गरियाबंदः प्रदेश के राजकीय पशु वन भैंसा विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके हैं. ये भैंसे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. इनके संरक्षण के लिए उदंती अभयारण्य में तमाम तरह के प्रयास किए जा रहे हैं. बावजूद इनकी संख्या में कोई इजाफा नहीं देखा जा रहा है.
'जुगाड़ू' की हालत में नहीं हो रही सुधार, अपनाए जा रहे सारे जुगाड़ कुछ समय पहले तक उदंती अभयारण्य का सबसे आक्रामक वन भैंसा माने जाने वाले जुगाड़ू की हालत भी बेहद नाजुक बताई जा रही है. ग्रामीणों का कहना का है कि जुगाडू दूसरे वन भैंसा से लड़ते हुए घायल हो गया है. वहीं वन विभाग भैंसे के बीमार होने की वजह पैंरों की नस में तकलीफ बता रहा हैं.
हालत में नहीं हो रहा सुधार
वन भैंसे की स्थिति को देखते हुए टाइगर प्रोजेक्ट के अधिकारियों ने उसके इलाज का प्रबंध करना शुरू कर दिया है. भैंसे को अब तक 9 इंजेक्शन लगाए जा चुके हैं, बावजूद इसके जुगाड़ू की हालत में कोई सुधार देखने को नहीं मिल रही है. हालांकि वन विभाग का ये भी कहना है कि बूढ़ा होने के कारण उसे दवाइयां असर नहीं कर रही.
नहीं हो रहा इजाफा
उदंती सीता नदी टाइगर प्रोजेक्ट एरिया को साल 2000 में वन भैंसों की मौजूदगी के कारण अभयारण्य का दर्जा मिला था. इसके बावजूद यहां भैंसों की संख्या में इजाफा नहीं हो पाया है. यहां एक-एक कर कई भैंस अपनी जान गवां चुके हैं.
अब बचे हैं सिर्फ 10 भैंसे
इस एरिया में फिलहाल 10 वन भैंसे मौजूद हैं. इनकी घटती संख्या को देखते हुए 6 भैंसों को तार के घेरे में जंगल जैसा माहौल देकर रखा गया है. इस अभयारण्य में मात्र एक ही मादा भैंस बची है. माना जा रहा है कि वो भी सिर्फ एक या दो बच्चे को ही जन्म दे पाएगी.
क्लोन पद्धति से बढ़ाने का हो रहा प्रयास
इस राजकीय पशु को पूरी तरह से विलुप्त होने से बचाने के लिए वन भैंसों का क्लोन बनाया जा रहा है. इसकी जिम्मेदारी हरियाणा के एक वैज्ञानिक इंस्टीट्यूट को दी गई है. फिलहाल एक मादा वन भैंसा का क्लोन बनाया गया है. ये कितना सफल होता है, ये तो वक्त ही बताएगा.