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SPECIAL : महिलाओं ने बदल दी गांव की तकदीर, महुआ के लड्डुओं ने देशभर में दिलाई पहचान

कोरबा के 'कोई' नाम के गांव में कभी महुआ से घर-घर शराब बना करती थी, जिससे कई परिवार बर्बाद हो रहे थे. लेकिन वनांचल गांव की महिलाओं ने नशे के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले महुआ को संजीवनी में बदल दिया है. महिलाओं ने महुए से लड्डू बनाने का काम शुरू किया है.

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Published : Jun 16, 2020, 9:01 AM IST

Updated : Jun 16, 2020, 9:12 AM IST

Women are making profits by making  Mahua ladoos in korba
महिलाओं ने बदल दी गांव की तकदीर

कोरबा : जिले का 'कोई' गांव जहां कभी पानी की तरह हर घर में शराब बहा करती थी, अब इसी महुआ ने यहां की महिलाओं को नई जिंदगी दी है. कभी शराब ने यहां के लोगों को बर्बाद कर दिया था. उस दौर में यहां होने वाले महुआ को लोग श्राप मानते थे, लेकिन आज यही महुआ इन ग्रामीणों के लिए संजीवनी बन गया है. आज इस महुए की महक छत्तीसगढ़ से निकलकर बेंगलुरू के आर्ट ऑफ लिविंग के शिविरों तक पहुंच चुकी है.

दरअसल, गांव की महिलाएं शराब और नशे से निजात पाने की कोशिश कर रही थीं. इसी बीच उन्हें महुए से लड्डू बनाने के बारे में पता चला. इसके बाद गांव की 8-10 महिलाओं ने महुए से लड्डू बनाने का काम शुरू किया. उनकी सफलता आज दूसरे गांव की 544 महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी और लोगों को जीने का जरिया दिया. इस गांव में बनने वाले लड्डू का आज वार्षिक टर्नओवर 10 से 12 लाख रुपए का है.

महुए के लड्डू बना रही महिलाएं

कुछ साल पहले की ही बात है, जब गांव में घर-घर महुआ से शराब बनाने का काम चलता था. तब गांव की 8-10 महिलाओं ने इन हालातों को बदलने की ठानी और हरियाली गैंग का गठन किया. महिलाएं घर-घर गईं, पंचायत के साथ मिलकर अवैध शराब बनाने और विक्रय करने वालों पर जुर्माना और दंड सुनिश्चित करवाया. फिर उन्होंने महुए के लड्डू बनाने के काम में एक्सपर्ट की सहायता ली. नाबार्ड से जुड़े कुछ एनजीओ ने महिलाओं की सहायता की. महुआ से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला लड्डू तैयार होने लगा, लड्डू की डिमांड बढ़ने लगी और अब छत्तीसगढ़ के साथ अन्य राज्यों में भी लड्डू का निर्यात किया जा रहा है.

महुआ लड्डू

लड्डू में औषधीय गुण

महुआ लड्डू तैयार करने के लिए महिलाएं महुआ बीनने वाले किसानों और जरूरतमंदों से इसे खरीद लेती हैं. इसके बाद इसे री-सायकल करके मूंगफली के दाने भी मिलाती हैं. फिर इसे मोतीचूर के लड्डुओं की तरह हाथ से तैयार कर डिब्बाबंद पैकिंग करते हैं. महिलाओं ने इसे संजीवनी लड्डू का नाम दिया है. इसका प्रमुख तौर पर पोषक तत्व की कमी दूर करने के लिए सेवन किया जाता है. कमजोर महिलाओं और बच्चों के लिए यह किसी टॉनिक की तरह होता है.

दान कर दी जमीन

गांव की ही महिला दरस राठिया ने हरियाली समूह के ऑफिस के लिए अपनी जमीन दान की है. महिलाओं ने लड्डू की बिक्री के लिए एक छोटी सी दुकान खोली है. यहां से सारे कार्यालय के काम और निर्यात करने की कागजी प्रक्रिया पूरी की जाती है.

सहकारी समिति का गठन

हरियाली समूह की महिलाओं ने सहकारी समिति का भी गठन किया है, जो सभी तरह का लेखा-जोखा और लड्डू को जिला, राज्य और राज्य के बाहर पहुंचाने के सभी काम करते हैं. इसके लिए महिलाओं ने सचिव के तौर पर डालेश्वर कश्यप को संगठन में शामिल किया है. गांव के कुछ पुरुष सदस्य भी अब इस काम में सहायता करते हैं. 'जहां चाह वहां राह' को सही साबित करते हुए आज गांव की महिलाओं ने मिसाल पेश की है. महिलाओं की मेहनत से आज कोरबा के महुए की महक बेंगलुरू समेत देश के कई बड़े शहरों में बिखरी है.

Last Updated : Jun 16, 2020, 9:12 AM IST

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