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कोरबा: स्कूलों में छात्रों को कोरोना से बचाने कैसी है तैयारी ? - स्कूलों की पड़ताल

कोरोना काल के दौरान छत्तीसगढ़ में 15 फरवरी से हायर सेकेंडरी के स्कूल खोल दिए गए. क्लास 9वीं से 12वीं तक की कक्षाएं संचालित होने लगी. जिसके बाद कई शहरों के स्कूलों में कोरोना के केस सामने आने लगे हैं. राजनांदगांव, अंबिकापुर और सूरजपुर में छात्र कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं. स्कूलों में कोरोना की दस्तक से अभिभावक परेशान हैं. ETV भारत की टीम ने कोरबा के स्कूलों की पड़ताल की है. यह जानने की कोशिश की गई कि स्कूलों में कोरोना से बचाव के क्या-क्या उपाय किये गए हैं.

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कोरोना से बचाने कैसी है तैयारी ?

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Published : Feb 20, 2021, 10:50 PM IST

कोरबा:छत्तीसगढ़ में 11 महीने बाद 15 फरवरी से स्कूल तो जरूर खुल गए, लेकिन अब प्रदेश के कई स्कूलों में छात्र और स्कूल स्टाफ कोरोना संक्रमित हो रहे हैं. 15 फरवरी से स्कूलों को खोलने का फरमान जारी करने के बाद राजनांदगांव में बच्चे और स्टाफ पॉजिटिव मिले. सूरजपुर में भी यही हुआ. ऐसे में कोरबा जिले के कुछ स्कूलों की पड़ताल ETV भारत ने की है. इस दौरान यह बात सामने आई कि कोरोना से लड़ाई के लिए सरकारी स्कूलों में संसाधन बेहद सीमित हैं. कई स्कूल तो ऐसे हैं जहां सैनेटाइजर तक की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है. ऐसे में स्कूल का संचालन करने को लेकर विशेषज्ञ इसका विरोध भी कर रहे हैं. दूसरी तरफ बच्चों के भविष्य के मद्देनजर एक वर्ग स्कूल खोलने की वकालत भी कर रहा है.

स्कूलों में छात्रों को कोरोना से बचाने कैसी है तैयारी ?

ETV भारत की टीम ने जिले के उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पीडब्ल्यूडी, रामपुर का निरीक्षण किया. यहां प्राचार्य, शैक्षणिक स्टाफ और बच्चों को सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों के साथ स्कूल संचालन के लिए प्रयासरत दिखे. प्राचार्य ने यह भी बताया कि उन्होंने सैनेटाइजर और मास्क का अपने स्तर पर ही इंतजाम किया है. निगम की ओर से स्कूल को एक बार जरुर सैनिटाइज किया गया था, लेकिन सैनिटाइजर उतनी मात्रा में नहीं मिला जितने की हमें जरूरत है.

टाइम स्लॉट के अनुसार छात्रों को बुलाया जा रहा

स्कूल में बच्चों की आवाजाही भी जारी है. हालांकि, शत-प्रतिशत उपस्थिति नहीं है. सिर्फ नौवीं से बारहवीं तक के छात्रों को ही स्कूल बुलाया जा रहा है. इन्हें भी टाइम स्लॉट के अनुसार बुलाया जा रहा है.

बिलासपुर : छात्रों में दिख रहा कोरोना का डर, स्कूल आने से बच रहे छात्र

जिले के कई स्कूल ऐसे भी हैं, जहां एक ही क्लास में बच्चों को बिठाया जा रहा है. जैसा कि कोरोना से पहले किया जाता था. हालांकि, शहर के स्कूलों में सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करवाने का प्रयास शिक्षक कर रहे हैं.

जिन्हें सर्दी-खांसी, उन्हें दी जा रही छुट्टी

शिक्षा विभाग ने राज्य सरकार का आदेश जारी किया है कि जिन बच्चों को सर्दी-खांसी है, उन्हें स्कूल में प्रवेश न दिया जाए. सर्दी और जुकाम से पीड़ित शिक्षकों को भी स्कूल ना बुलाया जाए. अब इस तरह के सामान्य लक्षण वाले बच्चों और शिक्षकों के चिन्हांकन को लेकर भी पेंच फंसा हुआ है. यदि किसी ने बताया तो ठीक, नहीं तो वह लगातार स्कूल में उपस्थित बना रहेगा.

आखिर बच्चों को स्कूल भेजने से क्यों डर रहे अभिभावक ?

नहीं काटा जाएगा सीएल

राज्य शासन के नियम हों या फिर जिला स्तर के आदेश. स्कूलों में पहुंचते-पहुंचते प्राचार्य इन्हें अपनी समझ के अनुसार इस्तेमाल कर लेते हैं. कई स्कूल के प्राचार्य शिक्षकों को कोरोना काल में भी स्कूल आने का दबाव बना रहे हैं. सीएल काट लेने की चेतावनी भी दे रहे हैं, जबकि पीडब्ल्यूडी, रामपुर सहित जागरूक प्राचार्यों का साफ तौर पर कहना है कि राज्य शासन के निर्देश के अनुसार सर्दी जुकाम से पीड़ित शिक्षकों को स्कूल ना बुलाया जाए. उन्हें 14 दिन की क्वॉरंटाइन अवधि में भेजने के बाद ही स्कूल में प्रवेश दिया जाए. इस दौरान उनका कोई सीएल नहीं काटा जाएगा. उन्हें इन नियमों से बाहर रखा गया है.

स्कूल खोलने का समर्थन

स्कूल खोले जाने को लेकर एक वर्ग इसका पूरी तरह समर्थन कर रहा है. पड़ताल में यह बात भी सामने आई कि शिक्षक बच्चों के भविष्य को लेकर भी चिंतित हैं. अप्रैल से ही नौवीं से बारहवीं तक के छात्रों को परीक्षा देनी है. 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं भी है. ऐसे में उनके प्रैक्टिकल वर्क के साथ ही प्रोजेक्ट पूरा कराना भी जरूरी है. पढ़ाई से जुड़े कई कार्य ऐसे हैं, जिन्हें ऑनलाइन माध्यम से पूरा नहीं कराया जा सकता. इसलिए एक वर्ग स्कूल खोलने का समर्थन भी कर रहा है. ताकि बच्चों की पढ़ाई का नुकसान ना हो.

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