार कर दर्शन करते हैं.
मंदिर के आसपास सज गई दुकानें : ग्राम किशनपुर से खैरखुटा जाने वाली सड़क के दोनों छोर में अनेक तरह के दुकानें सजी रहती हैं. जिसमें खासकर महिलाओं के शृगांर सामाग्री , बच्चों के लिए आइक्रिम, गुपचुप चाट , चाय नास्ता, कपडे की दुकान, शरीर में बनाने वाली टेटू (गोदना) , कांस पीतल के सामान, बांस से निर्मित घरेलु उपयोग के सामान लोगों को और भी लुभा रही है. जिसके कारण किशनपुर आजकल आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.'
लग जाती है नारियल की ढ़ेरी : भक्तों के द्वारा चढ़ाए गए नारियल को केवल प्रसाद ही बनाया जाता है. यहां के बच्चे महिला पुरुष सब मिलकर दिन भर पाली पाली से भक्तों को मुठ्ठीभर भर कर नारियल प्रसाद वितरण करते हैं. प्रत्येक सोमवार को खीर भी वितरण किया जाता है .15 से 20 लोग हमेशा प्रसाद के लिए नारियल फोड़ते रहते हैं. उसके बाद भी बचा हुआ नारियल की ढेरी लग जाती है.
लिंगेश्वर महादेव में भक्तों द्वारा अपनी अपनी श्रद्धा से चढ़ाये गये रुपये प्रति दिन कई हजार रुपये होता है. जिसका पूरा हिसाब किताब ग्रामीणों द्वारा प्रत्येक मंगलवार को शाम को किया जाता है. शौकीलाल सेठ और हेमसागर प्रधान के नाम से बैंक में संयुक्त खाता खोला गया है. उस बैंक खाते में पूरी राशि जमा कर दी जाती है ग्रामीणों का कहना की पूरा हिसाब किताब में पार्दर्शिता बनी रहे क्योंकि आगे चलकर मंदिर का निर्माण कराना है.