जशपुर में चाय की खेती की शुरुआत सोगड़ा आश्रम से हुई थी, यहां सबसे पहले चाय के पौधे लगाए गए थे. जिसके आठ साल बाद वन विभाग की ओर से 2010 में चाय के बागान लगाए गए. यहां की जलवायु चाय उत्पादन के लिए अनुकूल है. चाय विशेषज्ञों ने जशपुर की चाय को दार्जिलिंग से बेहतर बताया है.
सारूडीह में हैं चाय बागान
शहर से नौ किलोमीटर की दूरी पर सारूडीह में मौजूद चाय के बागन यहां आने वाले पर्यटकों का मन मोह लेते हैं. 20 एकड़ में फैले बागान के चाय का संग्रहण करने से लेकर प्रोससिंग और पैकजिंग का काम महिलाओं के हाथ में है. पर्यटन बढ़ने से यहां के लोगों के लिए अतिरिक्त साधन भी बने हैं, जिससे उन्हें ज्यादा आमदनी मिल रही है.
हैंडमेड तरीके से हो रहा प्रोडक्शन
जशपुर के सारूडीह में स्व सहायता समूह द्वारा संचालित टी गार्डन से चाय की प्रोडक्शन इसी साल से हुआ है. इसका ब्रैंड नेम सारूडीह चाय रखा गया है. आस-पास के इलाके में इसकी अच्छी-खासी डिमांड है. नेचुरल पत्तियों से हैंडमेड चाय का प्रोडक्शन सारूडीह चाय की सबसे बड़ी खासियत है. समूह की अलका लकड़ा ने बताया कि चाय बागान में 2 समूह बनाए गए हैं. सारूडीह स्व सहायता समूह हमे अच्छी आमदनी चाय के बागान से हो रही है.
दूर-दूर से आते हैं पर्यटक
चाय का ये बगान इन दिनो पर्यटकों के आकर्षण का बड़ा केन्द्र बना हुआ है. इन दिनों प्रदेश के बिलासपुर, रायपुर, रायगढ़ जैसे शहरी क्षेत्रों से लेकर पड़ोसी राज्य झारखंड और ओडिशा से भी पर्यटक चाय बगान को देखने के लिए यहां आ रहे हैं.
समूह बनाकर करते हैं काम
वन मंडलाधिकारी श्रीकृष्ण जाधव ने बताया कि 2010 में इस इलाके में चाय बागान लगाने का काम शुरू हुआ और 2017 में पहली बार चाय का उत्पादन किया गया. उन्होंने बताया कि गांव के ही 20 परिवार का समूह बनाया गया और वे ही काम करते है.
ईको टूरिज्म से जोड़ने की योजना
उन्होंने बनाया की चाय को हैंडमेड तरीके से तैयार किया जाता है. यहां दो तरह की चाय तैयार की जाती है ग्रीन टी ओर सीटीसी जिसे बल्के टी भी कहा जाता. उन्होंने बताया कि, चाय को बाजार में बेचकर चाय की खेती से महिलाओं के जीवन में सुधार हुआ है. उनका कहना है कि, ईको टूरिज्म से भी इसे जोड़ रहे हैं ताकि मुनाफा बढ़ाया जा सके. उन्होंने बताया कि टूरिज्म बढ़ाने के लिए हम बुनियादी सुविधाएं बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं.
10 रुपए की ली जाती है फीस
यहां चाय बागान देखने के लिए 10 रुपये की फीस ली जाती है, जिससे बागान का संचालन किया जाता है. वन विभाग की पहल ने सिर्फ जशपुर को एक नई पहचान दी है, बल्कि चाय बागान की वजह से यहां के लोगों को रोजगार मिलने के साथ ही साक्षरता और जागरूकता में भी इजाफा हुआ है.