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ईडी के छापे के बाद दुकानों से ब्रांडेड शराब गायब, खपाई जा रही मध्य प्रदेश की शराब

शराबखोरी से सरकारों को मोटा मुनाफा होता है. इसी शराब के चक्कर में ईडी ने छत्तीसगढ़ में ताबड़तोड़ कार्रवाई की है. दावा तो यहा तक किया जा रहा है कि लोकल ब्रांड को खपाकर 2000 करोड़ तक का घोटाला किया गया है. पिछले दो महीने से ईडी की कार्रवाई का असर प्रदेश में ब्रांडेड शराब की बिक्री पर पड़ा है.

Branded liquor disappeared
दुकानों से ब्रांडेड शराब गायब

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Published : May 25, 2023, 11:10 PM IST

भिलाई:जिले में इन दिनों सरकारी शराब दुकानों से ब्रांडेड कंपनियों की शराब और बीयर लगभग गायब हो चुकी हैं. पिछले 20-25 दिनों से जिले के सभी शासकीय दुकानों में ब्रांडेड कंपनियों की न तो शराब मिल रही है और न ही बीयर. शराब के शौकीनों को मजबूरी में ब्रांडेड छोड़कर देसी से काम चलाना पड़ रहा है. भिलाई की सरकारी दुकानों में भी लोकप्रिय शराब ब्रांड का टोटा बना हुआ है. इसके पीछे 2000 करोड़ के शराब घोटाले को लेकर ईडी की कार्रवाई को बताया जा रहा है.

लाइसेंसधारी भी नहीं करा रहे नवीनीकरण:शराब कारोबारियों और ब्यूरोक्रेट्स के खिलाफ ईडी की कार्रवाई लगातार जारी है. जिनके पास लाइसेंस है वे ईडी की जांच के घेरे में हैं. वहीं ईडी का खौफ ऐसा कि शराब के बड़े कारोबारी न तो लाइसेंस ले रहे हैं और न ही उसका नवीनीकरण करा रहे है. अप्रैल से ही आबकारी विभाग की ओर से संचालित दुकानों में तमाम लोकप्रिय ब्रांड की शराब गायब हैं. यहां तक की प्रीमियम शॉप में भी अच्छे ब्रांड की शराब नहीं मिल रही. जबकि भिलाई दुर्ग में इन सभी ब्रांड की डिमांड ज्यादा बनी हुई है. इस पर जानकारी के लिए आबकारी अधिकारी को कई बार फोन मिलाया गया, लेकिन उनका फोन बंद रहा.

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पड़ोसी राज्यों से हो रही शराब की तस्करी:सूत्रों के अनुसार सबसे अधिक अवैध शराब की बिक्री भिलाई में ही हो रही है. तस्कर ओडिशा और महाराष्ट्र से चोरी छिपे शराब लाकर स्थानीय स्तर पर खपा रहे हैं. वहीं मध्य प्रदेश से सड़क मार्ग का इस्तेमाल कर हजारों पेटी अंग्रेजी शराब छत्तीसगढ़ में लाकर खपाई जा रही है.

मध्यप्रदेश में शराब का व्यवसाय ठेका पद्धति से चल रहा है. ठेकेदारों की आपसी प्रतिद्वंदिता के चलते तस्करों को वास्तविक दाम से काफी कम कीमत में शराब की पेटियां उपलब्ध कराई जाती हैं. कम कीमत में मध्यप्रदेश की शराब लाकर भिलाई में कोचियों के जरिए खपाई जा रही हैं.

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