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SPECIAL: बारिश झेली, बीमार पड़े लेकिन अपने भगवान के लिए हफ्तेभर लड़ते रहे आदिवासी

मौसम की मार पड़ी, कई ग्रामीण बीमार पड़े. अपना घर छोड़कर दिन का उजाला, रात का अंधिराया सब NMDC के कैंपस में झेला लेकिन मांग सिर्फ यही थी कि बैलाडीला की डिपॉजिट 13 नंबर की खदान में उनके देवता हैं, नंदराज पर्वत उनकी आस्था का केंद्र है लिहाजा यहां खनन न हो और ठेका निरस्त किया जाए.

बारिश झेली, बीमार पड़े लेकिन अपने भगवान के लिए हफ्तेभर लड़ते रहे आदिवासी

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Published : Jun 13, 2019, 9:33 PM IST

Updated : Jun 13, 2019, 11:19 PM IST

दंतेवाड़ा: अपने देवता को बचाने के लिए प्रकृति पूजने वाले ये आदिवासी पिछले शुक्रवार यानी कि 7 जून को किरंदुल पहुंचे. खाने की पोटली साथ लेकर, तीर-कमान हाथ लेकर 7 दिन, 6 रातें इन्होंने इस उम्मीद में यहां बिताई कि जहां उनके ईष्ट देव विराजे हैं, वहां खनन का ठेका अदानी को न दिया जाए. यहां उनके भगवान बैठे हैं इसलिए यहां उनका ही अधिकार रहने दिया जाए.

प्रदर्शन करते आदिवासी

मौसम की मार पड़ी, कई ग्रामीण बीमार पड़े. अपना घर छोड़कर दिन का उजाला, रात का अंधिराया सब NMDC के कैंपस में झेला लेकिन मांग सिर्फ यही थी कि बैलाडीला की डिपॉजिट 13 नंबर की खदान में उनके देवता हैं, नंदराज पर्वत उनकी आस्था का केंद्र है लिहाजा यहां खनन न हो और ठेका निरस्त किया जाए.

आदिवासी अपना मनोरंजन करते

अदानी को मिला है खनन ठेका
नंदराज पर्वत जिसे आदिवासी देवता मानते हैं इस पर खुदाई के लिए अडानी ग्रुप को लीज पर दिया गया है. इस खनन ब्लॉक को डिपॉजिट- 13 के नाम से जाना जाता है.

रात में सुरक्षा करते सुरक्षाबल

हम आपको बताते चलते हैं कब-कब क्या हुआ-

  • किरंदुल के बेंगापाल में करीब 2 सौ गांव के हजारों ग्रामीण NMDC के सामने जुटे और काम ठप करा दिया. ये पहला दिन था. एक भी मजदूर को आदिवासियों ने एनएमडीसी के अंदर नहीं जाने दिया. दंतेवाड़ा के चार ब्लॉक और पड़ोसी जिले सुकमा से भी ग्रामीण पहुंचे. आंदोलन को समर्थन मिलना शुरू हुआ.
  • पहले दिन ही मंत्री आदिवासी लखमा ने भी आंदोलन का समर्थन किया था. महेंद्र कर्मा के बेटे दीपक कर्मा, आदिवासी नेता सोनी सोरी भी समर्थन में पहुंची. नक्सलियों ने भी पर्चे फेंक कर समर्थन दिया. आदिवासियों ने साफ कह दिया था कि जल, जंगल, जमीन हमारी है और हम किसी भी हाल में यह खदान खुलने नही देंगे.
  • दूसरे दिन भी लगातार आदिवासियों का धरना प्रदर्शन जारी रहा. जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के नेता अजीत जोगी ग्रामीणों से मिले और सरकार को चेतावनी दी कि उनके सब्र की परीक्षा न ली जाए. जोगी ने कहा कि आदिवासी भूमकाल दोहरा सकते हैं. बारिश के बाद भी आदिवासी वहीं डटे रहे.
  • तीसरे दिन भी भारी बारिश के बीच पारंपरिक वेश-भूषा में हजारों आदिवासी वहां डटे रहे.
  • चौथे दिन बस्तर सांसद दीपक बैज और आदिवासी नेता अरविंद नेता पहुंचे और कई संगठन भी आदिवासियों के समर्थन में उतर आए. अब तक एनएमडीसी को करोड़ों रुपए का नुकसान हो चुका था.
  • पांचवें दिन ग्रामीण बचेली की तरफ जाने की रणनीति बनाने लगे. मौसम खराब होने की वजह से कई लोगों की तबीयत भी बिगड़ हो गई. बचेली एनएमडीसी का भी उत्पादन ठप कर दिया. हजारों ट्रकों के पहिए थम गए.
  • पांचवें दिन ही आदिवासियों का डेलीगेशन मुख्यमंत्री से मिला, जिसके बाद वन विभाग ने दंतेवाड़ा कलेक्टर को खत लिखकर हिरोली में हुई ग्राम सभा की जांच के निर्देश दिए और सरकार ने परियोजना संबंधी कार्य पर रोक लगा दी. वनों की कटाई पर भी सरकार ने तत्काल रोक लगा दी.
  • इसी बीच अमित जोगी ने वन मंत्री मोहम्मद अकबर पर 25 हजार पेड़ काटने के आदेश देने का आरोप लगाया. जिसे वन मंत्री ने सिरे से खारिज कर दिया. सीएम भूपेश बघेल ने MOU का ठीकरा पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह पर फोड़ दिया.
  • सरकार के फैसले के साथ आदिवासियों का डेलीगेशन ग्रामीणों से मिलने पहुंचा लेकिन पंचायत संघर्ष समिति ने ग्राम सभा की स्थिति स्पष्ट नहीं होने तक धरना जारी रखने की बात कही. इसी बीच सोनी सोरी ने लोगों की परेशानी देखते हुए धरना खत्म करने के संकेत दिए.
  • बुधवार रात बड़ी संख्या में सुरक्षाबलों के जवान और प्रशासनिक अधिकारी धरनास्थल पहुंचे और मुनादी कराकर आदिवासियों से जगह खाली कराने को कहा. लेकिन आदिवासी मांदर की थाप पर नाचते रहे. खास बात ये है कि गांववालों को उनके हाल पर छोड़कर नेता चलते बने.
  • गुरुवार की सुबह हुई. प्रशासन ने 12 बजे तक जगह खाली करने का एक बार फिर नोटिस जारी किया. लिखित में ग्रामीणों को ग्राम सभा की 15 दिन में जांच का आश्वासन दिया.
  • लिखित में आश्वासन मिलने के बाद ग्रामीणों ने धरना खत्म करने का ऐलान कर दिया और सुरक्षित घर भेजे जाने लगे. हालांकि 15 दिन में जांच न होने पर आदिवासियों ने उग्र आंदोलन की चेतावनी दी है.
    बारिश झेली, बीमार पड़े लेकिन अपने भगवान के लिए हफ्तेभर लड़ते रहे आदिवासी

15 दिन तक ये आदिवासी अपनी मांग पूरी होने का इंतजार करेंगे. जिस तरह से इन्होंने अपने हक के लिए 7 दिन भूखे-प्यासे तपस्या की है अगर इनकी मांग पूरी नहीं होती, तो ऐसा ही आंदोलन फिर दोहरा सकते हैं.

Last Updated : Jun 13, 2019, 11:19 PM IST

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