जशपुर: प्राचीन बालाजी मंदिर में हजारों सालों से कृष्ण जन्माष्टमी बड़े धूमधाम से मनायी जाती है. रियासतकालीन परंपरा से भगवान श्रीकृष्ण का महाभिषेक किया जाता है. इस आयोजन में मुख्यरूप से जशपुर राज परिवार शामिल होता है. शास्त्रों की मानें तो भगवान कृष्ण का जन्म आज से करीब सवा पांच हजार साल पहले भाद्र माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था.
जशपुर में पारंपरिक अंदाज में मनाई जाती है जन्माष्टमी रियासतकालीन परंपरा के अनुसार जन्माष्टमी के अवसर पर शहर के मध्य स्थित श्री बालाजी मंदिर में शाम से ही भजन-कीर्तन का दौर शुरू हो जाता है. जशपुर रियासत के राजा रणविजय सिंह देव और राजपरिवार के अन्य सदस्य मुख्य रूप से इस महोत्सवों में शामिल होते हैं. मध्य रात्रि को राजकीय परंपरा और वैदिक रीति-रिवाज से पूजा-अर्चना की जाती है और 11.30 बजे मंदिर के गर्भगृह के पट बंद हो जाते हैं.
रात 12 बजे गर्भ गृह से बाहर निकलते हैं कृष्ण
रात 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण को मंदिर के गर्भ गृह से निकाला जाता है और बाहर उन्हें बेदी में चांदी के सिंहासन पर बैठाकर उनकी आरती की जाती है. आरती जशपुर रियासत के राजा रणविजय सिंह देव के द्वारा की जाती है वे श्रीकृष्ण को झूला झुलाते हैं. इसके बाद श्रद्धालु बाल गोपाल को झूला झुलाते हैं. अगले दिन बाल गोपाल दिन भर झूले में ही विराजमान रहते हैं, जिसके बाद शाम को बालकृष्ण लड्डू गोपाल की आरती की जाती है. इसके बाद बाल गोपाल को पुनः गर्भ गृह में स्थापित किया जाएगा.
भगवान बालाजी का यह मंदिर काफी पुराना है
कृष्ण जन्माष्टमी पर राजा रणविजय सिंह देव ने बताया कि जशपुर में कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार हजारों सालों से मनाया जाता है. पूरे जशपुर के साथ-साथ राज परिवार भी इस पूजा में शामिल होते हैं. भगवान बालाजी का यह मंदिर काफी पुराना है. तकरीबन 800 से 1000 हजार साल पहले से यहां पूजा की जाती रही है.
झील में विराजमान किया जाता है
राजपुरोहित मनोज रमाकांत मिश्र ने बताया कि यह मंदिर तकरीबन साढ़े 3 सौ साल से भी ज्यादा पुराना मंदिर है और जब से इस मंदिर की स्थापना हुई है तब से इसी मंदिर में जन्माष्टमी का उत्सव मनाया जाता है. इस मंदिर में मुख्य त्योहारों में भगवान बालाजी को झील में विराजमान किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि बालाजी भगवान ही इस जशपुर के पालक है, उन्हें बाहर इसलिए निकाला जाता है ताकि नगर के लोग उस दिन भगवान का दर्शन करते हैं.