कोंडागांव:बस्तर संभाग के सभी जिलों में मशरूम की कई प्रजातियां बहुतायत से पाई जाती है. स्थानीय समुदाय के लोग बड़े चाव से मशरूम (फुटु)को खाते हैं. मशरूम की डिमांड बढ़ने पर महिलाएं मशरूम उत्पादन कर रही हैं. महिलाओं ने आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाया है. महिलाओं ने ग्रामीण समुदाय के सामने एक नया उदाहरण पेश किया है. स्व सहायता समूह की महिलाएं मशरूम से अच्छी खासी कमाई कर रही हैं.
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मशरूमों को स्थानीय बोली में 'फुटु या छाती' के नाम से भी जाना जाता है. मशरूम की प्रजातियों को स्थानीय भाषा में डाबरी फूटु, भात छाती, टाकु, मजुर डुंडा, हरदुलिया, पीट छाती, कोडरी सिंग फुटु, कड़ छाती, कहते हैं. ये सब मशरूम की प्रजातियां केवल वर्षा और शरद ऋतु में ही मिलते हैं. इन मशरूमों को वनों से संग्रहण करना स्थानीय ग्रामीण महिलाओं का प्रिय एतिहासिक घरेलू कार्य रहा है. अब ग्रामीण महिलाएं ओएस्टर मशरूम से अतिरिक्त आय अर्जन कर रही हैं.
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40 हजार रुपये एकत्रित कर शुरू किया काम
स्व सहायता समूह की अध्यक्ष रमशीला नेताम ने बताया उनके समूह में 12 महिलाएं हैं. 12 सदस्यों ने पहले 40 हजार रुपये एकत्रित किया. मशरूम शेड के लिए 10 हजार और मशरूम बीज (स्पौन), पाॅलीथीन और दवाइयों के लिए 30 हजार एकत्रित किए. मशरूम उत्पादन के लिए 40 हजार रुपये खर्च किया.
कोंडागांव में मशरूम की खेती 20 हजार रुपये का बेच चुके मशरूम
रमशीला ने बताया 2 महीने में लगभग 20 हजार रुपये का मशरूम बेच चुकी हैं. ताजा मशरूम 200 रुपये प्रति किलो बिकता है. सूखा मशरूम 600 रुपये प्रति किलो तक बिक जाता है. सूखे मशरूम से अचार, चॉकलेट, पापड़, बिजौरी और मेडिसिन बनाया जाता है.
महिलाएं मशरूम से अच्छी खासी कमाई कर रही पोषक तत्वों का खजाना है ओएस्टर मशरूम
मशरूम सभी ने कभी न कभी खाया है. मशरूम में कई विटामिन्स और माइक्रोन्युट्रीयन्स इम्यूनिटी बढ़ने में सहायक होते है. इसका आकार सीप की तरह होता है. इसे ओएस्टर मशरूम कहते हैं. इस मशरूम मेें एक अध्ययन के अनुसार विटामिन सी, और विटामिन बी के अलावा 1.6 से 2.5 प्रतिशत तक भरपुर प्रोटीन होता है. इसके अलावा हमारे शरीर के सुचारू रूप से काम करने के लिए आवश्यक पोटेशियम सोडियम, फाॅस्फोरस, लोहा, कैलसियम जैसे जरूरी तत्व भी इसमें मौजूद होते हैं.
मशरूम की खेती बना रही आत्मनिर्भर ओएस्टर मशरूम के खाने से लाभओस्टर मशरूम में बहुत कम कैलोरी और लगभग शून्य प्रतिशत वसा होती है. यह वजन कम करने में सहायक है. इसके अलावा हृदय रोग और एनीमिया से बचाव, शरीर कोशिकाओं के रखरखाव में अहम भूमिका है. महिलाओं के गर्भावस्था जब शरीर में पोषण की आवश्यकता बढ़ जाती है. ऐसी स्थिति में यह एक बेहतर विकल्प हो सकती है. इस प्रकार यह बच्चों को कुपोषण से बचाने में भी सहायक है.
कोंडागांव में स्व सहायता समूह की महिलाएं ओएस्टर मशरूम के उत्पादन के लिए सही तापमान
समूह की महिलाओं ने बताया कि ओएस्टर मशरूम के उत्पादन के लिए मध्यम तापमान (20 से 30 डिग्री सेल्सियस) चाहिए. एक वर्ष में 6 से 8 महीने की अवधि तक बढ़ सकता है. वृद्धि के लिए आवश्यक अतिरिक्त नमी प्रदान करके गर्मी के महीनों में भी इसकी खेती की जाती है. ओएस्टर मशरूम के लिए सबसे अच्छा मौसम मार्च, अप्रैल, सितंबर और अक्टूबर तक होता है.
कोंडागांव में स्व सहायता समूह की महिलाएं नया आयाम गढ़ रही ग्रामीण महिलाएं
ओएस्टर मशरूम का उत्पादन उन ग्रामीण महिलाओं के लिए लाभकारी सिद्ध हो रहा है. कभी मात्र खेती पर ही निर्भर थी. उनके पास घर और खेत में काम के अलावा किसी भी रोजगार का साहस नहीं था. स्व सहायता समूह में शामिल हाने के बाद आत्मविश्वास हासिल किया. वे अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी हैं. सूखे मशरूम को आंगनबाड़ी केन्द्रों में सप्लाई की जा रही है. मिड-डे-मील में कुपोषण से बचाव के लिए उपयोग किया जा रहा है. स्व सहायता की समूह की महिलाएं अपने क्षेत्र में नया आयाम गढ़ रही हैं.