छत्तीसगढ़

chhattisgarh

ETV Bharat / state

हसदेव अरण्य क्या है, क्यों कट रहे पेड़? ग्रामीणों के संघर्ष की पूरी दास्तान

Hasdev Aranya हसदेव जंगल को काटे जाने का विरोध लगातार तेज होता जा रहा है. तीन राज्यों की सीमा क्षेत्र में फैले हसदेव को बचाने के लिए अब बुद्धिजीवी और पर्यावरण से जुड़े लोग भी आंदोलन में कूदे.

Rakesh Tikait supported the movement
हसदेव पर सियासी हंगामा

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Dec 28, 2023, 7:36 PM IST

Updated : Dec 30, 2023, 11:53 AM IST

हसदेव पर सियासी हंगामा

कोरबा:हसदेव का जंगल छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा की सीमा से लगा है. हसदेव के जंगल की कटाई फिलहाल आंदोलन के चलते बंद हो गई है. गांव वालों को डर है कि जैसे ही उनका आंदोलन धीमा पड़ेगा जंगल की कटाई फिर से शुरु हो जाएगी. जंगल को बचाने के लिए अब पर्यावरण से जुड़े लोग और बुद्धिजीवी भी सामने आए हैं. कोयला खदान का विरोध करने वाले ग्रामीणों का कहना है कि दो सालों से पेड़ों की कटाई चल रही है लेकिन राजनीतिक दलों ने आवाज तक नहीं उठाई. राजस्व बढ़ाने के लिए ग्रामीणों की जान जोखिम में डालकर खदान के नाम पर पेड़ों को काटा जा रहा है.

खदान की नीलामी केंद्र ने की थी:कोरबा के हसदेव में कोयले का बड़ा भंडार मिला है. केंद्र सरकार ने खदान की माइनिंग के लिए निलामी कर दी. खदान की नीलामी होते ही खनन कंपनी ने अपना काम शुरु कर दिया. ग्रामीणों का आरोप है कि खदान के लिए पेड़ों की इतनी बली ले ली गई कि पूरा इलाका जंगल से मैदान में तब्दील हो गया. करीब एक दशक से कोयले के भंडार को बाहर निकलाने के लिए कंपनी के लोग हसदेव का सीना छलनी कर रहे हैं. कांग्रेस की सरकार में भी खदान का विरोध हुआ लेकिन पेड़ों की कटाई का काम नहीं रुका. ग्रामीणों ने जब पेड़ों की कटाई के विरोध में आंदोलन किया तो उल्टे पुलिस बल तैनात कर दिया गया.

हसदेव अरण्य क्या है

खदान के नाम पर सियासी खेल:मुख्यमंत्री विष्णु देव साय खुद कह चुके हैं कि कांग्रेस की सरकार में पेड़ों के कटाई की इजाजत मिली थी. साय ने पेड़ों की कटाई का जिम्मेदार भी कांग्रेस को ठहराया था. साय के आरोपों पर कांग्रेस की ओर से पूर्व डिप्टी सीएम और विकास उपाध्याय ने कहा था कि बीजेपी के आरोप निराधार हैं. बीजेपी को चाहिए कि खदान के नाम पर पेड़ों की कटाई तुरंत रुके. पेड़ों की कटाई किए जाने से हसदेव नदी के कैचमेंट एरिया पर भी इसका बड़ा असर पड़ेगा. हसदेव नदी पर निर्मित प्रदेश के सबसे ऊंचे मिनी माता बांगो बांध से बिलासपुर, जांजगीर-चाम्पा और कोरबा के किसानों को पानी मिलता है. जंगल मे हाथी समेत 25 से ज्यादा जंगली जीव रहते हैं. हसदेव जंगल करीब 1 लाख 70 हजार हेक्टेयर में फैला है. हसदेव नदी का पानी जब स्टोर नहीं हो पाएगा तब इंसान और जंगली जीव दोनों मुश्किल में पड़ जाएंगे. हसदेव के जंगल को जैव विविधता के लिए भी जाना जाता है. जंगल से सटे और आस पास के इलाकों में गोंड, लोहार, उरांव, पहाड़ी कोरवा जैसी आदिवासी जातियों के 10 हजार लोगों का घर है. भूगोल के जानकारी इस इस जंगल को मध्य भारत का फेफड़ा भी मानते हैं. जंगल के कटने से पर्यावरण का संतुलन तो बिगड़ेगा ही 10 हजार लोगों पर भी इसका सीधा असर पड़ेगा. करीब 2 हजार वर्ग किलोमीटर जो हाथी रिजर्व क्षेत्र है उस पर आफत मंडराने लगेगा. हाथियों और इंसानों के बीच टकराव की घटनाएं भी बढ़ेंगी.

