बिलासपुर:हिंदी कहानियों और उपन्यासों में पाठकों के हृदय पर सर्वाधिक छाप छोड़नेवालों में अगर किसी खास व्यक्तित्व का नाम सबसे प्रमुखता से लिया जाता है, तो वो नाम है मुंशी प्रेमचंद का 31 जुलाई 1880 को मुंशीजी का जन्म वाराणसी के पास लमही गांव में हुआ था. लेखन की दुनिया में अपनी सतही लेखन के लिए मुंशीजी को जितनी प्रतिष्ठा मिली है, वो शायद ही किसी लेखक को मिली हो. चाहे बालमन पर लेखन हो, सामंती व्यवस्था पर प्रहार हो, फासीवादी ताकतों के खिलाफ आवाज बुलंद करनी हो, स्त्री मनोविज्ञान को छूना हो. इन तमाम विषयों पर मुंशी जी की कलम इस कदर चली कि पढ़नेवाले आज भी उनके लेखन को सर्वाधिक प्रासंगिक मानते हैं.
कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर विशेष वरिष्ठ साहित्यकार सतीश जायसवाल ने कहा कि मुंशी जी को उनके कई रचनाओं के कारण जाना जाता है, लेकिन शतरंज के खिलाड़ी, फ़ातिहा और रामलीला में उनका लेखन पाठकों को चमत्कृत करती है. ये कहानियां आज भी अपनी प्रासंगिकता बनाये हुए है. शतरंज के खिलाड़ी जो पूर्व में अवध की दशा पर लिखी गई थी, वहीं दशा आज भी दिख रही है कि सबकुछ लुट रहा है, लेकिन बिल्कुल शतरंज के खिलाड़ियों के माफिक किसी को कोई चिंता नहीं है.
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'वृहत कथाभूमि के रचनाकार मुंशी प्रेमचंद'
मुंशी जी रचित कहानी "फ़ातिहा" एक प्रेम कहानी है जो युद्ध काल की कहानी है. जिसमें शोहराब और रुस्तम कहानी की छाप दिखती है जो ग्रीक पुरानी कथाओं से जुड़ता हुआ दिखता है. यह रचना कहानी को बड़ा बनाती है. सतीश जायसवाल का कहना है कि अभी तक प्रेमचंद को सीमित सन्दर्भों में ही देखा गया है, जबकि वो एक वृहत कथाभूमि के रचनाकार थे. सतीश जायसवाल प्रेमचंद रचित "रामलीला" को स्मरण करते हुए कहते हैं कि इस कहानी के माध्यम से मुंशी जी ने जनमानस के रामलीला से जुड़ी उस संस्कृति को छूने की कोशिश की है जो चारों दिशाओं में आज भी व्याप्त है. वरिष्ठ साहित्यकार का कहना है कि आज भी हमारे समाज में सामंती व्यवस्था जिस रूप में है, प्रेमचंद की रचनाओं में इस नवसामन्ती व्यवस्था पर भी प्रहार है. प्रेमचंद जो भी देखते थे उसे वो लिखते थे.
31 जुलाई को कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती धनपतराय-नवाबराय से मुंशी प्रेमचंद
प्रोफेसर मुरलीमनोहर सिंह बताते हैं, कोई भी बड़ा रचनाकार अपने समय से बहुत आगे को देख लेता है. जो मुंशी जी के लेखन में सहज दिखती है, इसीलिए वो प्रासंगिक है. मुंशी जी के लेखन में एक प्रवाह है और वो लेखन के यथार्थ को स्वीकारते हुए दिखते हैं. उनकी शुरुआती कहानियों में 'बड़े घर की बेटी' के माध्यम से वो स्त्री आदर्शों को पेश करते हुए दिखते हैं तो वहीं बाद में निर्मला, गबन जैसी रचनाओं के माध्यम से स्त्री मनोविज्ञान के यथार्थ को भी बताया है.
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शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने पहली बार कहा था उपन्यास सम्राट
कहानी ईदगाह में वो हामिद के माध्यम से संस्कार को दिखाना चाहते हैं जो बेहतर भविष्य निर्माण का एक उपाय भी सुझाता है. गोदान में मुंशी जी ने भारतीय परिवेश को हूबहू दिखाने की कोशिश की और यथार्थ से परिचय करवाया है. तो वहीं सेवासदन में गांधीवाद की झलक दिखती है. मुंशी जी के गोदान के माध्यम से साम्यवादी सोच प्रखर होती है और वर्ग-संघर्ष को दिखाया गया है. उनके रचनाओं में एक प्रवाह है. मुंशी जी की प्रगतिशील सोच न सिर्फ मानव की मुश्किलों से अवगत कराता है बल्कि उन्होंने समाधान को भी बखूबी समझाया है. उन्होंने गोदान में वस्तु विनिमय को बताकर समाधान की ओर ही इशारा किया है.
'साहित्य, राजनीति के आगे जलनेवाली मशाल'
हिंदी जगत में आज भी सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले मुंशी जी ने प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अधिवेशन में कहा था कि साहित्य राजनीति के आगे जलनेवाली मशाल है, लेकिन आज राजनीति हावी है और समाज को साहित्य की ओर बढ़ना होगा. जैनेंद्र जी के शब्दों में जैसी भाषा मुंशी प्रेमचंद की है वो लोक के सबसे निकट पहुंचती है. उनकी सरल और सहज भाषा की बदौलत ही मुंशी जी आज भी सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले लेखक हैं. मुंशी जी की तमाम रचनाओं में जनहित की भावना, वर्गीय संतुलन, प्रगतिशील सोच और तमाम समस्याओं के समाधान को सुझाया गया है. जरूरत है कि आज हमारा समाज मुंशी जी की रचनाओं का न सिर्फ जानें, पढ़ें बल्कि उनके विचारों के बल पर एक सुंदर समाज की परिकल्पना को भी साकार करें. शायद यहीं एक महान रचनाकार को सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी.