बिलासपुर:मोहम्मद रफी, ये नाम सुनते ही संगीत पसंद करने वालों का दिल खिल जाता है. हजारों नगमे इस फनकार ने अपनी आवाज से सजाए हैं. हजारों शब्द इनके सुरों से इतराए, इठलाए और मचल-मचल कर हमने गाए. इस आवाज ने आपको हंसाया...आपको रुलाया...और मोहब्बत से भर दिया. लेकिन आज से 40 साल पहले 31 जुलाई 1980 को सरगम की दुनिया के इस सितारे ने दुनिया को अलविदा कह दिया था. लेकिन जाते-जाते कह गया था...तुम मुझे यूं भुला न पाओगे...जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे संग-संग तुम भी गुनगुनाओगे...और यही हाल होता है रफी के दीवानों का.
31 जुलाई 1980 के दिन हिंदी सिनेमा के जाने-माने और लोकप्रिय सिंगर मोहम्मद रफी हमें छोड़कर चले गए थे. शहंशाह-ए-तरन्नुम के नाम से मशहूर रफी साहब किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. उनकी लोकप्रियता सरगम की हर सरहद के पार है. उन्होंने हजारों फिल्मों में अपनी जादुई आवाज से सुर बिखेरे. उनकी पुण्यतिथि पर ETV भारत आपको ऐसी शख्सियत से मिलवा रहा है, जिन्होंने मोहम्मद रफी को ही अपना भगवान मान लिया. छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के रहने वाले 'जी उमा महेश', जिन्हें अब लोग बिलासपुर का रफी बुलाने लगे हैं.
बड़े भाई की गायिकी से प्रभावित रहे उमा महेश
मुल रूप से दक्षिण भारत के रह नेवाले जी उमा महेश का जन्म बिलासपुर में ही हुआ है. उमा महेश के पिता जी.एन मूर्ति बिलासपुर रेलवे ऑफिस में सुपरिंटेंडेंट के पद पर सेवा दे चुके हैं. उमा महेश का पूरा परिवार गीत-संगीत और नाटक में रुचि रखने वाला रहा है. उमा महेश प्रमुख रूप से अपने बड़े भाई 'जी एन राव' की गायकी से प्रभावित रहे हैं. बड़े भाई को गाता देख बचपन से ही उन्होंने मोहम्मद रफी को नकल करना शुरू कर दिया था.
गाने की दीवानगी ने छुड़ा दी सरकारी नौकरी
उमा के पिता कर्नाटक शैली में गाते थे. इस बीच उमा महेश ने बिलासपुर से ही बीकॉम की पढ़ाई भी की और फिर ग्रामीण बैंक में बतौर फील्ड ऑफिसर नौकरी भी शुरू कर दी. लेकिन गाने-बजाने और मोहम्मद रफी साहब के गीत गाने की दीवानगी के कारण उमा ने सरकारी नौकरी भी छोड़ दी और फिर गाने में मशगूल हो गए.
मायानगरी मुंबई में संघर्ष भरा रहा उमा का जीवन
साल 1992 में उमा महेश वैवाहिक बंधन में बंधे और पत्नी की प्रेरणा से साल 1994 में मुंबई की तरफ निकल पड़े. फिल्मों में गीत गाने का शौक और अपनी गायकी के हुनर को एक मंच मिलने की उम्मीद के साथ मुंबई पहुंचे उमा महेश को मायानगरी में काफी संघर्षों का सामना करना पड़ा. महेश घर से 25 हजार रुपए लेकर निकले थे, जिसे साल-डेढ़ साल में उन्होंने मुंबई में खर्च कर डाले. लेकिन उनके हाथ कोई कामयाबी न लगी. मुंबई जाकर महेश ने कई बड़े संगीतकारों और गीतकारों से मुलाकात की, लेकिन कुछ न हो सका. वे सत्यदेव दुबे, उन दिनों के उभरते सितारे उदित नारायण, कुमार शानू, आशा भोंसले, जगजीत सिंह, संगीतकार प्रीतम जैसी स्थापित हस्तियों से मुलाकात की, लेकिन इन सब के बाद भी उन्हें ब्रेक नहीं मिल पाया.
उमा ने मोहम्मद रफी के डब किए गानों की कैसेट लोगों में बांटी लेकिन संघर्ष के इस दौर में जब किसी का साथ न मिला तो वे बिलासपुर लौट आए.
मुंबई से आए फोन कॉल ने बदली किस्मत
इस दौरान बिलासपुर में ही उनके पास मुंबई में स्थित निजी चैनल से फोन आया कि आप जितनी जल्दी हो सके मुंबई आ जाइए. फोन में उनसे कहा गया कि एक शो के लिए उनका ऑडिशन होना है. ये सुनकर उमा महेश की खुशी का ठिकाना नहीं था. वे तुरंत ही बिलासपुर से मुंबई के लिए रवाना हुए. जिस शो के लिए उन्हें बुलाया गया था वो निजी चैनल का फेमस शो था.