जांजगीर-चांपा: एक तरफ किसान जहां भूरा माहो, तना छेदक, तितली, चरपा जैसे कीटों से त्रस्त हैं. वहीं उनका कहना है कि इन कीटों से ज्यादा वे सरकारी फरमानों से परेशान हैं. किसान-किसान चिल्लाने वाली दिल्ली से लेकर रायपुर की सरकार सिर्फ अन्नदाता के नाम पर राजनीति कर रही है, जबकि हकीकत ये है कि सोमवार को छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में एक किसान ने आत्महत्या कर ली और देश के दूसरे राज्यों में सड़क पर प्रदर्शन कर रहे हैं.
किसानों का आरोप है कि अधिकारी गिरदावरी के नाम पर खेतों का रकबा कम करने पर उतारू हैं. जहां किसान अपने साल भर के खून पसीने की कमाई धान की फसल को बचाने हर संभव प्रयास कर रहे हैं, जहां कीटनाशक दवाई भी बेअसर साबित हो रही है. वहीं दूसरी ओर गिरदावरी के नाम पर किसानों के कृषि भूमि के रकबा में कटौती की जा रही है. जिससे किसान बेहद परेशान हैं और अब खेती-बाड़ी छोड़ पटवारी के चक्कर लगा रहे हैं.
लगातार कम हो रहा रकबा
जिले के 103 गांव, 35 पटवारी हल्का और 4 राजस्व मंडल में विभाजित तहसील जैजैपुर में वर्ष 2020-21 में समर्थन मूल्य पर धान खरीदी के पहले शासन स्तर पर गिरदावरी के नाम पर एकाएक किसानों के कृषि भूमि जिसपर उनके द्वारा धान की उपज की गई है, उसका रकबा घटा देने से चिंतित और परेशान हैं. किसान पटवारी कार्यालय के चक्कर काटने को मजबूर हो रहे हैं. जबकि उन्हीं किसानों का कृषि भूमि वर्ष 2019 में ऑनलाइन दर्ज था और धान खरीदी केंद्रों में विधिवत कृषि भूमि का रकबा पंजीकृत था. वर्तमान में कृषि भूमि भुइयां सॉफ्टवेयर से गायब हो गया है.
घर बैठे पटवारी कर रहा मुनादी
इधर, किसानों का कहना है कि गिरदावरी के नाम पर कृषि भूमि का रकबा कम करने से पहले पटवारी को मुनादी करा मौके पर उपस्थित होकर यह देखना चाहिए कि किसान कितने हेक्टेयर भूमि पर धान या अन्य फसल उपजा रहे हैं, लेकिन गिरदावरी नियमों का पालन किये बिना पटवारी कार्यालय में बैठकर गिरदावरी के नाम पर कृषि भूमि का रकबा कटौती कर रहे हैं.
पढ़ें : इस जिले को मनरेगा में मिला पहला स्थान, श्रमिक परिवारों को 100 दिनों का रोजगार
दो साल से अपडेट नहीं है सॉफ्टवेयर