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आदिवासियों का हाल: न मास्क मिला, न सैनिटाइजर, 14 दिनों में सब्जी तक नहीं देखी

पहाड़ी कोरवा उन विशेष पिछड़ी जनजातियों में शामिल है, जिन्हें राज्य सरकार ने विलुप्तप्राय माना है. परिवार नियोजन या जनसंख्या नियंत्रण का कोई भी सरकारी कार्यक्रम इन पर लागू नहीं होता है. इस लिहाज से खासतौर पर इस समुदाय की सुरक्षा और भी जरूरी हो जाती है, हालांकि गांव तक अभी कोविड 19 का संक्रमण नहीं पहुंचा है, लेकिन कटघोरा के हॉटस्पॉट बनने के बाद अब एक तरह से पूरा कोरबा जिला ही रेड अलर्ट पर है.

ground report of pahadi korva tribals
पहाड़ी कोरवा

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Published : Apr 14, 2020, 1:37 PM IST

Updated : Apr 14, 2020, 1:57 PM IST

कोरबा: यह पहली बार होगा, जब कोई महामारी मलिन बस्तियों, गांवों में न फैलकर महानगरों में पैर पसार रही है. महानगर जितना बड़ा है, कोरोना पॉजिटिव मरीजों की तादाद भी उतनी ही बड़ी है. कोरोना जैसी महामारी गरीबों के गांव और मोहल्लों से नहीं बल्कि पासपोर्ट-वीजा के जरिए विदेशों से देश में आई है.

पहाड़ी कोरवा जनजाति पर विशेष रिपोर्ट

शायद यही कारण है कि दशकों से राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले पहाड़ी कोरवा आदिवासी इस महामारी के बचाव के तरीकों से भी अंजान हैं. प्रदेश सरकार के एलान के बाद भले ही मास्क के बिना घर से बाहर निकलना अब अपराध की श्रेणी में आ गया है, लेकिन जिले के मूल निवासी पहाड़ी कोरवा आदिवासियों को मास्क और सैनिटाइजर मिलना तो दूर, इसके उपयोग के तौर-तरीके तक नहीं पता हैं.

कोरोना के कहर से बेफिक्र कोरवा जनजाति

कोरबा जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर पहाड़ी कोरवा के गांव दूधीटांगर में 5 से 6 परिवार रहते हैं. देश में लॉकडाउन के कारण कोरवा जनजाति के लोगों की आजीविका पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है. गांव के लोग बताते हैं कि अफसर दाल, चावल, आलू-प्याज और राशन का सामान तो पहुंचा जाते हैं, लेकिन जितना उनके पास पहुंचता है, वो पर्याप्त नहीं है.

वनोपज चुनता कोरवा जनजाति का युवा

इस लॉकडाउन ने उनकी आजीविका पूरी तरह से खत्म कर दी है. पहाड़ी कोरवा आदिवासियों के आय का मुख्य साधन जंगल से मिलने वाले धूप, महुआ जैसे वनोपज हैं. जिसे वे जंगल से चुनकर हाट-बाजारों में बेचते हैं. लॉकडाउन के बाद से साप्ताहिक हाट-बाजारों पर पूरी तरह से प्रतिबंध है. इससे अब इनके सामने रोजी-रोटी का संकट आ गया है.

पेड़ के नीचे बैठा कोरवा जनजाति का एक बच्चा

नहीं मिला मास्क और सैनिटाइजर

दूधीटांगर गांव के मुखिया चरण सिंह बताते हैं कि कोरोना के बारे में प्रशासनिक अधिकारियों से सिर्फ इतना पता चला है कि यह बीमारी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक फैलती है, इसलिए घर में रहना है और कहीं भी जाना नहीं है. उन्होंने बताया कि उन्हें मास्क और सैनिटाइजर जैसी कोई भी चीज नहीं मिली है और न ही इसके इस्तेमाल के बारे में उन्हें कुछ पता है.

नसबंदी पर है प्रतिबंध

पहाड़ी कोरवा उन विशेष पिछड़ी जनजातियों में शामिल है, जिन्हें राज्य सरकार ने विलुप्तप्राय माना है. परिवार नियोजन या जनसंख्या नियंत्रण का कोई भी सरकारी कार्यक्रम इनपर लागू नहीं होता है. इस लिहाज से खासतौर पर इस समुदाय की सुरक्षा और भी जरूरी हो जाती है, हालांकि गांव तक अभी संक्रमण नहीं पहुंचा है, लेकिन कटघोरा के हॉटस्पॉट बनने के बाद अब एक तरह से पूरा कोरबा जिला ही रेड अलर्ट पर है.

Last Updated : Apr 14, 2020, 1:57 PM IST

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