बिलासपुर : शारदीय नवरात्र सोमवार से प्रारंभ हो गया है. बिलासपुर से 30 किलोमीटर दूर रतनपुर में मां महामाया का मंदिर है (Ratanpur Mahamaya temple on navratri 2022). इस बार मंदिर में 25 हजार ज्योतिकलश प्रज्जवलित किये जा रहे (Twenty five thousand Jyoti Kalash lited) हैं. कोविड महामारी के बाद परिस्थितियां सामान्य होने पर इस साल देश-विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु भक्तों के पहुंचने की उम्मीद है. यही कारण है कि कालरात्रि पर दर्शन के लिए आने वाले भक्तों के लिए 50 बसों की व्यवस्था की गई है. देश के 51 शक्तिपीठों में से एक प्रदेश के अकेले शक्ति पीठ रतनपुर महामाया में नवरात्र में दूर-दूर से आने वाले भक्तों का रेला लग रहा है. रतनपुर का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व है. माना जाता है कि सभी युगों में यह नगरी विद्यमान रही है.रतनपुर राजा मोरध्वज की राजधानी भी रही है. रतनपुर में मां सति का दाहिना स्कंध( कंधा) गिरा था, जिसके कारण देश के अन्य शक्तिपीठों में महामाया भी शामिल है.रतनपुर की मां महामाया को कुंवारी शक्तिपीठ भी कहा जाता है.
रतनपुर मां महामाया में नवरात्रि का पर्व मंदिर से जुड़ी धार्मिक कहानियां : विश्व के 51 शक्तिपीठों में से एक शाश्वत शक्तिपुंज आदिशक्ति श्री महामाया माता छत्तीसगढ़ की अधिष्ठात्री देवी है. मां महामाया की कृपा और साधना के फलस्वरुप ही कल्चुरिवंशी राजाओं ने करीब सात सौ वर्षों तक दक्षिण कोसल छत्तीसगढ़ में एक छत्र राज किया था.पौराणिक ग्रंथों जैसे श्रीमद् देवी भागवत् महापुराण, तंत्र चुणामणि, उप कालिका पुराण, श्री दुर्गा शप्तशती आदि में यह वर्णन है कि श्री महामाया देवी दया और करुणा की साक्षात प्रति मूर्ति है. देवी महामाया को सद्यः प्रसन्ना कहा जाता है क्योंकि मां श्रद्धापूर्वक समर्पित एक पुष्प और अल्प आराधना से ही प्रसन्न हो जाती हैं. रतनपुर में मां महामाया की प्रसिद्धि ऐसी है कि लोग बड़े दूर-दूर से आते हैं. यह पुराणों में भी वर्णित है कि रतनपुर का अस्तित्व चारों युगों में था. कभी मोरध्वज की राजधानी से ये नगरी सुशोभित थी. इसका प्रमाण जैमिनी अश्वमेघ पर्व में इस नगरी का उल्लेख मिलता है, जब भगवान श्री कृष्ण अर्जुन के साथ मोरध्वज की राजधानी रत्नपुर आते हैं. जहां मोरध्वज की भक्ति की परीक्षा लेते हैं.इस तरह से यह नगरी द्वापर युग में रत्नपुर नाम से विख्यात था.
रतनपुर से जुड़ी पौराणिक कथा : रतनपुर से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार दक्षकुमारी सती अपने पति भगवान शंकर के निरादर होने के कारण अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ कुण्ड में प्राणोत्सर्ग कर देती है. जिससे भगवान शंकर करुणा में डूब जाते हैं. उनके क्रोध से वीरभद्र प्रकट होता है, जो दक्ष प्रजापति का शीश काटकर यज्ञ विध्वंश कर देता है. इधर भगवान शंकर देवी सती के मृत देह को अपने कंधे पर रखकर विलाप करते हुए यत्र-तत्र भटकते हैं. तब भगवान विष्णु शिव जी के सती मोह को दूर करने के लिए धनुष बाण के द्वारा देवी सती के मृत देह को खंडित करते जाते हैं. जिससे देवी सति का अंग खंडित होकर पृथ्वी के कई भागों पर गिरता गया. जहां जहां देवी सती का अंग गिरा, वहां वहां भगवान शंकर स्वयं आविर्भूत होकर उन स्थलों को सिद्ध शक्तिपीठ के रुप में हर मनोकामना पूर्ण करने का वरदान दिया. देवी सती का दाहिना स्कंध जिस पवित्र भूमि रत्नावली में गिरा था उसे आज का रतनपुर ही माना जाता है. इसे कौमारी शक्तिपीठ के रुप में स्वीकार किया गया है. पुराणों में रत्नावली पीठ की देवी कुमारी और शिव का नाम भैरव आता है. कौमारी शक्तिपीठ होने के कारण यहां कुंवारी कन्याओं को सौभाग्य की भी प्राप्ति होती है.यही कारण है कि बड़ी संख्या में यहां कुंवारी कन्याएं अपने सौभाग्य की प्राप्ति के लिए यहां आती है.
बरगद पेड़ में बांधते है रक्षा सूत्र :मंदिर के पृष्ठ भाग में प्राचीन बरगद का पेड़ है जिस पर रक्षासूत्र बांधकर मन्नत मांगी जाती है और माना जाता है कि जिनकी मनोकामना श्रद्धापूर्वक हो उसकी इच्छा मां जरुर पूरा करते हैं।. चारों युग में आधात्मिक नगरी के रुप में प्रसिद्ध रतनपुर महामाया में श्रद्धालूओं की भीड़ हमेशा रहती है. लोग दूसरे राज्यों से बड़ी संख्या में आते हैं और दर्शन कर अपनी मनोकामना पूरी करते हैं. कहते हैं कि महामाया मंदिर के पास वट वृक्ष है जिसमें मन्नत के साथ धागा बांधने पर वह मनोकामना जरुर पूर्ण होता है.
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क्या कहते है पुजारी :रतनपुर महामाया मंदिर के मुख्य पुजारी ने बताया कि ''मां महामाया के दर्शन के पश्यात् भैरवनाथ के दर्शन आवश्यक होता है, क्योंकि भैरव महादेव का ही रुप है. ऐसे में माता और पिता दोनों का ही आशीर्वाद आवश्यक होता है तभी श्रद्धालूओं की इच्छा सफल होती है. मां महामाया मंदिर से दो किलोमीटर दूर भैरव बाबा का मंदिर है और लोग यहा भी दर्शन के लिए पहुंचते हैं जिससे यहां भी भक्ति का माहौल रहता है.Twenty five thousand Jyoti Kalash lited