Bastar Dussehra Kachngadi: बस्तर दशहरा की महत्वपूर्ण रस्म काछन गादी हुई पूरी , राजा को देवी से मिली पर्व मनाने की अनुमति - Kachan Gaadi ritual
Bastar Dussehra Kachngadi: जगदलपुर में शनिवार को बस्तर दशहरा की महत्वपूर्ण रस्म काछन गादी निभाई गई. इस रस्म के बाद देवी की ओर से राजा को पर्व मनाने की अनुमति मिली है. बताया जा रहा है कि पिछले 600 सालों से ये पर्व मनाया जा रहा है.
बस्तर:विश्वप्रसिद्ध बस्तर दशहरे की अनोखी रस्म काछनगादी शनिवार रात को बड़े धूमधाम से मनाई गई. काछन गादी की रस्म शहर के भंगाराम चौक स्थित काछन गुड़ी के पास पूरी की गई. इस रस्म को कोंडागांव जिले के आड़काछेपड़ा गांव की पनका जाति की एक छोटी बच्ची ने निभाया. बच्ची का नाम पीहू है. वो 8 साल की है. पिछले साल भी पीहू ने ही इस रस्म को निभाया था. पीहू ने कांटों के झूले से राजपरिवार सदस्य को दशहरा मनाने की अनुमति दी.
600 साल पहले से चली आ रही परंपरा : इस रस्म के दौरान माता के भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिली. वही, बस्तर राजपरिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव ने बताया कि,"1430 ई. से यह परम्परा निभाई जा रही है. करीब 600 सालों से हमारा परिवार इस रस्म को निभा रहा है. आज दंतेश्वरी देवी, जगन्नाथ, काछन देवी, रैला देवी के आशीर्वाद से बस्तर दशहरे की शुरूआत की गई है. काछनदेवी ने आशीर्वाद दिया है और फूल का माला मुझे आशीर्वाद रुप में पहनाया गया है. यह देवी की आज्ञा मानी जाती है कि अब रथ चलाया जाए. उनसे परमिशन मिलने के बाद कलश स्थापना के साथ अन्य सभी रस्मों की अदायगी की जाएगी. यह परमपरा सदियों से चली आ रही है."
ये है मान्यता: मान्यता है कि काछनगादी और रैला देवी दोनों ही घर की बेटियां है. बस्तर के जो पुराने राजा थे, उनकी दोनों बेटियों ने आत्मदाह किया था. आत्मदाह करने के बाद उनकी पवित्र आत्मा आज भी यहां मौजूद है. हर साल वो पनका जाति की बच्ची के अंदर आती है. फिर वो इशारों में राजपरिवार को आशीर्वाद देती हैं. शहर के गोलबाजार में स्थित रैला देवी भी आशीर्वाद देती हैं.
पनका जाति की आराध्य हैं काछन देवी: बता दें कि पनका जाति की आराध्य देवी काछन देवी हैं, जिसे रण की देवी भी कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि काछन देवी आश्विन माह की अमावस्या के दिन पनका जाति की कुंवारी के अंदर प्रवेश करती हैं. इसे काछनगुड़ी के सामने कांटो के झूले पर लिटाकर झुलाया जाता है. इसी दिन शाम के समय बस्तर राजपरिवार के सभी देवी-देवता, दशहरा समिति के सदस्य, मांझी चालकी, नाईक-पाईक, मुंडा बाजा के साथ आतिशबाजी करते हुए काछनगुड़ी पहुंचते हैं. कांटों के झूले पर लेटे काछन देवी से दशहरा पर्व अच्छे से मनाने के लिए औपचारिक अनुमति राजा की ओर से मांगी जाती है. अनुमति इशारों से देवी देती हैं फिर राजपरिवार और समस्त सदस्य वापस दंतेश्वरी मंदिर पहुंचते हैं.