कोरबा: ऊर्जाधानी भू-विस्थापित किसान कल्याण समिति ने जिला खनिज संस्थान से जारी किए गए फंड के दुरुपयोग किए जाने को लेकर जिला कलेक्टर को लेटर लिखा है. विस्थापितों का कहना है कि पिछले 5 साल में खनिज न्यास मद के 786 करोड़ रुपए जिले में ही खर्ज किए गए हैं, लेकिन काम कहां हुआ, ये नजर नहीं आ रहा है. आरोप है कि खनन प्रभावित क्षेत्र विकास से अछूता है.
लेटर में लिखा गया है कि कोरबा जिले में डीएमएफ में निहित मूल भावनाओं का पालन नहीं किया जा रहा है. इस वजह से प्रभावित क्षेत्रों को उपेक्षा का शिकार होना पड़ रहा है. खासतौर पर भू-विस्थापितों के अधिकारों का हनन हो रहा है. पिछले 5 साल में डीएमएफ की राशि के दुरुपयोग का आरोप विस्थापितों ने पत्र में लगाया है. पहले भी डीएमएफ की राशि के बंदरबांट के आरोप लग चुके हैं.
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'प्रभावितों को नहीं मिल रहा है फायदा'
कोरबा जिले में 2015 से 2021 तक प्राप्त कुल 1210.60 करोड़ रुपये में से 786.20 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन विस्थापितों का कहना है कि ये पैसे खर्च कहां किए गए हैं, नजर नहीं आता. संगठन के अध्यक्ष सपुरण कुलदीप का कहना है कि कलेक्टर को लिखे पत्र में कहा गया है कि जिला खनिज न्यास कानून 2015 से प्रभावी रूप से लागू है. इसके संशोधन के लिए दिसंबर 2015 में ट्रस्ट का गठन कर लिया गया है. कोरबा जिले में कोयले की उत्पादन क्षमता बहुत ज्यादा है, जिसके कारण जिले को हर साल सैकड़ों करोड़ों रुपए न्यास मद की राशि प्राप्त हो रही है. जिसका लाभ प्रत्यक्ष प्रभावित व्यक्ति/परिवार को नहीं मिल रहा है.
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'लोगों की परेशानी जस की तस'
सपुरण कुलदीप का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्र के लोग विभिन्न प्रकार की समस्याओं एवं आवश्यकताओं से पहले से जूझते आ रहे हैं. खनन होने से लगातार परेशानियां बढ़ रही हैं. खनिज न्यास कानून लाने का मूल उद्देश्य यह है कि खनन से प्रभावित परिवारों को जो नुकसान हुआ है, उनकी भरपाई की जा सके और उनके जीवन को बेहतर बनाया जा सके. न्यास मद की 60% राशि खदान से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित गांवों में खर्च किया जाना है, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इन 5 वर्षों के दौरान गांवों में कुछ निर्माण कार्य के अलावा कुछ भी नजर नहीं आ रहा है. प्रभावित लोग कानून आने के पहले जैसे थे, आज भी वैसे ही हैं, उनके जीवन स्तर में कुछ भी सुधार या बदलाव नहीं आया है.