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आपदा में 'अपने लोगों' को बिलखता छोड़ गायब हैं कोरबा सांसद ज्योत्सना महंत ? - Corona infection in Chhattisgarh

जब कोई आपदा से गुजर रहा हो तो उन्हें उम्मीद रहती है कि उन्होंने जिसे चुना है वो उनके साथ दिखे और थोड़ी राहत मिले. लेकिन क्या हो जब उनका चुना हुआ जनप्रतिनिधि ही उन्हें छोड़ गायब हो जाए ? जी हां, इन दिनों पूरा देश कोरोना की चपेट में है. चारों ओर त्राहिमाम मचा है. हर कोई मदद के लिए इधर-उधर भाग रहा है. पने जनप्रतिनिधि से थोड़ी राहत की उम्मीद लगा रहे हैं, लेकिन इस बीच कई ऐसे भी जनप्रतिनिधि हैं जो अपने क्षेत्र की जनता को भगवान भरोसे छोड़ चुरके हैं. ये रिपोर्ट है छत्तीसगढ़ के कोरबा लोकसभा क्षेत्र से...जहां की सांसद पर अपने क्षेत्र और क्षेत्र की जनता की अनदेखी का आरोप है.

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कोरबा सांसद ज्योत्सना महंत

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Published : May 4, 2021, 10:27 PM IST

Updated : May 5, 2021, 1:29 PM IST

कोरबा: छत्तीसगढ़ की उर्जाधानी कोरोना वायरस की दूसरी लहर की मार से कराह रही है. लोग बदहाल स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ कुप्रबंधन से उपजे हालातों के कारण आक्रोशित हैं. हालात यह है कि अब मौतों का आंकड़ा हर दिन दहाई में और नए संक्रमितों की संख्या हजार में सामने आ रहा है. 14 लाख की जनसंख्या वाले कोरबा में यह आंकड़े डरा रहे हैं.

कोरबा सांसद ज्योत्सना महंत गायब

ऐसे में अब जनता सवाल पूछ रही है कि जिन जनप्रतिनिधियों को उन्होंने वोट देकर संसद में भेजा वह गायब क्यों हैं ? कोरबा सांसद ज्योत्सना महंत छत्तीसगढ़ में हाई-प्रोफाइल नेता के तौर पर पहचानी जाती हैं. पति चरणदास महंत छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष हैं, जो यहां के मुख्यमंत्री के बेहद करीबी माने जाते हैं. कई बार सीएम भूपेश बघेल खुद भी सार्वजनिक मंच से यह कहते रहे हैं कि वह विधानसभा अध्यक्ष से सलाह लेने के बाद की लोकहित से जुड़े कई अहम फैसले लेते हैं.

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कहां हैं कोरबा की सांसद ज्योत्सना महंत ?

ऐसे में जब कोरोना महामारी अपने सबसे भयावह रूप में है, तब यह सवाल उठना लाजमी है कि सांसद अपने निर्वाचित क्षेत्र के दायित्वों से पीछे क्यों हट रही हैं ? क्यों नहीं जिले के हालातों पर उनकी कोई प्रतिक्रिया आती है ? ऐसा कौन सा ठोस प्रयास उन्होंने अपने स्तर पर किया जिससे लोगों को बड़ी राहत मिली हो ?

सबसे हाई प्रोफइल सीट झेल रही उपेक्षा का दंश

कोरबा लोकसभा में आठ विधानसभा है. जिसके लिहाज से कोरबा लोकसभा राजनीतिक गलियारे में सबसे हाई प्रोफाइल सीट के रूप में जाना जाता है. कोरबा लोकसभा सीट में मरवाही, कोरबा, कटघोरा, रामपुर पाली-तानाखार, मनेंद्रगढ़, भरतपुर-सोनहत और बैकुंठपुर विधानसभा क्षेत्र शामिल है. इनमें 4 विधानसभा सीट कोरबा, तीन कोरिया और एक बिलासपुर जिले में आता है. छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीट में से केवल दो कांग्रेस के पास है, जिनमें से एक कोरबा है.

