कवर्धा:रेंगाखार परिक्षेत्र के तितरी गांव में जंगल काटा जा रहा है. सड़क किनारे 11 से अधिक आदिवासी परिवार जंगल की कीमती पेडों को काट रहे हैं. वनभूमि पर पट्टा पाने के लिए करीब 10 एकड़ से अधिक वन भूमि पर अवैध कब्जा कर लिया है. मकान बनाकर अपने परिवारों के साथ रह रहे हैं. आसपास की वनभूमि को उजाड़ कर खेत बना चुके हैं.
वनभूमि पर आदिवासियों ने किया अवैध कब्जा रेंगाखार परिक्षेत्र के जंगल कुछ वर्ष पहले तक हरे-भरे जंगल से अच्छादित, बाघ, तेंदुआ, भालू, चीतल जैसे अनेकों वन्यप्राणियों का भरमार रहता था. रेंगाखार जंगल अब खेतों और मकानों में तब्दील हो गया है. यहां जंगल के साथ ही जंगली जानवरों का भी सफया हो गया है. ग्रामीण पट्टा के लालच में जंगल को खत्म करते जा रहे हैं. मकान बनाकर आसपास के जंगल के पेडों को काटकर खेती कर रहे हैं.
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मध्यप्रदेश से आकर पट्टा के लिए ग्रामीणों ने किया कब्जा
ग्रामीणों ने बताया ने बताया कि कुछ वर्ष पहले एक परिवार यहां मध्यप्रदेश के सिलिहारी से आकर यहा कब्जा किया था. बाद में धीरे-धीरे और लोग आकर बसते गए. ग्रामीण खुद बताते हैं यहां पहले जंगल हुआ करता था, लेकिन वे लोगों पेडों को काटकर अपना मकान बना रहे हैं. अपने परिवार का भरण पोषण के लिए खेती किसानी कर रहे हैं.
रेंगाखार परिक्षेत्र में जंगलों की कटाई कीमती पेडों को काटा जा रहाग्रामीणों ने बताया कि यहां लगभग 200 से अधिक सराई के पेड़ थे. पेड़ों को जलाकर सुखा दिया जाता है, फिर बाद में उस काट देते हैं. ताकि जलाने का काम आए. ग्रामीणों ने बताया कि जो भी नेता और अधिकारी आते हैं, तो ग्रामीण पट्टा के लिए आवेदन देते हैं. पट्टा बनेगा बोलकर चले जाते हैं, लेकिन अब तक नहीं बना है.
भूमिहीन परिवारों को पट्टा के नियमभूमिहीन वनवासियों को उनके काबिज वनभूमि का पट्टा देने के अतिरिक्त कोई और जमीन नहीं है. ऐसे परिवारों को वन भूमि का पट्टा देने का किसी को कोई आपत्ति नहीं है, जो वर्षों से किसी जमीन पर काबिज रहकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हों. ऐसे परिवार को वनभूमि का पट्टा दिया जाना न्यायसंगत है. पट्टा के नाम पर अपात्र दावेदार का बिना छानबीन किए पट्टा दिया जाना है. हरे-भरे जंगलों को काट कर खेती किसानी करने वाले लोगों को भी पट्टा देना उचित नहीं है.
अधिकारियों की गैर जिम्मेदाराना जवाब
मामले में अधिकारियों को जानकारी होने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं. क्षेत्र के वनकर्मी से लेकर वनपरिक्षेत्र अधिकारी और वनमंडल अधिकारी भी जानते हैं, लेकिन उनके खामोशी का कारण समझ से परे है. वन मंडल अधिकारी दिलराज प्रभाकर मामले की जानकारी नहीं होने की बात कह रहे हैं.