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कुछ खास है छत्तीसगढ़ की ये परंपरा, अनोखा है सुआ गीत और नृत्य

छत्तीसगढ़ी में तोता को सुआ कहा जाता है. दिवाली पास आते-आते ही सुआ गीत और नृत्य की रौनक देखते ही बनती है. जब महिलाओं की टोली सुआ गीत गाने निकलती है और अपनी बोली की मिठास इसे गाकर बिखेरती है तो बरबस ही मन झूम सा जाता है.

कुछ खास है छत्तीसगढ़ की ये परंपरा

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Published : Oct 27, 2019, 4:19 PM IST

रायपुर:कला और संस्कृति के धनी छत्तीसगढ़ राज्य में हर त्योहार और हर मौसम के लिए अलग-अलग पारंपरिक गीत और नृत्य हैं. हर गीत और हर नृत्य की अलग खासियत है, इनसे जुड़ी अलग खुशी है और अलग उमंग है. आदिवासी बाहुल्य और ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्र होने की वजह से यहां की संस्कृति बेहद खूबसूरत और निराली है.

कुछ खास है छत्तीसगढ़ की ये परंपरा

इन्हीं संस्कृति और कला के बीच प्रदेश में लोकप्रिय है सुआ गीत और सुआ नृत्य. दशहरे के बाद या शरद पूर्णिमा के बाद से ही छत्तीसगढ़ में सुआ गीत गाना शुरु कर दिया जाता है. वहीं ग्रामीण अंचलों में इसकी शुरुआत जल्दी हो जाती है.

तोता को कहा जाता है सुआ
छत्तीसगढ़ी में तोता को सुआ कहा जाता है. दिवाली पास आते-आते ही सुआ गीत और नृत्य की रौनक देखते ही बनती है. जब महिलाओं की टोली सुआ गीत गाने निकलती है और अपनी बोली की मिठास इसे गाकर बिखेरती है तो बरबस ही मन झूम सा जाता है.

महिलाओं के मन के भाव को बताने वाला है सुआ गीत
कहा जाता है कि सुआ गीत और नाच में मुख्य रुप से महिलाओं के मन के भाव को व्यक्त किया जाता है. क्योंकि ऐसा माना जाता है कि, तोता महिलाओं को प्रिय होता है और वह इंसानों की तरह बोल भी पाता है. ये जरूर है कि सुआ गीत में करुण रस जरुर होता है, फिर भी इसमें छत्तीसगढ़ी जीवन शैली के कई रंग देखने को मिलते हैं.

पति या प्रेमी के वियोग की कहानी बताता सुआ
दिवाली के आस-पास खेत से धान कटाई के बाद ब्यारा में खरही सजने लगती है. मिंजाई में लगे किसान घर में कम समय देते हैं ताकि लक्ष्मी पूजा तक घर में अनाज पहुंच सके. इस व्यस्तता की वजह से वह पत्नी को समय नहीं दे पाते. इस वियोग को देखते और सहते हुए महिलाएं सुआ के माध्यम से अपना भाव अपने प्रेमी या पति तक पहुंचाती हैं.

ऐसे किया जाता है सुआ नाच
लकड़ी से या मिट्टी से बने सुआ की प्रतिमा को बांस की टोकनी में रखकर और उसके पास दीया रखकर महिलाओं-बहनों की टोली उस टोकनी को घेरकर एक गोला बना लेती हैं और सुआ गीत गाकर नाचती हैं. दिवाली के समय ये शहर और गांव के घरों में जाकर सुआ गीत गाती हैं, जिसके बदले में उन्हें कच्चे अनाज दिए जाते हैं, पैसे भी दिए जाते हैं और इसके साथ ही सुआ गाने वाली आशीर्वाद देकर जाती हैं.

महिलाओं के साथ-साथ बच्चियां भी अपनी अलग टोली बनाकर सुंदर छत्तीसगढ़ी पोशाक पहनकर घरों में सुआ नृत्य करने जाती हैं.

सैकड़ो साल से मौजूद है सुआ नृत्य
वैसे तो सुआ नृत्य गोंडी लोगों का पारंपरिक नृत्य है, लेकिन यह पूरे प्रदेश में प्रचलित है. छत्तीसगढ़ के जानकर कहते हैं कि सुआ नृत्य आदिवासी समाज में सैकड़ों साल से मौजूद है.
छत्तीसगढ़ की इस खास पहचान को सहजकर रखने की जरुरत है. सरकार को इस परंपरा को जिंदा रखने पहल करनी चाहिए.

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