ताकतवर लोगों में शुमार हैं सांसद, फिर भी बदहाल है जनता

कोरबा लोक सभा सीट के अंतर्गत आने वाले कोरबा विधानसभा के विधायक जयसिंह अग्रवाल छत्तीसगढ़ शासन में राजस्व एवं आपदा प्रबंधन मंत्री भी हैं. इसके साथ ही सांसद ज्योत्सना महंत के पति कोरबा जिले के पड़ोसी जिले जांजगीर चांपा के सक्ति से विधायक और छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष हैं. इस लिहाज से प्रदेश में शायद ही ऐसी कोई दूसरी विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र हो जो कि राजनीतिक दृष्टिकोण से इतना अधिक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली हो. बावजूद इसके कोरबा जिले के स्वास्थ्य सुविधाओं ने यहां के स्थानीय निवासियों को रुला दिया है.

कोई ठोस कदम की कोई जानकारी नहीं

कोरोना की दूसरी लहर में अप्रैल को पीक समय कहा जा सकता है. सांसद ज्योत्सना महंत ट्विटर पर खासी सक्रिय रहती हैं, लेकिन पूरे अप्रैल में उन्होंने एक भी ऐसा ट्वीट नहीं किया जिसमें वह अधिकारियों को निर्देशित करें या अपने स्तर पर इस महामारी से लड़ने के लिए किसी प्रयास की कोई जानकारी देती हुई दिखी हों.

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एक महीने में जनता के लिए एक ट्विट नहीं

उनके अधिकतर ट्वीट में केंद्र सरकार की आलोचना से लेकर खास दिवस की शुभकामनाएं शामिल हैं. राहुल गांधी के कुछ ट्वीट को उन्होंने रि-ट्वीट भी किया है, लेकिन ऐसी एक जानकारी नहीं दी है. जिसमें वह यह बताती हुई दिखें कि व्यक्तिगत तौर पर इस महामारी से लड़ने के लिए उन्होंने क्या प्रयास किए हैं ? अपने लोकसभा क्षेत्र के हालात बदलने के लिए उन्होंने क्या किया जिससे कि लोगों को राहत मिल सके ?

सांसद निधि सस्पेंड, लेकिन जो मिला वो काम भी अधूरा

महामारी के इस दौर में सांसदों को सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (MP Local Area Development Scheme) के अंतर्गत दी जाने वाली सालाना 5 करोड रुपये की सांसद निधि को केंद्र सरकार ने फिलहाल सस्पेंड कर दिया है. जिसके कारण है यह राशि अभी नहीं मिली है, लेकिन वित्तीय वर्ष 2019-20 में अंतिम बार सांसद महंत को ढाई करोड़ रुपये केंद्र से आवंटित किए गए थे. इसमें से उन्होंने 81 निर्माण कार्य कोरिया जिले को आवंटित किए थे, जिसकी राशि 1 करोड़ से 6 लाख रुपये थी. इन कामों को कागजों में पूरा बताया गया है. जबकि इसी साल कोरबा जिले को 1 करोड़ 45 लाख रुपये का आवंटन मिला, लेकिन इस फंड से एक रुपए भी जनकल्याणकारी योजनाओं पर खर्च नहीं किए गए हैं. यह भी एक बड़ा सवाल है कि जब पैसे मिले थे, तब यह जनहित में खर्च क्यों नहीं हो सके.

दो जगह निवास स्थान, कहीं भी नहीं मिलतीं

कोरबा जिले में दो स्थानों पर विधानसभा अध्यक्ष और सांसद निवास है. शहर के दर्री रोड पर विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत तो शहर के पंचवटी विश्राम गृह के बाजू में सांसद का एक बड़ा सरकारी बंगला है. जहां बड़े-बड़े पोस्टर लगे हुए हैं, जिसमें सांसद ज्योत्सना महंत के साथ उनका पूरा परिवार दिखाई देता है. इन बंगलों में नेम प्लेट भले ही सांसद के नाम की लगी हो, लेकिन वह यहां मौजूद नहीं रहती हैं. ऐसे बेहद कम अवसर आते हैं, जब सामान्य दिनों में भी सांसद यहां लोगों से मुलाकात करते हुए दिख जाएं. जिले में उनका आगमन भी बेहद गोपनीय होता है. सीमित लोगों की ही इसकी जानकारी रहती है. हालात यह है कि सांसद निवास में उनके नाम का आवेदन स्वीकार करने वाला तक कोई कर्मचारी मौजूद नहीं रहता.

