धमतरी : मां एक ऐसा शब्द है, जो हर महिला सुनना चाहती है. हर स्त्री मां बनकर संपूर्ण होना चाहती है. लेकिन कुछ महिलाएं किसी वजह से बच्चे को जन्म नहीं दे पाती हैं, तो वे पूजा-पाठ से लेकर तकनीकि तक हर सहारा अपनाती हैं, जिससे उनके घर भी किलकारी गूंज सके. छत्तीसगढ़ की एक ऐसी ही परंपरा के बारे में हम आपको बताते हैं लेकिन ये भी बताते चलें कि ETV भारत किसी अंधविश्वास का समर्थन नहीं करता है.
अंगारमोती मंदिर से जुड़ी परंपरा धमतरी जिले के अंगारमोती मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर में जो निसंतान महिलाएं हैं, उन पर बैगा के पैर पड़ने से मां बनने का सुख मिल जाता है. ये बात यहां के स्थानीय से लेकर डॉक्टर तक कहते हैं.
महिलाओं के ऊपर से गुजरते हैं बैगा
ऐसी मान्यता है कि दिवाली के पहले शुक्रवार को बच्चे की लालसा लिए महिलाएं मंदिर के सामने, हाथ में नारियल लेकर कतार में खड़ी रहती हैं. उन्हें इंतजार रहता है कि कब मुख्य बैगा मंदिर में आएगा. वहीं दूसरी तरफ तमाम बैगा होते हैं, कहते हैं कि इन पर मां अंगार मोती सवार होती है. वो जब मंदिर की तरफ बढ़ते हैं तो महिलाएं लेट जाती हैं और बैगा उनके ऊपर से गुजर जाते हैं.
गंगरेल के तट पर अंगारमोती मंदिर की स्थापना
यकिन करना थोड़ा मुश्किल है न, लेकिन संतान के लिये आधुनिकतम टेस्ट ट्यूब और आईवीएफ तकनीक के दौर में ये अनूठी लेकिन सिद्ध मान्यता हैरान करने वाली है. लोगों का मानना है कि जब गंगरेल बांध नहीं बना था तो वहां बसे गांवो में शक्ति स्वरूपा मां अंगारमोती इस इलाके की अधिष्ठात्री देवी थी. बांध बनने के बाद वो तमाम गांव डूब में चले गए, लेकिन माता के भक्तों में अंगारमोती की गंगरेल के तट पर फिर से स्थापना कर दी गई.
मानवाधिकार की टीम ने की जांच
इस पुरातन अनोखी परंपरा की शुरूआत कब हुई कोई नहीं जानता, लेकिन जब इसकी खबर आधुनिक दुनिया को मिली तो इसे महिलाओं पर अत्याचार कहा गया. दिल्ली से मानवाधिकार की टीम भेजी गई. नियम कानून और कायदो का हवाला देकर इस परंपरा को अमानवीय बताया गया. साथ ही इसे बंद करने की भी कोशिश की गई, जो नाकाम साबित हुई.
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