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आओ स्कूल चलें: डर के साए में पढ़ रहे नौनिहालों की कौन सुनेगा गुहार

हमारे अभियान 'आओ स्कूल चलें' के दौरान हमने प्रदेश की पॉजिटिव और बेहतर तस्वीरें आप तक पहुंचाई थी, लेकिन अब हम सवाल करेंगे उन विद्यालयों के बारे में, जहां छोटी-छोटी सुविधाओं के लिए भी मासूम तरस रहे हैं. आज हम आपको एक ऐसे स्कूल में लेकर चलेंगे, जहां पढ़ाई करने में नौनिहालों को डर लगता है.

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Published : Jul 14, 2019, 9:28 PM IST

स्पेशल स्टोरी

महासमुंद : शिक्षा के इस मंदिर में अपना भविष्य गढ़ने के लिए आने वाले नौनिहाल हर वक्त डर के साए में पढ़ने को मजबूर हैं. न जाने कब ये दरारें दीवार से टिकने का साहस छीन लें और बिल्डिंग की छत सीधे उन पर आ गिरे.

आओ स्कूल चलें

नहीं हो रही स्कूलों की मरम्मत
ऐसा नहीं है कि सिस्टम को नौनिहालों पर हो रहे इस सितम की जानकारी नहीं है. पता भी है और विभाग की ओर से रेनोवेशन के लिए रकम भी जारी कर दी गई है. बस अगर कुछ नहीं हुआ है तो स्कूल भवन के जख्मों पर मरम्मत का मरहम लगाने का काम.

गिरने की कगार पर स्कूल भवन
महासमुंद जिले में 1280 प्राथमिक, 491 मिडिल 184 हाईस्कूल और हाईस्कूल संचालित हैं. कुल 1955 सरकारी स्कूलों में एक लाख 65 हजार 526 छात्र-छात्राएं अज्ञानता के अंधेरे को चीरकर ज्ञान की रोशनी से रू-ब-रू होने आते हैं. इन्हीं स्कूलों में से 177 स्कूलों को मरम्मत की दरकार है, तो वहीं 71 प्राथमिक और मिडिल स्कूल ऐसे हैं, जो या तो जर्जर हैं या उनका भवन गिर चुका है.

नहीं की गई वैकल्पिक व्यवस्था
विभाग ने स्कूलों को जर्जर तो घोषित कर दिया, लेकिन वैकल्पिक स्ववस्था के लिए कदम नहीं उठाए. इसका नतीजा यह हुआ कि, नौनिहालों के साथ-साथ यहां पढ़ाने वाले शिक्षकों का क्या हाल है. यह आप खुद ही सुन लीजिए.

घट रही छात्र-छात्राओं की संख्या
स्कूल की जर्जर हालत और ही वह सबसे बड़ी समस्या है, जिसकी वजह से यहां पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं की संख्या दिन-ब-दिन घटती चली जा रही है.

कैसे होगा सुधार
एक ओर जहां सरकार 'स्कूल आ पढ़े बर जिंदगी ला गढ़े बर' के स्लोगन के सहारे शिक्षा का स्तर सुधारने की पुरजोर कोशिश कर रही है. वहीं दूसरी ओर से महासमुंद जिले में स्कूलों की मरम्मत के लिए महज 65 लाख रुपये का बजट है. इससे आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि महज इतनी कम रकम में स्कूलों की दशा में सुधार कैसे आएगा.

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