कोरबा: हिन्दी हैं हम वतन है, हिन्दोस्तां हमारा...यह नारा दशकों से हिन्दीभाषियों की जुबान पर है. हिन्दी देश में सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा तो है, लेकिन आजतक इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं मिल सका है. सरकारी स्कूलों में हिन्दी को प्राथमिकता तो मिलती है, लेकिन पढ़ाई के बाद बात जब करियर और नौकरी की हो तो ज्यादातर अंग्रेजी माध्यम वाले बाजी मार ले जाते हैं.
ETV भारत ने हिन्दी दिवस पर कुछ साहित्यकारों से बात की जो हिन्दी की साधना करते हैं, जिनके लिए हिन्दी सिर्फ एक भाषा नहीं बल्कि इससे कहीं अधिक है. हिन्दी को लेकर वरिष्ठ साहित्यकार माणिक विश्वकर्मा 'नवरंग' कहते हैं कि हिन्दी की जो स्थिति पहले थी. अब भी वहीं है, इसमें कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ है. हिंदी को 1949 में राजभाषा का दर्जा दिया गया था. तब से लेकर अबतक हालात वैसे ही हैं. 1967 में संविधान में किए गए संशोधन में कहा गया था कि जबतक भारत का कोई भी राज्य हिन्दी का विरोध करेगा. तबतक इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया जा सकेगा. यहीं वजह है कि हिन्दी को आजतक राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया जा सका है.
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स्कूल कॉलेजों में भी अंग्रेजी पर फोकस ज्यादा