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निगरानी समिति के अध्यक्ष होते हैं सांसद

जिला स्तर पर किए जाने वाले कामों की निगरानी के लिए जिला विकास समन्वय एवं निगरानी समिति (दिशा) के सांसद अध्यक्ष होते हैं. प्रशासन द्वारा इस समिति की बैठकें नियमित अंतरालों पर आयोजित की जाती है और सांसद को बताया जाता है कि राज्य और केंद्र सरकार से उन्हें कितने पैसे मिले ? उन्हें किस तरह खर्च किया गया, जन कल्याणकारी योजनाओं की क्या स्थिति है ? कोई कार्य अधूरे रह गए तो क्यों अधूरे हैं और किस योजना पर कितने पैसे खर्च हुए ? सारी जानकारी सांसद को दी जाती है. इन बैठकों में भी सांसद शामिल होती रही हैं, लेकिन यह बैठक भी औपचारिकता मात्र ही साबित होती है. कार्यों के अपूर्ण होने की जानकारी इन बैठकों में अधिकारियों द्वारा सांसद के समक्ष रखी जाती है, लेकिन वह कागजों में दर्ज हो जाते हैं. बैठक का कोरम पूरा हो जाता है और व्यवस्था अपनी गति से काम करती है, लेकिन यदि सांसद चाहे तो अपूर्ण कार्यों के लिए अफसरों की जवाबदेही तय कर सकती हैं. जब राज्य में उनकी पार्टी की सरकार है, तब उनकी बातों को नकारा नहीं जा सकता. उनकी अनुशंसा पर किसी भी अधिकारी पर कड़ी कार्रवाई होना तय है, लेकिन अबतक ऐसा होते नहीं दिखा.

इन मोर्चे पर जिले में प्रबंधन बदहाल

कोरबा के साथ ही प्रदेश के कोरिया महासमुंद सहित चार स्थानों पर मेडिकल कॉलेज की स्थापना की घोषणा हुई थी. कोरबा को छोड़कर शेष तीन स्थानों पर RT-PCR टेस्ट की सुविधा शुरू हो चुकी है, लेकिन कुप्रबंधन के कारण कोरबा में RT-PCR लैब अबतक शुरू नहीं हो सका है. कोरबा जैसी औद्योगिक जिले में कोरोना के इलाज के लिए बेहद महत्वपूर्ण सीटी स्कैन तक की सुविधा दूसरी लहर के शुरू होने के 20 दिन तक नदारद थी. हालांकि खबर बाहर आने के कुछ दिन पहले ही सीटी स्कैन की सुविधा शुरू कर दी गई है. लेकिन जिले में अब भी एक भी सरकारी सीटी स्कैन मशीन मौजूद नहीं है.

लैब के साथ किट की भारी कमी

स्वास्थ्य विभाग के पास टेस्ट किट की कमी है. RT-PCR में लेटलतीफी के साथ रैपिड टेस्ट किट की संख्या भी सीमित है. लोगों का समय पर टेस्ट हो जाए इसके लिए भी कई बार भटकते हैं. 850 बेड वाले सिपेट के आइसोलेशन सेंटर को पिछले वर्ष तैयार किया गया था, लेकिन साल भर के दौरान भी यहां कोई तैयारी नहीं की गई. दूसरी लहर में जब मरीजों की संख्या बढ़ने लगी तब आनन-फानन में यहां हाल ही में 128 ऑक्सीजन बेड की व्यवस्था की गई है. वेंटिलेटर की संख्या में भी कोई खास इजाफा नहीं हुआ है. वर्तमान में जिले में केवल 29 वेंटिलेटर मौजूद हैं. इनमें से भी 10 वेंटिलेटर बालको ने हाल ही में प्रशासन को उपलब्ध कराया है.

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सांसद प्रतिनिधि का दावा पल-पल की लेती हैं खबर

महामारी के दौर में सांसद के निष्क्रिय रहने का आरोप लोग लगा रहे हैं. भाजपा के साथ ही आम लोग भी सांसद द्वारा निष्क्रियता दिखाने की बात कह रहे हैं, लेकिन सांसद प्रतिनिधि हरीश परसाई का कहना है कि सांसद लगातार सक्रिय हैं. वह नियमित तौर पर प्रशासनिक अधिकारियों के साथ कांग्रेस के लोगों से जिले का अपडेट लेती रहती हैं. दिशा-निर्देश मिलता रहता है कि किस तरह से परिस्थितियों को काबू में किया जाए. सांसद प्रतिनिधि का यह भी दावा है कि हाल ही में ही सिपेट में जिन ऑक्सीजन बेड का उद्घाटन राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने किया था, वह सांसद की पहल पर ही संभव हो सका है.

Last Updated : May 5, 2021, 1:29 PM IST

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