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मावली परघाव रस्म में शामिल होने दंतेवाड़ा से रवाना हुई माईजी की डोली - बस्तर दशहरा

विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा की खास रस्म मावली परघाव के लिए दंतेश्वरी माईजी की डोली दंतेवाड़ा से रवाना हो गई है. रविवार सुबह माईजी की डोली जगदलपुर पहुंचेगी. जहां राजपरिवार की ओर से डोली का स्वागत किया जाएगा.

Doli of Mai danteshwari left
माईजी की डोली

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Published : Oct 24, 2020, 8:54 PM IST

दंतेवाड़ा: ऐतिहासि‍क बस्तर दशहरा की महत्वपूर्ण रस्मों में से एक मावली परघाव में शामिल होने के लिए माईजी की डोली दंतेवाड़ा से निकल चुकी है. परंपरा के मुताबिक महाष्‍टमी के दिन माईजी की डोली की विधिवत पूजा-अर्चना कर उन्हें जगदलपुर भेजा जाता है.

बस्तर दशहरा में मावली परघाव रस्म

शनिवार को पारम्परिक तरीके से माईजी की डोली और छत्र को दंतेश्वरी मंदिर से जयस्तंभ चौक तक लाया गया. इसके बाद डंकनी नदी के पुल के करीब माईजी की डोली की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की गई. डंकिनी पुल के किनारे स्थित पूजा स्‍थल पर कलेक्‍टर दीपक सोनी ने सपरिवार डोली की पूजा अर्चना की. इस पूजा में नगर के जनप्रतिनिधि समेत अन्य गणमान्य नागरिकों ने भी हिस्‍सा लिया.

जिया डेरा में कराया जाएगा विश्राम

पूजा-अर्चना के बाद डोली को विशेष सुसज्जित वाहन से जगदलपुर रवाना किया गया. माईजी की डोली के साथ मंदिर के पुजारी और सेवादार भी रवाना हुए हैं. जो बस्तर दशहरा में शामिल होंगे. दंतेश्वरी माई की डोली कल सुबह जगदलपुर पहुंच जाएगी. जगदलपुर पहुंचने के बाद वहां स्थित जिया डेरा में माईजी की डोली विश्राम करेगी. इसके बाद पूजा अर्चना के बाद कड़ी सुरक्षा के बीच दंतेश्वरी माईजी की डोली रविवार की शाम जिया डेरा से शहर के दंतेश्वरी मंदिर के लिए प्रस्थान करेगी.

राजपरिवार के सदस्य करेंगे स्वागत

रविवार को संजय मार्केट रोड में राजपरिवार के सदस्य दंतेश्वरी माईजी की डोली का भव्य रूप से स्वागत करेंगे. इस दौरान राजपरिवार के साथ ही बस्तर के विभिन्न क्षेत्रों के देवी-देवता भी शामिल होंगे.

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क्या है मावली परघाव की रस्म ?

विश्व प्रसिध्द बस्तर दशहरा की एक खास रस्म मावली परघाव है. इस रस्म को दो देवियों के मिलन की रस्म कहा जाता है. इस रस्म को जगदलपुर दंतेश्वरी मंदिर के प्रांगण में निभाया जाता है. इस रस्म में शक्तिपीठ दंतेवाड़ा से मावली देवी का क्षत्र और डोली को जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर लाया जाता है. जिसका स्वागत बस्तर के राजकुमार और बस्तरवासियों की तरफ से किया जाता है. नवमी तिथि को मनाई जाने वाली इस रस्म को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोगों का जन सैलाब उमड़ता है. बस्तर के महाराजा रूद्र प्रताप सिंह माईजी की डोली का भव्य स्वागत करते थे, वो परम्परा आज भी बखूभी निभाई जाती है.

हर साल हजारों श्रद्धालु होते थे शामिल

बस्तर दशहरा के इतिहास में यह पहला मौका है जब पर्व के दौरान हजारों की संख्या में रहने वाले श्रद्धालु रविवार को होनो वाली मावली परगाव की रस्म में मौजूद नहीं होंगे. लेकिन इस बीच दशहरा पर्व के सभी रस्मों को विधि विधान से निभाया जा रहा है. विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा अपने आप में काफी वृहद पर्व है और इस पर्व की सभी रस्म अनोखी है. इसलिए समिति द्वारा कोशिश की जा रही है कि सोशल मीडिया के माध्यम से जो विदेशी पर्यटक और देश दुनिया से पर्यटक समेत जो आम श्रद्धालु इन रस्मों में यहां मौजूद नहीं हैं, वे ऑनलाइन ही घर बैठे इस पर्व में शामिल हो और मां दंतेश्वरी के दर्शन कर सकें.

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