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रक्षाबंधन विशेष: कला और कोशिश ने दिखाई नई राह, दिव्यांगता को नहीं बनने दिया अभिशाप

दंतेवाड़ा के दिव्यांग अनिल एक वक्त गाय चराया करता था, लेकिन उसके अंदर एक कला थी. उसने अपनी कला को छिंद के पत्तों पर उकेरना शुरू किया और आज खुद आत्मनिर्भर बनने के साथ गांव की महिलाओं और युवतियों को आत्मनिर्भर बना रहा है.

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बना रहे ऑर्गेनिक राखी

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Published : Aug 3, 2020, 10:30 AM IST

Updated : Aug 3, 2020, 1:00 PM IST

दंतेवाड़ा:छोटे से गांव झोड़ियाबाड़म में रहने वाले अनिल ने अपनी कला और प्रयास से रोजगार तक का सफर तय किया है. आपने स्टोन, मौली, ऊन, रेशमी धागों से बनी राखियां तो देखी होंगी, लेकिन दंतेवाड़ा के बाजार में इस रक्षाबंधन छिंद के पत्तों से बनी बेहद खास राखियां दिखाई दे रही है. जिसे अनिल ने तैयार किया है. छिंद के पत्ते पर अपनी कला के बल बूते अनिल ने रोजगार का जरिया खोज लिया. अब उसकी इस कला को रायपुर के लोग भी देख सकेंगे. इन राखियों को अन्य जिलों में भेजने की तैयारी चल रही है.

दिव्यांगता को नहीं बनने दिया अभिशाप

अनिल एक कान से सुन नहीं सकता है, लेकिन हौसले की कोई कमी नहीं है. उसने राखी और गुलदस्ते बनाना भी खुद सीखा है. अब गांव की महिलाओं और युवतियों को सशक्त बनाने के लिए उन्हें मुफ्त में ट्रेनिंग भी दे रहा है. ताकि आगे चलकर सभी रोजगार से जुड़ सकें. गांव की महिलाएं भी मन लगाकर इस नई कला को सीखने में लगी हुई हैं. युवतियों का कहना है कि वे रक्षाबंधन पर भाईयों को यहीं राखी बांधेंगी. साथ ही आने वाले वक्त में ये उनके रोजगार का जरिया भी बनेगा.

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प्रशासन से लगाई गुहार

अनिल बताता है, वे पहली बार ऐसी कोशिश कर रहा है. प्रशासन से अगर मदद मिल जाए तो इस कला के जरिए दंतेवाड़ा को नई पहचान दिलाने की पूरी कोशिश करेंगे. प्रशासन ने उनकी गुहार सुन ली है, प्रशासन ने भी मदद के हाथ बढ़ाए हैं. कलेक्टर दीपक सोनी ने अनिल की राखियों को मार्केट में उपलब्ध कराने की बात कही है. साथ ही अबतक जितनी भी राखियां अनिल ने तैयार किए हैं, सभी को रायपुर भेजने की भी तैयारी की जा रही है. इसके साथ ही लोकल मार्केट में भी उनकी राखियों को प्रमोट किया जा रहा है. कलेक्टर ने इसे एक अच्छा प्रयास बताया है. राखियों को ऑर्गेनिक राखी की संज्ञा दी है.

Last Updated : Aug 3, 2020, 1:00 PM IST

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