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बिलासपुर के स्ट्रीट वेंडरों का छलका दर्द, प्रशासन से लगाई गुहार

बिलासपुर शहर की सड़कों के फुटपाथ पर अतिक्रमणकारियों का कब्जा होता जा रहा है. लोगों के चलने के लिये बनाए गए फुटपाथ में स्ट्रीट वेंडर अपनी दुकान सजाए बैठे हैं. पार्किंग के लिए बने सड़क किनारे के स्थल पर वाहनों को खड़ा भी नहीं करने दिया जा रहा. नगर निगम करवाई के नाम पर खाना पूर्ति करती है, लेकिन निगम कर्मियों के जाते ही फिर फुटपाथ पर कब्जा हो जाता है. इस मामले में स्ट्रीट वेंडरों की मानें, तो वो निगम से अपने लिए व्यापारिक स्थल की मांग करते रहे हैं.

Street vendors of Bilaspur appealed
बिलासपुर के स्ट्रीट वेंडरों ने प्रशासन से लगाई गुहार

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Published : Dec 8, 2022, 8:15 PM IST

बिलासपुर: मेट्रो सिटी की तर्ज पर बिलासपुर शहर को तैयार और विकसित करने के लिए सड़कों के किनारे फुटपाथ बनाया गया था. ताकि सड़क पर चलने वाले लोग सुरक्षित फुटपाथ पर चलें और इससे यातायात व्यवस्था सुचारू रूप से जारी रहे. लेकिन करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी इसका लाभ आम जनता को नहीं मिल रहा है. शहर के मुख्य मार्गो में ज्यादातर फुटपाथ पर कब्जाधारियों ने कब्जा कर रखा है. इसमें ये लोग अपने ठेले खोमचे रखकर अपना व्यापार शुरू कर दिया है. नगर निगम महीनों में एकाध बार कार्रवाई करती है, लेकिन दोबारा कब्जाधारी फिर कब्जा कर लेते हैं. सड़कों के फुटपाथ पर कब्जा करने वालों की अपनी ही एक अलग तरह की परेशानी है. उनका कहना है कि स्ट्रीट वेंडर सभी जगह से हट जाएंगे, तो वो व्यापार कहां करेंगे.

बिलासपुर के स्ट्रीट वेंडरों ने प्रशासन से लगाई गुहार
सड़कों पर ठेला चलाने से होता है टैफिक जाम: बिलासपुर के विवेकानंद उद्यान के सामने फुटपाथ पर व्यापार करने वाले अखिल ईरानी ने बताया कि "सड़कों पर ठेला लेकर निकलते हैं, तो उनके ठेला की वजह से यातायात जाम होता है. यातायात जाम होने की वजह से पब्लिक बुरा भला तो कहती है ही, कुछ लोग के शिकायत करने पर नगर निगम और यातायात विभाग उन पर कार्रवाई भी करता है. इस वजह से वो कहीं भी सड़क किनारे ठेला लगाकर व्यापार करते हैं, लेकिन यहां भी उन्हें व्यापार नहीं करने दिया जाता. नगर निगम के अतिक्रमण दस्ता उन्हें आए दिन यहां से हटाने, उनके ठेला की जप्ती बना लेती है. उनसे मोटी रकम ली जाती है या फिर रसीद काट कर छोड़ दिया जाता है. जितना कमाई नहीं होता है, उससे ज्यादा उन्हें चालान के रूप में पैसा देना पड़ता है.दूसरे जगह भेजेंगे तो कौन खरीदने आएगा: प्रताप चौक के पास जनरल सामान की दुकान लगाने वाले दिलशेर अली ने बताया कि "उन्हें बार-बार सड़क किनारे दुकान लगाने से रोका जाता है, हटाया जाता है. उन्हें ऐसे जगह पर भेजा जाता है जहां दुकान लगाने से ग्राहक आते ही नहीं. दिलशेर अली ने बताया कि सड़क किनारे दुकान लगी होने से राहगीर सामान देखते हैं और खरीदने रुक जाते हैं, इससे उनका धंधा हो जाता है. लेकिन ऐसे जगह में भेजा जाता है, जहां पर आम लोगों का आना जाना नहीं होता, तो वे उनकी दुकान में लोग कैसे आएंगे. ग्राहक नहीं होगा तो क्या धंधा करेंगे और क्या खाएंगे." उन्होंने स्थानीय प्रशासन से मांग की है, उन्हें इसी जगह छोटी सी जगह अलॉट कर दें.

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शहर बढ़ तो रहा है, लेकिन हमारे लिए कोई जगह नहीं:सदर बाजार में चप्पल की दुकान लगाने वाले दीप शंकर गुप्ता ने बताया कि "शहर रोज थोड़ा थोड़ा कर बढ़ रहा है. पब्लिक की भीड़ सड़कों पर ज्यादा दिखने लगी है. अब जगह तो नहीं है, लेकिन आखिर वह कहां जाएं. उनके लिए तो शहर कितना भी बढ़ जाए, लेकिन धंधा करने के लिए जगह है ही नहीं. ऐसे में वह अपनी रोजी-रोटी कैसे चलाएं. छोटे-छोटे धंधा करने वालों के पास इतना पैसा भी नहीं है कि वह दुकान लेकर अपना धंधा कर सके. रोजाना उन्हें 3 से से 5 सौ रुपए दुकान से कमाई होती है. ऐसे में घर चलाएं या दुकान का किराया दे , क्योंकि छोटा धंधा होने की वजह से प्रॉफिट कम और ग्रहकी भी कम रहता है. सड़कों पर बैठना उनकी मजबूरी है. स्थानीय प्रशासन उन्हें अपनी जनता मानती है तो उनके लिए भी सुव्यवस्थित व्यापार करने स्थान उपलब्ध करा दें, ताकि वह आराम से अपना व्यापार संचालित कर सके.



उम्र इतनी की गलियों में घूमना मुमकिन नहीं:बिलासपुर प्रेस क्लब के सामने फल का व्यापार करने वाली महिला चंद्रकांता बाई ने कहा कि "उम्र इतनी ज्यादा है कि अब गलियों में घूमना मुमकिन नहीं है. लेकिन मजबूरी यह है कि घर में कोई खिलाने वाला नहीं है, इसलिए उन्हें कमाने बाहर निकलना पड़ता है. बढ़ती उम्र और शारीरिक तकलीफों की वजह से वह सड़क किनारे बैठ कर फल बिक्री करती है." उन्होंने कहा कि "यदि वहां से भी हट जाएंगी, तो कौन उन्हें खिलाएगा." वह भी चाहती है कि सड़क किनारे की नाली पर स्लैब लगाकर उन्हें छोटी सी जगह दे दी जाए, ताकि वह वहां बैठ कर आराम से अपना व्यापार कर सके और अपने बूढ़े पति का पेट भर सके. उन्होंने कहा कि "नगर निगम, स्थानीय प्रशासन उन्हें कुछ मदद कर दे, तो वह अपना व्यापार आसानी से चला सकती हैं और अपना पेट भर सकती हैं.

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