कोरबा : रक्षाबंधन के पावन पर्व पर वैसे तो भाई अपनी बहनों से राखी बंधवाकर अपनी रक्षा का वचन लेती हैं. लेकिन जिले के मड़वारानी गांव के ग्रामीण रक्षाबंधन के दिन पेड़ों को रक्षा सूत्र बांधते हैं और उन्हें पर्यावरण संरक्षण का वचन देते हैं. बीते करीब एक दशक से यह अनोखी परंपरा चली आ रही है. हर साल गांव की महिलाओं के साथ पुरुष भी आसपास के पेड़ों को राखी बांधकर यह पर्व मनाते हैं.
एक दशक से चली आ रही अनोखी परंपरा साल 2009 में शुरू हुआ था यह अभियान
रक्षाबंधन के पर्व को संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण से जोड़ते हुए ग्रामीणों ने यह अभियान वर्ष 2009 में शुरू किया था. इस अभियान से जुड़कर गांव के युवाओं के साथ आसपास के क्षेत्र के लोगों ने भी न केवल पौधे लगाए हैं, बल्कि उन्हें राखी बांधकर उनकी सुरक्षा का जिम्मा भी उन लोगों ने ले रखा है. मड़वारानी व आस-पास के क्षेत्रों से 100 से ज्यादा सदस्य इस मुहिम से जुड़कर अब तक सैकड़ों पौधे लगा चुके हैं.
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पेड़ों के संरक्षण के साथ-साथ नए पौधे लगाना भी बेहद जरूरी
जिले के लिहाज से पेड़ों का संरक्षण और पर्यावरण को बचाए रखने के लिए पेड़ों के संरक्षण के साथ-साथ नए पौधे लगाने के लिए भी यह बेहद जरूरी है. विकास कार्यों के लिए जब पेड़ों को काटा जाना अब आम बात हो गयी है. कोरबा जिले में उद्योगों की बहुलता के कारण प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ा हुआ है. इसलिए कोरबा जैसे जिलों में पर्यावरण संरक्षण के साथ ही नए पौधे लगाना और भी जरूरी हो जाता है. इस लिहाज से ग्रामीणों की यह मुहिम जिले के लिए बेहद महत्वपूर्ण व उपयोगी भी है.
वट, पीपल, आम और आंवला के पेड़ों का संरक्षण
स्थानीय ग्रामीणों की मानें तो वह खासतौर पर ऐसे पेड़ों को रक्षा सूत्र बांधते हैं, जो फलदार हैं. लेकिन कुछ ऐसे वृक्ष जिनसे पर्यावरण को ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन मिलती है, उन्हें भी वह रक्षा सूत्र में बांधते हैं. मड़वारानी व आस-पास के गांव में वट, पीपल, आम, आंवला और नीम जैसे वृक्षों की भरमार है. इन सभी पेड़ों को प्रति वर्ष राखी बांधकर ग्रामीण पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हैं.