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हसदेव अरण्य में पेड़ कटाई का विरोध, आदिवासी छात्रों ने निकाली रैली

Protest against tree cutting in Hasdev Aranya कांकेर में आदिवासी छात्रावास के छात्रों ने हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई का विरोध किया है. छात्रों के मुताबिक हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई से प्रकृति के स्वरूप को नुकसान होगा.

Protest against tree cutting in Hasdev Aranya
आदिवासी छात्रों ने निकाली रैली

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jan 11, 2024, 6:33 PM IST

Updated : Jan 11, 2024, 7:19 PM IST

हसदेव अरण्य में पेड़ कटाई का विरोध

कांकेर : छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार आने के बाद हसदेव अरण्य के अंदर कोल माइंस के लिए पेड़ों की कटाई शुरु हो गई है.जिसका विरोध होने लगा है. जंगल को बचाने हसदेव अरण्य के आदिवासी, हसदेव बचाओ संगठन और कई सामाजिक कार्यकर्ता आंदोलन कर रहे हैं. वहीं हसदेव के आंदोलन की चिंगारी अब बस्तर तक पहुंच गई है. बस्तर के कांकेर जिला मुख्यालय में पोस्ट मैट्रिक छात्रवास के बच्चों ने हसदेव के जंगल को बचाने के लिए सड़क पर प्रदर्शन किया.

छात्रों ने सरकार से की अपील :पीएमटी छात्रवास के छात्रों ने कांकेर पीजी कालेज से घड़ी चौक तक रैली निकाल तहसीलदार को एसडीएम के नाम हसदेव में जंगल कटाई रोकने के लिए ज्ञापन सौंपा. इस दौरान छात्रों ने कहा कि हम कांकेर सरकार से विनम्र अपील करते है कि हसदेव अरण्य मध्य भारत का समृद्ध जंगल है. जो जैव विविधता से परिपूर्ण है. कई विलुप्त वनस्पति और जीव जन्तुओं का रहवास है. यह जंगल हसदेव नदी और उस पर बने मिनीमाता बागों बांध का स्त्रोत है. जिससे रायगढ़, कोरबा और बिलासपुर जिले के किसानों की जमीन सिंचित होती है. इसलिए इसके स्वरूप को ना छेड़ा जाए.

''हसदेव अरण्य क्षेत्र की पांचवी अनुसूची क्षेत्र के अंतर्गत आता है.वहां के ग्राम सभाओं ने एक दशक से कोयला खनन परियोजना का विरोध किया है.ग्राम सभाओं के विरोध के बावजूद आदिवासियों के जल जंगल जमीन को कोयला खनन परियोजन के लिए गैर कानूनी रूप से पेड़ों की कटवाई की जा रही है.यदि जंगल की कटाई होगी तो आने वाले दिनों में हाथी आवासीय क्षेत्रों में घुसने लगेंगे."' प्रदर्शनकारी छात्र

आपको बता दें कि हसदेव अरण्य क्षेत्र पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में आता है. यहां पेसा कानून के अंतर्गत ग्राम सभाओं को खनन की अनुमति देने या न देने का विशेष अधिकार हैं. वन अधिकार कानून के तहत भी आदिवासियों के आम अधिकार सुनिश्चित नहीं किये गए हैं. कोयला खनन के लिये आदिवासियों के मानव अधिकारों और संवैधानिक अधिकारों का लगातार हनन करने के आरोप लगते रहे हैं.

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Last Updated : Jan 11, 2024, 7:19 PM IST

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