कांकेर: सरोना परिक्षेत्र की मांझीनगढ़ पहाड़ियों के नीचे 17 आदिवासी परिवार रहते हैं. इस बसाहट को सराईपानी कहते हैं. इन परिवारों ने वन विभाग पर घर तोड़ने, राशन फेंकने, उनका पैसा लेने का आरोप लगाया है. ये लोग 11 फरवरी को घर तोड़े जाने की शिकायत लेकर कांकेर थाने पहुंचे थे. गांववालों का कहना है कि 8 फरवरी को वन अमले की टीम यहां पहुंची और उनका आशियाना उजाड़ दिया. टूटे-फूटे घर, खाली झोपड़ी, बिखरे सामान और खुले आसमान के नीचे रह रहे ये लोग अब मदद की गुहार लगा रहे हैं. वन विभाग ने ग्रामीणों के आरोपों से इंकार किया है.
जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर इस बसाहट के लोग बांगाबारी पंचायत में ये जुड़ना चाहते हैं. वन विभाग के सरकारी रिकार्ड में इसे बांगाबारी दक्षिण सरोना परिक्षेत्र कहा जाता है. आप ठेमा गांव होते हुए छींदखड़क के रास्ते जब यहां से निकलेंगे को 15 किलोमीटर ऊंची पहाड़ी मिलेगी. आपको उस पर चढ़ कर इस बसाहट तक पहुंचना पड़ेगा. ETV भारत जब यहां पहुंचा तो टूटे घर, बिखरा सामान, ठंड में आसमान के नीचे लोग मिले. किसी को गला रुंधा मिला तो किसी ने कहा अब हम जाएं कहां ?
छत छिनने का दर्द
सिर से छत छिनने का दर्द गांववालों की आवाज में था. ETV भारत से ग्रामीणों ने कहा कि वे कई साल से यहां रह रहे थे. खुले आसमान के नीचे बैठे परिवारों ने वन विभाग पर कई आरोप लगाए. राम सिंह नाम के ग्रामीण बताते हैं कि 4 दिन से इमली के पेड़ के नीचे वो बैठे हुए हैं. उनका बेटा घटना वाले दिन था लेकिन उस दिन से गायब है. घर में रखा 10 हजार रुपए नहीं मिल रहा. फुलेश्वरी मरकाम का आरोप है कि वन विभाग की टीम ने उनसे यहां से भाग जाने के लिए कहा और घर तोड़ दिया. वे कहती हैं कि जंगल में खेती-किसानी करके उनका गुजारा हो रहा था. सावित्री नेताम नाम की ग्रामीण का आरोप है कि उनकी एक मुर्गी छोड़कर बाकी सब ले गए.
30 साल से रह रहे थे, अब कहां जाएं ?
ग्रामीण दुखाराम नेताम का कहना है कि वे 30 साल से यहां रह रहे थे. साल 2006 से पट्टे की मांग कर रहे हैं. उनकी खेती-किसानी भी यहीं है. लेकिन अब तक वनाधिकार पट्टा नहीं मिला, ऐसे में अब वे कहां जाएं ? दुखाराम नेताम ने कहा कि वन विभाग ने कहा कि नोटिस देने के बाद भी वे बात नहीं मान रहे हैं. अब यहां से हट जाएं.
वन अधिकारी ने आरोपों को बताया गलत