दुर्ग: छत्तीसगढ़ में ऑर्गेनिक खेती का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है. इस खेती में रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं होता. इसलिए खेती को ऑर्गेनिक का नाम दिया गया है. जैविक खेती तभी सफल हो पाएगी, जब उसमें इस्तेमाल किए जाने वाला खाद भी मानक हो. ऐसे में प्रदेश में स्थित पांचों मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं में वर्मी कंपोस्ट की टेस्टिंग शुरू कर दी गई है.
दुर्ग का रुआबांधा प्रयोगशाला पहले नंबर पर है. इस प्रयोगशाला में सबसे अधिक 844 सैंपल की जांच पूरी की गई है. जबकि यह का प्रयोगशाला नया है और अभी-अभी शुरू हुआ है. दुर्ग की नई प्रयोगशाला ने राजधानी रायपुर के सबसे पुराने प्रयोगशाला को भी मात दे दिया है.
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वर्मी कंपोस्ट खाद की टेस्टिंग
छत्तीसगढ़ में वर्मी कंपोस्ट खाद की टेस्टिंग तेजी से की जा रही है. प्रदेश के पांचों प्रयोगशालाओं में दिसंबर से वर्मी कंपोस्ट खाद की टेस्टिंग शुरू हुई है. इसमें दुर्ग का प्रयोगशाला नया होने के बावजूद सबसे अधिक टेस्ट कर रहा है. वर्मी कंपोस्ट खाद के परीक्षण के लिए सभी पांचों संभागों में प्रयोगशाला केंद्र स्थापित हैं. जहां संभाग के अंतर्गत आने वाले तमाम जिलों की वर्मी कंपोस्ट की टेस्टिंग होती है.
रुआबंधा में पांच जिलों की होती है टेस्टिंग
दुर्ग के रुआबंधा प्रयोगशाला केंद्र में दुर्ग संभाग के सभी 5 जिलों के वर्मी कम्पोस्ट की टेस्टिंग होती है. इनमें दुर्ग, राजनांदगांव, बालोद, बेमेतरा और कबीरधाम जिला शामिल है. सबसे ज्यादा राजनांदगांव जिले से वर्मी खाद परीक्षण के लिए भेजा गया. राजनांदगांव से प्राप्त 332 सैंपल की जांच पूरी भी कर ली गई है. दुर्ग जिले के 190, बालोद से 146, कवर्धा से 154 और बेमेतरा से 100 वर्मी खाद सैंपल का परीक्षण पूरा किया जा चुका है.
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गौठानों से पहुंचता है लैब तक
कृषि विकास अधिकारी खिलेश गौर ने बताया कि कर्मचारी सबसे पहले गोठानों से तैयार किया गया वर्मी कंपोस्ट को जिले में भेजते हैं. उसके बाद जिला से प्रयोगशाला केंद्र आता है. यहां उसका परीक्षण करते हैं. परीक्षण में मानक पाया जाता है तो ही गोठानों को वर्मी कंपोस्ट की पैकिंग के निर्देश दिए जाते हैं. जिससे यह साफ हो पाता है कि वर्मी कंपोस्ट खेती के लिए लाभदायक है. इससे फसल को किसी तरह का कोई नुकसान भी नहीं होता है.