कांकेर: लोकसभा चुनाव को लेकर दोनों ही प्रमुख पार्टियों ने कांकेर सीट पर अपने प्रत्याशियों का एलान कर दिया है. इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने नए चेहरों पर दांव लगाया है. कांग्रेस ने जहां वर्तमान जिला पंचायत सदस्य बीरेश ठाकुर को अपना उम्मीदवार बनाया है तो वहीं भाजपा ने वर्तमान में लोकसेवा आयोग के सदस्य और लगभग 25 साल तक शिक्षक रह चुके मोहन मंडावी को अपना उम्मीदवार बनाया है.
अब देखना ये होगा कि दोनों नए चेहरों पर आखिर किस चेहरे को कांकेर लोकसभा क्षेत्र की जनता चुनती है. दोनों उम्मीदवारों में किसका पक्ष कैसे मजबूत बैठता है ये बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार सुशील शर्मा.
ऐसा है बीरेश ठाकुर का राजनीतिक करियर
- कांग्रेस के प्रत्याशी बीरेश ठाकुर अपने छात्र जीवन से ही राजनीति से जुड़े हुए हैं. दो बार भानुप्रतापपुर के जनपद अध्यक्ष रह चुके हैं.
- बीरेश के दादा और पिता भी विधायक रह चुके हैं. बीरेश की ग्रामीण क्षेत्र में पकड़ काफी मजबूत मानी जाती है.
- बीरेश मुख्यरूप से भानुप्रतापपुर क्षेत्र के रहने वाले हैं.
- हाल ही में विधानसभा चुनाव में हुई कांग्रेस की जबरदस्त जीत का लाभ उन्हें मिल सकता है. बीरेश की शहरी इलाकों में पकड़ कमजोर है जोकि उनके लिए वोटों की संख्या पर प्रभाव डाल सकती है.
ऐसा है मोहन मंडावी का सफर
- कांकेर के गोविंदपुर के रहने वाले मोहन मंडावी ने 25 साल से अधिक समय शिक्षक के रूप में बिताया है. मोहन मानस गान मंडली से लंबे समय से जुड़े हुए हैं और इस वजह से भी गांव-गांव में इनकी अच्छी पकड़ है.
- मोहन के खिलाफ यदि कुछ जाता नजर आता है तो वो आदिवासी समाज के बीच उनकी कमजोर छवि है.
- बता दें कि आदिवासी समाज की एक बैठक में पूर्व सांसद सोहन पोटाई के साथ उनकी तीखी बहस हो गई थी, जिसके बाद से मोहन का आदिवासी समाज के कार्यक्रमों में जाना कम होता है. इससे समाज के बीच में उनकी छवि थोड़ी बिगड़ी है.
- मोहन मंडावी का राजनीतिक सफर मात्र 5 साल का ही है, जबकि बीरेश लगभग 30 सालों से राजनीति से जुड़े हुए हैं.
कांग्रेस दिख रही एकजुट, भाजपा में सामने आई कलह
टिकट बंटवारे के बाद जहां हमेशा गुटबाजी के लिए बदनाम रही कांग्रेस पार्टी में एकजुटता देखी जा रही है, तो वहीं खुद को अनुशासित पार्टी बताने वाली भाजपा में कलह खुलकर सामने आ गई है. पूर्व विधायक सुमित्रा मारकोले ने न केवल नामांकन फॉर्म खरीदा है, बल्कि मीडिया के सामने ही फोन पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी को खरीखोटी भी सुना दी है. ये सारी बातें भाजपा के लिए दिक्कतें खड़ी कर सकती हैं.