बस्तर: छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में सियासी संग्राम छिड़ चुका है. सूबे की सत्ता को हासिल करने के लिए बस्तर संभाग में जीत दर्ज करना जरूरी है. इस बात को राजनीतिक दल भी समझते है. इस संभाग में सबसे ज्यादा निर्णाय भूमिका आदिवासियों की होती है. बिना उनके समर्थन और आशीर्वाद के छत्तीसगढ़ की सत्ता मिलनी मुश्किल है. यही वजह है कि छत्तीसगढ़ चुनाव के पहले फेज में सभी राजनीतिक दल बस्तर को जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं.
बस्तर की बाजी में 11 एसटी सीटें: बस्तर संभाग में कुल 12 सीटों में से 11 सीटें एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हैं. इन सीटों पर जिस पार्टी को विजय मिलती है. वह चुनावी जंग में बढ़त की ओर होता है. छत्तीसगढ़ के चुनाव में यह ट्रेंड हमेशा कायम रहा है. सिर्फ साल 2013 को छोड़कर हर बार के विधानसभा चुनाव में जिस पार्टी को बस्तर में अच्छी सीटें मिली वह चुनाव में जीत दर्ज कर सका.
एक नजर बस्तर संभाग के चुनावी इतिहास पर: बस्तर संभाग के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो यह बात साबित होती है कि जिस पार्टी को ज्यादा सीटें मिली वह सरकार बना पाया. साल 2003 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 12 सीटों में 9 सीटों पर जीत मिली थी. जबकि कांग्रेस को तीन सीटें मिली थी. इस चुनाव के बाद बीजेपी की सरकार छत्तीसगढ़ में बनी. उसी तरह साल 2008 में बीजेपी को 12 सीटों में 10 सीटों पर विजय मिली. कांग्रेस के खाते में एक सीट आई. इस तरह इस बार भी बीजेपी की सरकार सूबे में बनी. साल 2023 के विधानसभा चुनाव में बस्तर संभाग में कांग्रेस को 8 सीटें मिली. जबकि बीजेपी को चार सीटें मिली. लेकिन कांग्रेस सरकार नहीं बना पाई. यह साल सिर्फ अपवाद माना जा सकता है. साल 2018 के चुनाव में बस्तर रीजन में कांग्रेस को 12 में से 11 सीटें मिली. बीजेपी को सिर्फ 1 सीटें मिली. इस तरह कांग्रेस सत्ता में काबिज हो सकी.