1136 हेक्टेयर जंगल काटा जाना है:वर्तमान में यहां परसा ईस्ट केते बासेन खदान के लिए कुल 1136 हेक्टेयर जंगल काटा जाना है. कहा जा रहा है कि इसमें से 137 हेक्टेयर जंगल के क्षेत्र को काटा जा चुका है. फिलहाल परसा ईस्ट केते बासेन खदान को लेकर की विरोध भी चरम पर पहुंच चुका है. क्षेत्र में लगभग 23 कोल ब्लॉक प्रस्तावित हैं, कोयले का अकूत भंडार यहां समाया हुआ है. इन्हीं में से एक परसा कोल ब्लॉक को पिछले वर्ष अप्रैल माह में राज्य की भूपेश सरकार ने अंतिम वन स्वीकृति दे दी थी. खदान को स्वीकृति मिलने के बाद लगातार ग्रामीण इस कोल परियोजना का विरोध कर रहे हैं. परसा कोल ब्लॉक के लिए 841 हेक्टेयर क्षेत्र प्रस्तावित है. पर्यावरण एक्टिविस्ट आलोक शुक्ला की मानें तो यहां से लगभग 700 लोगों को विस्थापित किया जाएगा, जबकि लगभग 4 लाख पेड़ों की कटाई होगी. एक तरह से समृद्ध वन पूरी तरह से साफ हो जाएगा.

आंदोलन को और तेज करने की तैयारी: आंदोलन में शामिल ग्रामीणों का कहना है कि हम दो साल से धरने पर बैठे हैं लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है. पूरा क्षेत्र पांचवी अनुसूची में आता है. जंगलों को काटने और कोयला खदान खोलने के लिए सरकार और निजी कंपनी को ग्राम सभा की अनुमति चाहिए. बिना अनुमति के ही ग्राम सभा को दरकिनार कर खदान के लिए जमीन आवंटित कर दी गई. जंगल को बचाने के लिए पदयात्रा की गई, राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपा गया लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. ग्रामीणों का कहना है कि बिजली नहीं होगी तब भी हम जिंदा रह सकते हैं. सांस और पानी अगर गांव वालों से छीन लिया गया तो कोई भी जिंदा नहीं रह पाएगा.

टिकैत का सरकार पर निशाना: किसान आंदोलन के मुखिया रहे राकेश टिकैत ने कहा कि क्या इसी दिन के लिए आदिवासी मुख्यमंत्री लोगों ने चुना. राकेश टिकैत ने वीडियो जारी करते हुए कहा कि जिस तेजी से जंगल काटे जा रहे हैं उससे आने वाले दिनों में जंगल बचेगा ही नहीं. टिकैत ने कहा कि अगर पेड़ों की कटाई नहीं रुकी तो आदिवासियों के साथ मिलकर बड़ा आंदोलन करेंगे.

हसदेव में पेड़ों की कटाई का मामला गरमाया, आदिवासियों के समर्थन में उतरे युवक कांग्रेसी
हसदेव में पेड़ों की कटाई के विरोध में युवक कांग्रेस का हल्ला बोल
हसदेव में पेड़ों की हत्या पर गर्माया सियासी पारा, बीजेपी के वार पर कांग्रेस का प्रहार
Last Updated : Dec 30, 2023, 11:53 AM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details